मुजफ्फरनगर: जिले की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 29 साल पुराने चर्चित रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई करते हुए छपार थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक पर आरोप तय कर दिए हैं. तत्कालीन थाना प्रभारी पर आरोप था कि साक्ष्य मिटाने को उन्होंने जीडी फाड़ दी थी. मंगलवार को उन्हें बीमारी की हालत में ही कोर्ट में पेश किया गया.
बता दें कि उत्तराखंड गठन करने की मांग को लेकर देहरादून की ओर से गाड़ियों में सवार होकर हजारों लोग 1 अक्टूबर 1994 को दिल्ली के लिए रवाना हुए थे. इन्हें इसी दिन शाम के समय मुजफ्फरनगर में थाना छपार के रामपुर तिराहा पर बैरिकेडिंग कर रोक लिया गया था. रात के समय आंदोलन उग्र रूप धारण कर गया था, जिसमें गोली लगने से सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी. आरोप था कि गोली पुलिस ने चलाई थी. पुलिस पर महिलाओं के साथ ज्यादती का भी आरोप लगाया गया था. सीबीआई ने मामले की जांच की थी.
साल 2003 में फायरिंग के मामले में तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक पुलिसकर्मी को 7 साल जबकि दो अन्य पुलिकर्मियों को दो-दो साल की सजा सुनाई. वहीं, 2007 में तत्कालीन एसपी को भी सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया और फिर मामला लंबित रहा. रामपुर तिराहा कांड को लंबा वक्त बीत गया और राजनीतिक तौर पर पार्टियां एक दूसरे दलों पर आरोप लगाती रहीं.
मंगलवार को सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज मयंक जायसवाल के समक्ष रामपुर तिराहा कांड से संबंधित सीबीआई बनाम राजेंद्र और सीबीआई बनाम राजवीर सिंह के मुकदमे की फाइल पर सुनवाई हुई. इस मामले में तत्कालीन थाना प्रभारी राजवीर सिंह पर दो अलग अलग मुकदमे में आरोप तय हुए है. राजवीर सिंह पर आरोप था कि उन्होंने मुकदमे से संबंधित जीडी फाड़ दी थी और साथ ही उनपर जीडी में फर्जी एंट्री का भी आरोप था. राजवीर सिंह पर मंगलवार को कोर्ट ने आरोप तय किए हैं.