यूपी एक खोज: काशी में विराजते हैं द्वारिकाधीश, जानिए प्राचीन मंदिर का रहस्य

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Published : Jun 24, 2022, 1:33 PM IST

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वाराणसी के काशी में द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर का बहुत महत्त्व है. वहीं, यहां बना द्वारिकाधीश शंकुलधारा पोखरा इस मंदिर की शोभा में चार चादं लगा देता है. इस मंदिर को द्वारिकापुरी के नाम से भी जाना जाता हैं. आइए जानते हैं क्या है द्वारिकाधीश मंदिर का महत्त्व.

वाराणसी: शिव की नगरी काशी तीर्थों के लिए जानी जाती है. काशी में स्थित महादेव के आराध्य भगवान विष्णु का मंदिर द्वारिकाधीश के नाम से जाना जाता है. काशी के सप्तपुरी और चार धाम यात्रा में इस मंदिर का विशेष महत्त्व माना जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने मंदिर के महंत स्वामी रामदासाचार्य से खास बातचीत की.

द्वारिकाधीश मंदिर का क्या है महत्त्व जानिए

काशी खंडोक्त पुस्तक में इस मंदिर में भगवान द्वारिकाधीश की स्वयंभू प्रतिमा बारे विस्तार से बताया गया है. द्वारिकाधीश मंदिर के महंत स्वामी रामदासाचार्य ने बताया कि यह प्राचीन तीर्थ काशी का गौरव महिमा को समेटे हुए हैं. बता दें, कि काशी के दक्षिण क्षेत्र में द्वारकाधीश मंदिर का स्थित है. यह मंदिर करीब द्वापरयुग के समाप्त होने के पश्चात इस तीर्थ का प्रादुर्भाव माना जाता है. भगवान श्री कृष्ण के गुरु ऋषि गर्गाचार्य ने अपनी गर्ग संगीता नामक ग्रंथ में इसका उल्लेख किया है.

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द्वारिकाधीश मंदिर

स्वामी रामानंदाचार्य ने दी शांख्य और योग की शिक्षा: महंत स्वामी रामदासाचार्य ने बताया कि, स्वामी रामानंदाचार्य जो उत्तर भारत के एक दिव्य संत थे. उन्होंने 15वीं शताब्दी में इस स्थान पर शांख्य और योग की शिक्षा अपने भक्तों को दी थी. उनकी वह परंपरा आज भी जीवित हैं. आज भी रामानंद संस्कृत विद्यालय चलता है. मंदिर की प्राचीनता ब्रह्मवैवर्त पुराण, तीर्थस्तली सेतु, केदार खंड में इसका विशेष महत्त्व है. इस मंदिर में विराजे द्वारिकाधीश की मूर्ति हजारों वर्ष पुरानी है. कालखंड में कई बार मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है. लेकिन इसकी मान्यता है कि यह मंदिर अपने ही स्थान पर स्थापित है.

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द्वारिकाधीश शंकुललधारा पोखरा

काशी में क्या है द्वारिकापुरी का महत्त्व: स्वामी रामदासाचार्य का कहना है कि, काशी अविनाश की नगरी है. यह 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं. आप द्वारिकापुरी ( गुजरात) जाए या नहीं, लेकिन काशी में द्वारिकाधीश के दर्शन करने से उससे ज्यादा फल प्राप्त होगा. इसी वजह से यहां कष्ट हरी पर्व भी मनाया जाता है.

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द्वारिकाधीश के दर्शन से दूर होते हैं कष्ट: द्वारिकाधीश मंदिर के महंत स्वामी रामदासाचार्य ने बताया कि भगवान द्वारिकाधीश का यह प्राचीन मंदिर है. उन्होंने कहा कि कलयुग में व्यक्ति प्रत्येक पीड़ा से ग्रसित हैं. हर समस्या से लोग परेशान हैं . ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि, द्वारकाधीश का दर्शन करने से क्षण मात्र में उसका कष्ट समाप्त हो जाता है. हृदय मन से भगवान का आराधना करना चाहिए. दर्शन करने के लिए यह दूर-दूर से लोग आते हैं. दक्षिण भारत से भी यहां कई लोग आते हैं. वहीं, द्वारिकाधीश शंकुलधारा पोखर में स्नान करने से कुष्ठ रोगों से निजात मिल जाती है.


कष्टहरिया मेला शंकु धारा तीर्थ पर साल में एक बार कर्क संक्रांति (जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं) पर कष्टहरिया मेले का आयोजन होता है. यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और भगवान का दर्शन करते हैं. उस दिन यहां पर कटहल कोआ प्रसाद के रूप में मिलता है, जिसको कटारिया मेले के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर प्रांगण विशेष काशी का अति प्राचीन द्वारिकाधीश मंदिर है, यहां पर भगवान स्वयं अपने भक्तों को शंकुधारा कुंड में स्नान करते हुए देखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं. इस मंदिर में शालिग्राम जी, राधा-कृष्ण और उसके साथ ही सूर्य की प्रचीन प्रतिमा है. स्वामी रामानंद की ध्यान मुद्रा में मूर्ति स्थापित है. वहीं, दक्षिणेश्वर हनुमान की प्रतिमा तांत्रिक विद्या द्वारा स्थापित है. भगवान कृष्ण के प्रिय मित्र के नाम से द्वारिकाधीश तीर्थ स्थल से कुछ ही दूरी पर सुदामापुर नामक क्षेत्र है. बता दें, कि यह मंदिर वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन से केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से 30 किलोमीटर की दूरी पर है यह प्रचीन मंदिर.

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