आंखे देकर जीती थी 65 की जंग, अब वक्त की रंजिशों से हार गया दिव्यांग फौजी

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Published : Jul 13, 2021, 9:18 PM IST

भारत-पाकिस्तान युद्ध में आंखे गंवाने वाले फौजी ने सरकार से मांग मदद.

1965 भारत-पाक (1965 india pakistan war) की जंग में देश के लिए दोनों आंखे गवाने वाला शामली जिले का एक जाबांज फौजी आज वक्त की रंजिशों के सामने टूट सा गया है. कोरोना महामारी के दौर में दो जवान बेटों की मौत के बाद फौजी के परिवार में बस दो मासूम पोता और पोती ही बचे हैं. दोनों बच्चों की परवरिश और शिक्षा-दीक्षा के लिए आज फौजी सरकार के सामने हाथ फैलाने को मजबूर है.

शामली: पाकिस्तान के साथ हुई 1965 की जंग में दोनों आंखें चली जाने के बावजूद भी जिसके हौसले पस्त नहीं हुए थे, आज वो दिव्यांग फौजी सरकार के सामने झोली फैलाकर गिड़गिड़ाने को मजबूर है. कोरोना महामारी (corona pandemic) की काली परछाई में दो बेटे खो देने के बाद अब परिवार में बूढ़ा रिटायर्ड फौजी और उसके दो मासूम पोता-पोती ही बचे हैं. इनके सामने जिंदगी की परेशानियां मुंह बाए खड़ी हुई हैं.

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65 की जंग में गंवाई थी आंखे

शामली जिले के 85 वर्षीय फौजी चाहीराम 1965 में भारत-पाकिस्तान (1965 india pakistan war) के बीच हुई जंग में लड़ चुके हैं. ऑर्डिनेंस कोर (ordnance corps) में तैनात फौजी चाहीराम (retired soldier chahiram) की जंग के दौरान, स्मॉग बम समय से पहले फटने के चलते दोनों आंखे चली गईं थी. इसके बाद 1970 में मेडिकल बोर्ड द्वारा उन्हें घर भेज दिया गया था. फौजी चाहीराम बताते हैं कि तीन बेटों में से उनका सबसे बड़ा बेटा देवेंद्र अविवाहित था, जो उनके साथ ही रहता था. दूसरा बेटा रविंद्र अपने परिवार के साथ अलग रहता है. तीसरे बेटे राजीव की पत्नी तीन साल पहले अपने पति और दो बच्चों, बेटे अंशुल मलिक (12) और बेटी धनाक्षी (6) को छोड़कर घर से चली गई थी. 25 मार्च 2020 को बेटे राजीव की कोरोना के चलते मेरठ मेडिकल कॉलेज (Meerut Medical College ) में मौत हो गई थी. इसके बाद बड़ा भाई देवेंद्र अपने पिता और भाई राजीव के दोनों बच्चों के लिए मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा था, लेकिन 14 जून 2021 को कथित तौर पर कोरोना महामारी के चलते वह भी दुनिया को अलविदा कहकर चला गया. अब परिवार में सिर्फ फौजी और उसके पोता-पोती ही बचे हैं.

भारत-पाकिस्तान युद्ध में आंखे गंवाने वाले फौजी ने सरकार से मांग मदद.
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कोरोना महामारी (corona pandemic) के दौरान में कई परिवारों के सामने जिंदगी और मौत की मुश्किलें आ खड़ी हुई हैं. फौजी चाहीराम ने बताया कि आंखे गंवाने के बाद उन्हें बेटों का सहारा था, लेकिन बेटों के चले जाने के बाद अब वह खुद पर ही बोझ बन गए हैं. ऐसे में बेटे के दोनों मासूम बच्चों की परवरिश, पढ़ाई और सामाजिक सुरक्षा भी उनके लिए चुनौती बन रही है. सोमवार को फौजी चाहीराम इन्हीं सब परेशानियों को लेकर डीएम शामली जसजीत कौर (DM Shamli Jasjit Kaur) के ऑफिस पर पहुंचे. यहां पर डीएम से मिलने का इंतजार कर रहे फौजी अपनी चिंताओं को लेकर रोते-गिड़गिड़ाते हुए नजर आए. हालांकि इस दौरान डीएम शामली जसजीत कौर ने उनकी समस्याओं को समझते हुए, प्रशासनिक तौर पर आवश्यक मदद का रास्ता तैयार करने का आश्वासन दिया.

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डीएम ऑफिस पर अपने बाबा के साथ पहुंचे 12 साल के अंशुल ने बताया कि तीन साल पहले मां उन्हें छोड़कर चली गई थी. इसके बाद 25 मार्च 2020 को पापा और बाद में बड़े ताऊ भी उन्हें छोड़कर दुनिया से चले गए. दूसरे ताऊ परिवार से अलग रहते हैं. अंशुल ने बताया कि वह पढ़ लिखकर पुलिस अफसर बनना चाहता है. वहीं, सिर्फ 6 साल की धनाक्षी को अभी हालातों की समझ नही है. धनाक्षी ने बताया कि वो डीएम मैडम से मिलने आई है. उसे भी पुलिस अफसर बनना है. फिलहाल, ग्राम समाज के लोग इस परिवार के दुख दर्द में खड़े हुए हैं, लेकिन मासूमों की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई के लिए सरकार को भी आगे आने की जरूरत है, ताकि इनका भविष्य सुरक्षित हो सके.

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