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न्यायिक या विभागीय कार्यवाही लंबित नहीं तो पेंशन रोकने का अधिकार नहीं : हाईकोर्ट

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Published : Feb 17, 2022, 8:16 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि सेवानिवृत्ति से पहले कोई न्यायिक या विभागीय कार्यवाही विचाराधीन नहीं है तो कर्मचारी की पेंशन आदि का भुगतान रोका नहीं जा सकता. कोर्ट ने रेलवे को 7 फीसदी ब्याज के साथ याची को 8 अप्रैल 16 से बकाए का चार माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि सेवानिवृत्ति से पहले कोई न्यायिक या विभागीय कार्यवाही विचाराधीन नहीं है तो कर्मचारी की पेंशन आदि सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान रोका नहीं जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे याची को जारी जाति प्रमाणपत्र की वैधानिक जांच कराने में विफल रहा तो वह यह नहीं कह सकता कि अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र फर्जी है. ऐसे में अपनी निष्क्रियता के चलते पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर को याची की पेंशन आदि रोकने का कोई अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने रेलवे को 7 फीसदी ब्याज के साथ याची को 8 अप्रैल 16 से बकाए का चार माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की खंडपीठ ने चंद्र प्रकाश की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. याची अनुसूचित जाति (भुजिया) कोटे में चयनित किया गया. सहायक टेलीकम्युनिकेशन इंस्पेक्टर पद पर नियुक्ति हुई. सेवा के 12 साल बाद जाति प्रमाणपत्र को लेकर जांच शुरू हुई. जिलाधिकारी की रिपोर्ट में याची को अनुसूचित जाति का न होकर ओबीसी बताया गया.

धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई. पुलिस चार्जशीट के बाद कोर्ट ने याची को बरी कर दिया और जिलाधिकारी को अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया. इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका खारिज हो गई. विभागीय कार्यवाही भी चल रही थी. जांच रिपोर्ट याची के पक्ष में आने पर विभागीय कार्यवाही भी समाप्त कर दी गई. याची की पदोन्नति हुई और वह सेवानिवृत्त हो गया.

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इसके बाद रेलवे महाप्रबंधक ने याची की पेंशन आदि रोकने का आदेश दिया. जिसे केंद्रीय न्यायाधिकरण प्रयागराज में चुनौती दी गई. अधिकरण ने कहा कि जज को जाति प्रमाणपत्र जारी कराने का अधिकार नहीं है. प्रमाणपत्र की जांच कराने का समाज कल्याण आयुक्त को आदेश दिया. निदेशक समाज कल्याण ने याची को नोटिस जारी की.

याची ने कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद जांच नहीं की जा सकती. कैट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने अधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि याची के खिलाफ कोई कार्रवाई विचाराधीन नहीं है. कैट के अंतरिम आदेश से रेलवे जांच कराने में विफल रहा, इसलिए उसे पेंशन आदि रोकने का अधिकार नहीं है.

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