ETV Bharat / state

आगरा नारी निकेतन की अधीक्षिका आरोपों से बरी, सजा रद

author img

By

Published : Jan 11, 2023, 10:53 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा नारी निकेतन की अधीक्षिका को आरोपों से बरी करते हुए सजा रद्द कर दी है. अधीक्षिका पर देह व्यापार में पकड़ी गई 43 संवासिनियों को बच्चों सहित बिना अनुमति छोड़ने का आरोप था. स्पेशल कोर्ट आगरा ने सुनाई थी 14 साल कैद और साढ़े सात लाख जुर्माने की सजा.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा नारी निकेतन की अधीक्षिका गीता राकेश को बरी कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने अधीक्षिका की सजा भी रद्द कर दी है. अधीक्षिका गीता राकेश पर देह व्यापार के आरोप में पकड़ी गईं 43 महिलाओं को बच्चों सहित सक्षम अधिकारी की अनुमति के बगैर छोड़ने का आरोप था. कोई अन्य मामला न होने पर कोर्ट ने अधीक्षिका को रिहा करने का भी निर्देश दिया है. इससे पूर्व स्पेशल कोर्ट आगरा ने गीता राकेश को 14 साल जेल और साढ़े सात लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति की खंडपीठ ने गीता राकेश की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

मामले के तथ्यों के अनुसार 16 मई 2016 को प्रयागराज के मीरगंज मोहल्ले में छापा मारकर देह व्यापार में लिप्त 67 महिलाओं को पकड़ा गया था. बाद में एसडीएम प्रयागराज के 21 मई 2016 के आदेश पर 43 महिलाओं व उनके बच्चों को एक साल के लिए नारी निकेतन आगरा में रखा गया. नारी निकेतन की तत्कालीन अधीक्षिका गीता राकेश ने 21 से 23 मई 2017 के बीच 43 संवासिनियों और उनके बच्चों को छोड़ दिया. उधर, एसडीएम प्रयागराज ने उनकी नारी निकेतन में आवासित अवधि एक साल के लिए बढ़ा दी.

इसी बात पर गीता राकेश के विरुद्ध ऐतमाद्दुदौला थाने में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के अलावा अनैतिक देह व्यापार अधिनियम व पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई. मुकदमे के ट्रायल के बाद छह अक्टूबर 2018 को स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट ने गीता राकेश को आईपीसी की धारा 370 (3), 370 (5), 370 (7), 363 एवं पॉक्सो एक्ट की धारा 16/17 के तहत अपराध के लिए 14 वर्ष सश्रम कारावास एवं साढ़े सात लाख रुपये से अधिक के जुर्माने की सजा सुनाई. सजा के आदेश को अपील में चुनौती दी गई.

जिन संवासिनियों को छोड़ा गया वे सभी बालिग थीं. इसलिए अपीलार्थी पर पॉक्सो एक्ट का अपराध नहीं बनता. उनके साथ जो बच्चे छोड़े गए, वे उन संवासिनियों के थे इसलिए छोड़े गए. साथ ही उन्हें एक साल की अवधि पूर्ण होने के बाद छोड़ा गया. आवासित रहने की अवधि बढ़ाए जाने का एसडीएम का आदेश संवासिनियों को छोड़ देने के बाद अपीलार्थी को मिला. साथ ही एक जून 2017 से जेल में निरुद्ध अपीलार्थी पर ऐसा कोई आरोप नहीं बनता जो वेश्यावृति को बढ़ाने का हो.

इसके अलावा आवासित अवधि बढ़ाने के संदर्भ में ई मेल भेजने संबंधी इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों का प्रमाणीकरण भी नहीं कराया गया.सुनवाई के बाद खंडपीठ ने कहा कि परीक्षण के स्तर पर भी संबंधित मजिस्ट्रेट कार्यालय से कोई साक्ष्य नहीं पेश किया गया और न ही मूल अभिलेख प्रदर्शित किए गए, जो जिम्मेदार अधिकारी की लापरवाही को दर्शाता है. साथ ही अपील स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को आरोप से बरी कर दिया.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.