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CHITHERA LAND SCAM: उत्तराखंड के पूर्व सीएम के रिश्तेदारों सहित 5 को इलाहाबाद HC से राहत

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Published : May 27, 2022, 10:55 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर जिले के चिटहेरा गांव में हुए अरबों रुपये के भूमि घोटाले के 5 आरोपियों को राहत दे दी है. कोर्ट ने 5 आरोपियों की अर्जी मंजूर करते हुए उन्हें 1 लाख के निजी मुचलके पर अग्रिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

कॉन्सेप्ट इमेज
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प्रयागराज: गौतमबुद्ध नगर जिले के चिटहेरा गांव में हुए अरबों रुपये के भूमि घोटाले के 5 आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहत दे दी है. कोर्ट ने 5 आरोपियों की अर्जी मंजूर करते हुए उन्हें 1 लाख के निजी मुचलके पर अग्रिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. हालांकि हाईकोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगाई हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने अनिल राम व अन्य सहित चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है. इस मामले में जिला प्रशासन की ओर से 9 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई थी. फिलहाल कोर्ट ने इन आरोपियों को मामले में फैसला आने तक देश छोड़कर जाने पर रोक लगा दी है.

अग्रिम जमानत पाने वालों में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी अनिल राम और समधन साधना राम के साथ 3 अन्य आरोपी शामिल हैं. अनिल राम और साधना राम की अर्जी कोर्ट ने बुधवार को स्वीकार कर ली थी. बृहस्पतिवार को राहत पाने वालों में उत्तराखंड कैडर के आईएएस व सीएम पुष्कर सिंह धामी की सचिव मीनाक्षी सुंदरम के ससुर एम भास्करन, उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त नौकरशाह केएम संत (उत्तराखंड के IAS बृजेश संत के पिता) और उत्तराखंड कैडर में आईपीएस राजीव स्वरूप की मां सरस्वती देवी शामिल हैं.
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साधना राम और अनिल राम ने अंतरिम जमानत की मांग करते हुए कहा कि उनका इस भूमि घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है. चिटहेरा गांव में उनकी कंपनी ने जमीन खरीदी थी. इस जमीन पर पट्टों को लेकर पहले अपर जिलाधिकारी और फिर अपर आयुक्त के न्यायालय से फैसले आए थे. कहा गया कि उनका भूमाफिया यशपाल तोमर से कोई संबंध नहीं है. दोनों बुजुर्ग हैं और उम्र 70 वर्ष से ज्यादा है. दोनों को कई बीमारियां भी हैं. लिहाजा मामले में जमानत दी जाए. वहीं, दोनों ने गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन पर गलत ढंग से मामले में फंसाने का भी आरोप लगाया है. कोर्ट ने अनिल राम और साधना राम को अंतरिम जमानत दे दी है, लेकिन उन पर 5 बड़ी शर्तें लगाई हैं.

पहली शर्त: आरोपी विचारण के लंबित रहने के दौरान भारत नहीं छोड़ेंगे. अगर विदेश जाना जरूरी होगा तो संबंधित ट्रायल कोर्ट से पूर्व अनुमति लेनी पड़ेगी.
दूसरी शर्त: आरोपी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी परिचित व्यक्ति को प्रलोभन या धमकी नहीं देंगे, जिससे इस मामले के तथ्यों का खुलासा करने से रोका जा सके. न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी को प्रलोभन नहीं देंगे.

तीसरी शर्त: आवेदक इस आशय का एक वचन पत्र दाखिल करेंगे कि वे साक्ष्य के लिए नियत तारीखों पर कोई स्थगन नहीं मांगेंगे और गवाही के लिए कोर्ट में मौजूद रहेंगे. कोर्ट में हाजिर नहीं होने या मामले को लटकाने की कोशिश करेंगे तो निचली अदालत इसे जमानत का दुरुपयोग मानकर जमानत समाप्त करने के लिए स्वतंत्र होगी. निचली अदालत कानून के अनुसार आदेश पारित करेगी.
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चौथी शर्त: मामले में आरोपी जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं तो ट्रायल कोर्ट संबंधित कानून के अनुसार उचित कार्रवाई कर सकती है. सुशीला अग्रवाल बनाम राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लागू होगा.

पांचवीं शर्त: आवेदक परीक्षण के समय अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे. (i) मुकदमे की सुनवाई शुरू करने, (ii) आरोपों के निर्धारण के लिए नियत तारीखों पर, (iii) सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करवाने के लिए ट्रायल कोर्ट की ओर से निर्धारित तारीखों पर हाजिर रहेंगे. इस शर्त का डिफॉल्ट जानबूझकर या पर्याप्त कारण के बिना करते हैं तो ट्रायल कोर्ट के लिए सभी विकल्प खुले हैं. इस तरह की चूक को जमानत की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के रूप में मानें और उसके खिलाफ कार्रवाई करें.

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