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111 सालों से सुशोभित है बप्पा का आसन, 250 साल पहले अहिल्याबाई ने बनवाया था सिंहासन

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Published : Sep 6, 2019, 9:05 PM IST

गणपति बप्पा मोरया.

महाराष्ट्र का महापर्व गणेश उत्सव देश में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. वहीं वाराणसी में मौजूद नाना फडणवीस का बाड़ा यानी विशाल भवन, जहां 111 सालों से गणपति विराज रहे हैं. इसका अपना एक अलग ही पौराणिक इतिहास है.

वाराणसी: ढाई सौ साल पुरानी गणेश प्रतिमा को रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इंदौर से बनारस आकर स्थापित किया था. यहां 111 सालों से गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लग रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने भगवान गणेश की पूजा के लिए काले पत्थर का सिंहासन भी तैयार करवाया था, जो आज भी यहां मौजूद है, जिसमें हर साल गणेश विराजते हैं और उनकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है.

देखें खास रिपोर्ट.

महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने ब्रह्मा घाट भवन में रहते हुए अहिल्याबाई घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर समेत काशी के पुरातन भवनों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया था.

111 साल पहले सार्वजनिक गणेश उत्सव की हुई थी शुरुआत
मराठों के अधीन रहने वाला यह भवन उस वक्त भी गणेश पूजा के लिए जाना जाता था, लेकिन बाद में इसको वृहद रूप दिया गया. 111 साल पहले यहां सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत हुई, जो आज भी नूतन बालक गणेश उत्सव समिति के नाम से संचालित है. यहां मराठा परंपरा के अनुरूप 7 दिनों तक चलने वाले उत्सव में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जहां बड़ी संख्या में महाराष्ट्र से आए लोग भी शामिल होते हैं.

गुप्त कमरों में बैठकर बनती थीं रणनीतियां
काशी के ब्रह्मा घाट स्थित नाना फडणवीस के बाड़े का इतिहास काफी पुराना है. झांसी की रानी की सेना में शामिल नाना फडणवीस ने इस बाड़े का निर्माण करवाया था. उस वक्त जब अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हुई, तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का मुख्य गढ़ काशी में यह स्थान ही हुआ करता था. इस स्थान के गुप्त कमरों में बैठकर रणनीतियां बनती थीं और उनको जमीन पर उतारने का प्रयास किया जाता था.

Intro:गणेश उत्सव विशेष सुधीर सर के ध्यानार्थ...

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में बहुत से ऐसी पुरातन चीजें हैं जिनके बारे में शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं गलियों में बसे बनारस में होने वाली पारंपरिक और सांस्कृतिक चीजों की जानकारी लोगों को आज भी नहीं है सदियों पहले बनारस आकर कई परंपराओं की शुरुआत करने वाले महापुरुष हो या फिर काशी में धर्मार्थ कार्य के लिए आकर बसी महारानियां या राजा सभी ने काशी मैं अपना कुछ ना कुछ योगदान जरूर दिया है और ऐसी ही एक पुरातन जगह है ब्रह्मा घाट काशी का यह मोहल्ला मराठों के मोहल्ले के नाम से जाना जाता है शायद यही वजह है कि इन दिनों इस मोहल्ले में गजब का उत्साह है क्योंकि महाराष्ट्र का महापर्व गणेश उत्सव इस इलाके में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है इसी मोहल्ले में मौजूद है नाना फडणवीस का बाड़ा बाड़ा यानी विशाल भवन और इस भवन में 111 सालों से विराज रहे हैं गणपति जिनका अपना पौराणिक इतिहास है किस तरह से हुई इस गणपति उत्सव की शुरुआत और परंपराओं के साथ इतिहास से क्या है इस जगह का जोड़ा जानिए इस रिपोर्ट में.


Body:वीओ-01 काशी के ब्रह्मा घाट स्थित नाना फडणवीस के बाड़े का इतिहास काफी पुराना है बताया जाता है कि झांसी की रानी की सेना में शामिल नाना फडणवीस ने इस बाड़े का निर्माण करवाया उस वक्त जब अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हुई तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का मुख्य गढ़ काशी में यह स्थान हुआ करता था इसे स्थान के गुप्त कमरों में बैठकर रणनीतियां बनती थी और उनको जमीन पर उतारने का प्रयास होता था मराठों के अधीन रहने वाला यह भवन उस वक्त भी गणेश पूजा के लिए जाना जाता था लेकिन बाद में उसको बृहद रूप दिया गया और लगभग 111 साल पहले यहां सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत हुई जो आज भी नूतन बालक गणेश उत्सव समिति के नाम से संचालित हो रहा है यहां मराठा परंपरा के अनुरूप 7 दिनों तक चलने वाले उत्सव में विविध कार्यक्रमों का आयोजन होता है बड़ी संख्या में महाराष्ट्र से आए लोग भी इसमें शामिल होते हैं.


Conclusion:वीओ-02 इतना ही नहीं लगभग 250 वर्ष से भी ज्यादा पहले जब महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी प्रवास के दौरान अहिल्याबाई घाट काशी विश्वनाथ मंदिर समेत काशी के अन्य पुरातन भवनों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया उन्होंने ब्रह्मा घाट के इस भवन में रहते हुए भगवान गणेश की पूजा के लिए काले पत्थर का एक सिंहासन भी तैयार करवाया था जो आज भी यहां पर मौजूद है जिसमें हर साल गणेश के छोटे रुको विराजमान कर उनकी भी पूजा-अर्चना की जाती है सबसे खासियत यह है कि यह एक के एक काले पत्थर का तैयार सिंहासन है जो अपने आप में पुरातन दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है.

बाईट- डॉ माधव जनार्दन राटाटे, पदाधिकारी नूतन बालक गणेश उत्सव समिति


गोपाल मिश्र

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