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एक ऐसा मंदिर, जहां मूर्ति की नहीं पालने की पूजा करते हैं श्रद्धालु, जानिए क्या है मान्यता?

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 21, 2023, 9:39 PM IST

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मंदिर में पालने की पूजा

प्रयागराज में देवी का एक ऐसा मंदिर है, जहां देवी की मूर्ति नहीं बल्कि एक पालने की (cradle worshiped in temple) पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां दर्शन पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.

इस मंदिर में पालने की होती है पूजा, महंत यमुनापुरी और श्रद्धालुओं ने दी जानकारी

प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज में देवी का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर देवी की मूर्ति नहीं है बल्कि कुंड के ऊपर लगे पालने को देवी स्वरूप में पूजा जाता है. संगम के नजदीक स्थित शक्ति पीठ अलोप शंकरी मंदिर में नवरात्र के दिनों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं माता पूरा करती हैं. साथ ही यहां पर पूजा-पाठ, यज्ञ व दान करके अर्जित किये गए पुण्य का लोप नहीं होता है. इसलिए इस मंदिर को अलोप शंकरी मंदिर कहा जाता है.

मंदिर में होती है पालने की पूजा: देशभर में कई शक्ति पीठ और सिद्धपीठ मंदिर हैं. जहां पर लोग देवी के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करते हैं.शक्ति पीठ या अन्य मंदिरों में जाकर लोग पिंडी या मूर्तियों की पूजा करते हैं. लेकिन, प्रयागराज के अलोप शंकरी मंदिर में देवी की मूर्ति की जगह पर कुंड बना हुआ है. जिसके ऊपर झूले से लटकता हुआ पालना लगा हुआ है. अलोप शंकरी माता के दरबार में आने वाले उनके भक्त उनके पालने की पूजा करके सभी प्रकार के कष्टों और तकलीफों से मुक्ति पाते हैं.

माता सती की उंगलियों से बना कुंड: श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े से जुड़े इस मंदिर के साधु संतों के अनुसार अलोप शंकरी माता अपने भक्तों की न सिर्फ रक्षा करती हैं, बल्कि सभी प्रकार के कष्ट, दुखों और तकलीफ से मुक्त कर देती हैं. अखाड़े के सचिव महंत यमुनापुरी ने बताया कि अलोप शंकरी मंदिर में माता सती के हाथ की उंगलियां गिरी थी. जो मंदिर के अंदर बने कुंड में गिरकर अंतर्ध्यान हो गयी. जिसके बाद से मंदिर में कुंड में भीतर श्री यंत्र स्थापित है.अब उसी श्री यंत्र में चारों तरफ कुंड बना हुआ है, जिसके ऊपर झूले से लटकता हुआ पालना लगा हुआ है. सदियों से मंदिर में आने वाले भक्त माता के प्रतीक स्वरूप कुंड के ऊपर लगे पालने की पूजा की जाती है. जबकि, कुंड में भरे हुए जल की बूंद को लोग प्रसाद स्वरूप में ग्रहण करते हैं.

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देश-विदेश से दर्शन करने आते हैं भक्त: प्रयागराज में मां अलोप शंकरी मंदिर में शारदीय नवरात्र के अवसर पर भक्तों की भीड़ जुटती है. नवरात्र में इस मंदिर में दर्शन करने के लिए देश के अलग अलग हिस्सों से भी लोग आते हैं. प्रतिदिन मां के दर्शन पूजन के लिए दूर दराज से श्रद्धालु यहां पहुंचकर पूजा पाठ कर मां का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस कुंड में पंचगव्य चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है और मां उनकी रक्षा करती है.

शक्तिपीठ है अलोप शंकरी मंदिर: बताया जाता है कि जब भगवान शिव देवी सती के शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, उस वक्त उनको रोकने के लिए भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर पर सुदर्शन चक्र से वार कर उनके शरीर के छोटे छोटे टुकड़े कर दिए थे. माता सती के शरीर के हिस्से भारत में 51 स्थानों पर गिरे. जिन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है. इन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ अलोप शंकरी मंदिर भी है. अलोप शंकरी मंदिर को दक्षिण भारत से आने वाले भक्त माहेश्वरी माता के नाम से भी पुकारते हैं. दक्षिण भारतीय श्रद्धालु 51 शक्तिपीठों में से 18 शक्तिपीठ को महाशक्ति पीठ मानते हैं और उन्हीं 18 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माहेश्वरी माता है, जो अलोप शंकरी माता के नाम विश्वविख्यात है. यही वजह है कि इस मंदिर में सिर्फ नवरात्र में ही नहीं बल्कि हर दिन हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है.

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