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मेंढक-मेंढकी की हुई शादी, आदिवासी लोग हुए शामिल

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Published : Aug 25, 2021, 10:53 PM IST

आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि मेंढक और मेंढकी की शादी करने से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और भरपूर वर्षा होती है. मान्यता है कि अच्छी बारिश से धान के खेत को पानी की कमी नहीं होगी और फसल भरपूर होगी. इसी मान्यता के तहत सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य कटौली गांव में यह आयोजन हुआ.

मेंढक-मेंढकी की हुई शादी
मेंढक-मेंढकी की हुई शादी

सोनभद्र: जिले के आदिवासी समाज में मेंढक-मेंढकी की शादी की परंपरा काफी प्राचीन है. वर्षों से वह इसका निर्वहन पूरी श्रद्धा के साथ करते आ रहे हैं. इस बार भी यह परंपरा निभाई गई. इस मौके पर तो बड़ी संख्या में आदिवासी समाज इसका साक्षी बना. इतना ही नहीं पूरे धूमधाम के साथ मेंढक की बारात निकाली गई. गांव के सैकड़ों महिला पुरुष इसमें शामिल हुए. मेंढक दूल्हे ने दुल्हन के रूप में मेंढकी से विवाह रचाया गया. विदाई के बाद दोनों को तालाब में छोड़ दिया गया.

अच्छी बारिश की आस में कराई जाती है मेढ़क-मेंढकी की शादी
दरअसल, आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि मेंढक और मेंढकी की शादी करने से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और भरपूर वर्षा होती है. मान्यता है कि अच्छी बारिश से धान के खेत को पानी की कमी नहीं होगी और फसल भरपूर होगी. इसी मान्यता के तहत सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य कटौली गांव में यह आयोजन हुआ. मझौली, गोपी मोड़ सहित कई अन्य गांवों के महिला-पुरुष और बच्चे तालाब से लोटे में जल लेकर पूरे गांव का भ्रमण करते हुए कटौली गांव स्थित डीहवार पहुंचे. यहां दुल्हन रूप में सजी मेंढकी को हल्दी लगाई गई. इसके बाद आदिवासी परंपरा के अनुसार मेंढक-मेंढकी का विवाह कराया गया. इस दौरान वाद्य यंत्रों पर महिला-पुरुष खूब थिरके बरातियों का स्वागत करते हुए उन्हें भोजन भी कराया गया. दुल्हन के रूप में मेंढकी को लाल चुनरी पहनाई गई थी.

मेंढक-मेंढकी की हुई शादी
अद्भुत परंपरा को देखने के लिए जुटी ग्रामीणों की भीड़
इस अद्भुत परंपरा को देखने के लिए मौके पर ग्रामीणों की भीड़ लगी रही. गांव के पूर्व प्रधान मोतीलाल ने बताया कि कई वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा में पहले चार दिनों तक रोज लोटे में जल लेकर ग्रामीण लोग गांव की परिक्रमा करते हैं, इसके पांचवें दिन मेढ़क-मेंढकी का विवाह कराया जाता है. आज भी अच्छी बारिश के लिए दुद्दी क्षेत्र में यह परंपरा प्रचलित है.
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