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महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच भस्म से भक्तों ने खेली होली

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Published : Mar 19, 2019, 11:03 AM IST

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर भस्म से खेली गई होली

वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सदियों पुरानी परंपरा चिता भस्म संग होली खेलने का उत्सव मनाया गया. जलती चिताओं के बीच चिता भस्म और रंग-अबीर उड़ा कर लोगों ने अपने आराध्य देवाधिदेव महादेव के साथ होली खेली.

वाराणसी : काशी के बारे में कहा जाता है कि यहां के कण-कण में शिव हैं और यह शिव की अति प्रिय नगरी है. यहां मौत भी उत्सव के रूप में मनाई जाती है. वहीं रंगों के महापर्व होली के मौके पर श्मशान में भक्तों और श्रद्धालुओं ने जलती चिताओं के बीच शवों की भस्म से होली खेली.

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जमकर उड़ाई गई चिताओं की भस्म

रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सदियों पुरानी परंपरा चिता भस्म संग होली खेलने का उत्सव मनाया गया. मान्यताओं के मुताबिक, महाशिवरात्रि के बाद होली के 3 दिन पहले रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना लेकर लौटते हैं. इसके अगले दिन अपने भक्तों भूत-पिशाचों और काशीवासियों के साथ महाश्मशान पर होली खेलते हैं. सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन करते हुए सोमवार को बड़ी संख्या में लोगों ने महाश्मशान पर चिता भस्म और रंगों के साथ होली खेली, जिसका नजारा देखते ही बन रहा था.

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महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर भस्म से खेली गई होली

महाश्मशान जिसका नाम सुनते ही हर किसी के मन में दुख और शोक की भावना आ जाती है लेकिन काशी में सोमवार को यहां होली का रंग चढ़ा हुआ दिखा. जलती चिताओं के बीच चिता भस्म और रंग-अबीर उड़ा कर लोगों ने अपने आराध्य देवदिदेव महादेव के साथ होली खेली. चिता पर जलने के लिए रखी गई लाशों के ऊपर भी भस्म और अबीर-गुलाल डालकर लोगों ने बाबा भोलेनाथ को सीधे अर्पित किया. माना जाता है शव शिव का रूप है और इसी मान्यता के अनुसार लोगों ने बाबा भोलेनाथ के चरणों में अबीर-गुलाल अर्पित कर अपनी होली की शुरुआत की.

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महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर भस्म से खेली गई होली

ऐसी भी मान्यता है कि सदियों पहले महाश्मशान पर होली की शुरुआत राजा मानसिंह ने की थी, उस वक्त बाबा भोलेनाथ के स्वरूप के साथ खुद राजा और उनकी प्रजा होली खेला करती थी. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी महाश्मशान मणिकर्णिका पर इस अद्भुत होली का आयोजन किया जाता है. गीत संगीत के साथ डमरु की तेज आवाज के बीच भोले के भक्त अपने आराध्य संग होली खेल कर खुद को धन्य समझते हैं.

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महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर भस्म से खेली गई होली

काशी की यह होली कई सालों से मनाई जा रही है और महा शमशान मणिकर्णिका घाट पर इसका भव्य आयोजन स्थानीय लोगों द्वारा होता है. इस अद्भुत होली का रूप इतना ज्यादा विस्तृत हो चुका है कि इसको देखने के लिए देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में देशी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं. इस दौरान यहां विदेशी सैलानियों की मौजूदगी देखने को मिल रही थी और विदेशी सैलानी भी इस अद्भुत होली को देखकर पूरी तरह से मंत्रमुग्ध थे. उनका कहना था कि हमने अपने जीवन में पहली बार ऐसा अद्भुत नजारा देखा है.

Intro:एंकर- वाराणसी: काशी जिसके बारे में कहा जाता है यहां कण-कण में शिव हैं और यह शिव की अति प्रिय नगरी है यह भी मान्यता है कि काशी में मौत उत्सव के रूप में मनाई जाती है शायद यही वजह है कि वाराणसी के महा शमशान पर रंगो के महापर्व होली के मौके पर भी शोक और दुख से दूर होली का हुड़दंग और बाबा भोले की भक्ति दोनों एक साथ नजर आई मौका था रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महा शमशान मणिकर्णिका घाट पर सदियों पुरानी परंपरा चिता भस्म संग होली खेलने का मान्यताओं के मुताबिक महाशिवरात्रि के बाद होली के 3 दिन पहले रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गाना लेकर लौटते हैं और इसके अगले दिन अपने भक्तों भूत पिशाच और काशी वासियों के साथ महा शमशान पर होली खेलते हैं सदियों पुराने इस परंपरा का निर्वहन करते हुए आज बड़ी संख्या में लोगों ने मां शमशान पर चिता भस्म और रंगों के साथ होली खेली जिस का नजारा अदभुत था.


Body:वीओ-01 महाश्मशान जिसका नाम सुनते ही हर किसी के मन में दुख और शोक की भावना आ जाती है लेकिन काशी में इस महा शमशान पर आज होली का रंग चढ़ा हुआ दिखा जलती चिताओं के बीच चिता भस्म और रंग अबीर उड़ा कर लोगों ने अपने आराध्य देव आदि देव महादेव के साथ होली खेले चिता पर जलने के लिए रखी गई लाशों के ऊपर भी भस्म और अबीर गुलाल से कर लोगों ने बाबा भोलेनाथ को सीधे अर्पित किया क्योंकि माना जाता है शव शिव का रूप है और इसी मान्यता के अनुसार लोगों ने बाबा भोलेनाथ के चरणों में अबीर गुलाल अर्पित कर अपनी होली की शुरुआत की ऐसी भी मान्यता है कि सदियों पहले भाषण शान पर होली की शुरुआत राजा मानसिंह ने की थी उस वक्त बाबा भोलेनाथ के स्वरूप के साथ खुद राजा और उनकी प्रजा होली खेला करती थी इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी महा श्मशान मणिकर्णिका पर इस अद्भुत होली का आयोजन किया जाता है गीत संगीत के साथ डमरु की तेज आवाज के बीच भोले के भक्त अपने आराध्य संग होली खेल कर खुद को धन्य समझते हैं.

बाईट- गुलशन कपूर, स्थनीय निवासी


Conclusion:वीओ-02 काशी की याद बहुत होली कई सालों से मनाई जा रही है और महा शमशान मणिकर्णिका घाट पर इसका भव्य आयोजन स्थानीय लोगों द्वारा होता है इस अद्भुत होली का रूप इतना ज्यादा विस्तृत हो चुका है कि इसको देखने के लिए देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में देशी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं विदेशी सैलानियों की मौजूदगी यहां देखने को मिल रही थी और विदेशी सैलानी भी इस अद्भुत होली को देखकर पूरी तरह से मंत्रमुग्ध थे उनका कहना था कि हमने अपने जीवन में पहली बार ऐसा अद्भुत नजारा देखा है.

बाईट- सिजाबेल, जर्मन सैलानी

पीटीसी- गोपाल मिश्र

9839809074
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