जानिए 'पूरनपुर विधानसभा सीट' का खेल, क्या इस बार भी होगा उलटफेर

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Published : Sep 11, 2021, 8:57 AM IST

जानिए 'पूरनपुर विधानसभा सीट' का खेल

पूरनपुर विधानसभा सीट (puranpur assembly ) जिले की मुख्य सीट मानी जाती है. कहा जाता है कि पूरनपुर की जनता जिसको विधायक चुनती है उसी की सरकार बनती है. इस सीट पर 1967 तक कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा. फिलहाल, यहां से वर्तमान में भाजपा से विधायक बाबू राम पासवान हैं. आइये जानते हैं इस सीट का क्या है समीकरण...

पीलीभीत: पीलीभीत जिले की पूरनपुर विधानसभा, भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित है. वहीं यह विधानसभा उत्तर प्रदेश में लखीमपुर और शाहजहांपुर जिले की सीमा से जुड़ी है. पहाड़ो से निकलने वाली शारदा नदी के किनारे बसा यह पूरनपुर विधानसभा, गोमती नदी के उद्गम स्थल के लिये जाना जाता है. यह विधानसभा, लखनऊ से लगभग 250 किमी दूर स्थित है और जनपद मुख्यालय पीलीभीत से 40 किलोमीटर दूर है.

पढ़िए पूरनपुर सीट का भूगोल
शारदा सागर डैम एशिया का सबसे बड़ा कच्चा जलाशय है. जिससे दर्जनों जिलों के खेतों को नहरों के माध्यम से सिंचाई का पानी मिलता है. वहीं प्रसिद्ध चूका स्पॉट (मिनी गोवा) व पीलीभीत टाइगर रिज़र्व भी है. प्रकृति से प्रेम करने वालो के लिए यहां हरा भरा जंगल, जंगली जानवर, नदी-नहर आदि हैं. इस वजह से देश और विदेश के लोग यहां घूमने आते हैं.

आजादी और बंटवारे के बाद सिख समुदाय के लोग यहां आकर बसे और यहां की लाइफ स्टाइल व खेती की तकनीक पंजाब जैसी हो गईं. इसलिए पूरनपुर को मिनी पंजाब भी कहा जाता है. बंटवारे के समय ये लोग यहां तराई की तलहटी में आकर बसे थे. इंदिरा गांधी ने इन लोगों को यहां बसाया था. यहां की मुख्य समस्या बाढ़ है. बरसात के समय 50 हजार की आबादी का सम्पर्क जिला मुख्यालय से टूट जाता है. शारदा नदी का पानी हर साल बाढ़ लेकर आती है और कई गांव और सैकड़ों एकड़ फसल को उजाड़ देती है.

यहां पर धान, गेहूं और गन्ने की पैदावार अधिक है. कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण यहां पर राइस मिल, सीड प्लांट, फ्लोर मिल और सुगर मिल जैसे उद्योग की संख्या अधिक है. लेकिन रोजगार के लिये कोई बड़ी फैक्ट्री या कोई बड़ा उद्योग धंधा नहीं है. इस वजह से लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली या उत्तराखंड का रुख करते हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि
2007 में बसपा की सरकार थी तो यहां से बसपा कैंडिडेट अरशद खां विधायक चुने गए थे. 2012 में जब प्रदेश में सपा सरकार आई तो ये सीट आरक्षित हो गई और यहां के विधायक सपा के पीतमराम हुए और 2017 के चुनाव में यहां से बीजेपी उम्मीदवार बाबूराम विधायक बने और प्रदेश में बीजेपी ने सरकार बनाई. अब आने वाले 2022 चुनाव में किस की वापसी होगी ये जनता पर निर्भर करेगा. क्योंकि यहां किसी को जल्दी दोबारा मौका नहीं मिलता.

पूरनपुर से कौन-कौन रह चुके हैं विधायक

कहा जाता है कि पूरनपुर विधानसभा सीट की जनता जिसको विधायक चुनती है उसी की सरकार बनती है.1962 में पूरनपुर को पहला विधायक कांग्रेस पार्टी से मिला. जिनका नाम था मोहन लाल आचार्य. 1967 में भी यही दोबारा विधायक बने. इनके बाद 1969 से 1974 तक भारतीय क्रांति दल से हरनारायण सक्सेना विधायक रहे. 1974 में BJS (भारतीय जन संघ ) से हरीश चंद्र (हरिबाबू), 1977 में JNP से बाबू राम, 1980 में डॉ. विनोद तिवारी, 1985 में दोबारा से डॉ. विनोद तिवारी विधायक बने. ये दोनों बार कांग्रेस पार्टी से विधायक बने थे. 1989 में JD (जनता दल) पार्टी से हरनारायण दूसरी बार विधायक बने, 1991 में राममंदिर लहर में प्रमोद कुमार (मुन्नू) बीजेपी से जीते. बता दें, राम मंदिर मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के साथ-साथ प्रमोद कुमार पर भी रासुका लगाई गई थी.

1993 में मेनका गांधी ने इस सीट पर भाई वीएम सिंह को जनता दल पार्टी से उतारा और वह विधायक बने. 1996 में सपा के गोपाल कृष्ण जीत कर आए. 2002 में डॉ. विनोद तिवारी तीसरी बार जीते. इस बार वह बीजेपी से लड़े और जीत कर सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री बने.

पूरनपुर विधानसभा सीट
पूरनपुर विधानसभा सीट

2007 में अरशद खान बसपा से जीत कर आए. 2012 में सीट आरक्षित हो गई. इस बार सपा से पीतमराम जीते. पीतमराम ने बीजेपी के बाबू राम पासवान को चुनाव में हराया. वहीं 2017 में बीजेपी से फिर बाबूराम आये और बदला लेते हुए पीतमराम को हराकर पूरनपुर के विधयाक बने. अब आने वाले 2022 चुनाव में भी अगर यही उम्मीदवार रहे तो बाबू राम और पीतमराम की टक्कर देखने को मिलेगी. फिलहाल पीतमराम लम्बी बीमारी के बाद ठीक हुए हैं.

सामजिक आंकड़ें

2012 के आंकड़ों के अनुसार, पूरनपुर विधान सभा में कुल मतदाता 3 लाख 39 हजार 409 थे. जिसमें पुरुष एक लाख 83 हजार 890 और महिला एक लाख 55 हजार 506 मतदाता थे. वोटरों में पिछड़े समाज और अनुसूचित जाति की संख्या बल ज्यादा है.

जातिगत आंकड़े देखें तो यहां पर पासी वोटरों की संख्या लगभग 40 हजार है. वहीं ब्राह्मण लगभग 40 हजार, किसान लोध करीब 55 हजार, मुस्लिम करीब 70 हजार, सिख 22 हजार, जाटव 28 हजार, यादव 7000 लगभग, और अन्य जाति भी हैं. जैसे कि बंगाली, थारू. लेकिन यहां चुनाव साम्प्रदायिक रहता है. जनता का मूड किसी एक पार्टी या किसी एक नेता पर टिक कर नहीं रहता.

2012 के आंकड़ों के अनुसार
2012 के आंकड़ों के अनुसार

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2017 चुनाव का हाल
2017 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित पूरनपुर सीट पर किस्मत आजमाने के लिये 8 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. लेकिन मुकाबला बीजेपी और सपा में था. जीतने वाले बीजेपी विधायक बाबूराम पासवान को 1,28,593 वोट मिले जो प्रतिशत में 52.54 प्रतिशत है. उन्हें पासी समाज का होने का भी फायदा मिला. बाबूराम की अपनी बिरादरी पासी समाज में अच्छी पकड़ है. इसलिए आधे से ज्यादा वोट बीजेपी के बाबू राम ले गए. सपा उम्मीदवार पीतमराम 36.49 प्रतिशत वोट के साथ 89,251 वोट ही ला पाये और दूसरे नम्बर पर रहे. 20,139 वोट पाकर तीसरे नम्बर पर बसपा उम्मीदवार केके अरविंद रहे. उन्हें 20,139 वोट ही मिले. केके अरविंद का कोरोना काल मे देहांत हो गया है.

पीलीभीत जिले की 4 विधानसभा सीटें
पीलीभीत जिले की 4 विधानसभा सीटें

कौन है पूरनपुर के विधायक
मौजूदा विधायक बाबूराम पासवान का जन्म पूरनपुर के ही उदरहा गांव में हुआ था. उनकी उम्र लगभग 58 साल की है. पिता का नाम स्व. छोटे लाल है. बचपन से ही इनकी रुचि पढ़ाई लिखाई में थी. वे मास्टर बनना चाहते थे. इसलिए बीए, बीएड कर अपना स्कूल खोला. कोटे में होने का इन्हें फायदा मिला और ये PIC (पब्लिक इंटर कॉलेज) में टीचर बन गए. 1887 से 1990 तक PIC में बच्चों को हिंदी और संस्कृत की शिक्षा देते रहे.

बीजेपी विधायक बाबूराम पासवान
बीजेपी विधायक बाबूराम पासवान

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2017 के चुनाव में बाबू राम ने अपनी कुल सम्पति 43,73,780 दिखाई थी. अभी तक विधायक ने कोई भी कार नहीं खरीदी है. जो हैं वो बेटों की हैं. इनके दो बेटे हैं. एक सरकारी टीचर है दूसरा विधायक के साथ रहता है. वे पेट्रोल पम्प व खेती किसानी भी करते हैं. विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों से पता चला कि पूरनपुर विधायक बाबू राम पासवान को चार साल में मिली 5 करोड़ 46 लाख 48 हजार की धन राशि में से अब तक 4 करोड़ के आस पास खर्च हुए हैं. कोविड काल में चिकित्सक उपकरण और माधोटांडा CHC में बने ऑक्सीजन प्लांट में पाइपलाइन में 19 लाख से ज्यादा रुपय खर्च किए गए.

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मौजूदा राजनीतिक माहौल में बसपा और कांग्रेस का कोई नेता दीवारों, पोस्टरों और जनता की बीच नजर नहीं आ रहा है. सपा और बीजेपी के तमाम उम्मीदवार दीवारों, बैनरों व गांव में मीटिंग करते नजर आ रहे हैं. आने वाले चुनाव में जब तक बसपा और कांगेस के चेहरे सामने नहीं आते तब तक चुनावी मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच ही मानी जा रही है.

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