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चन्दौली: आग के अंगारे पर चलकर मनाते हैं मोहर्रम

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Published : Sep 10, 2019, 11:47 AM IST

उत्तर प्रदेश के चन्दौली के गांव दुलहीपुर मे का यह त्योहार कुछ अलग अंदाज में ही मनाया जाता है. यहां पर लोग आग के शोलों पर चलकर मातम मनाते हैं. लोगों का कहना है कि अंगारों पर चलने में उन्हें कोई भी तकलीफ नहीं होती.

आग के अंगारे पर चलकर मनाते हैं मोहर्रम.

चन्दौली: इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाने वाला मोहर्रम पूरे देश में मनाया जाता है. जिले में मातम का यह त्योहार कुछ अलग अंदाज में ही मनाया जाता है. यहां पर लोग आग का मातम करते हैं. मोहर्रम महीने की नौंवी-दसवीं की आधी रात को यहां पर लोग जलते हुए अंगारों पर चलकर मातम मनाते हैं. यह परंपरा पिछले 32 सालों से यहां पर चली आ रही है. लोगों का मानना है कि अंगारों पर चलने में उन्हें कोई भी तकलीफ नहीं होती.

आग के अंगारे पर चलकर मनाते हैं मोहर्रम.

मोहर्रम के मौके पर आग का मातम

  • जिले के गांव दुलहीपुर मे मोहर्रम के मौके पर आग का मातम मनाने के लिए लोग सुबह से ही तैयारी में जुट जाते हैं.
  • गांव के बीच इमामबाड़े के सामने तकरीबन 6 फीट लंबा और ढाई फीट चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है.
  • शाम के वक्त उसमें लकड़ियों को चिता के रूप में सजाया जाता है और आग लगा दी जाती है.
  • आधी रात होते होते ये लकड़ियां आग के शोलों के रूप में तब्दील हो जाती है.
  • आयोजक मण्डल के लोग इन शोलों को बांस-बल्ली से पीटकर गड्ढे में ठीक से बिछा देते हैं.
  • इसके बाद मातम मनाने वाले लोग इन अंगारों पर चलते हुए इसे पार करते हैं.

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Intro:चन्दौली - इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाने वाला त्योहार मोहर्रम पूरे देश में मनाया जाता है और इस दिन इसे मनाने वाले लोग अपने अपने तरीके से मनाते हैं. चंदौली में मातम का यह त्यौहार कुछ अलग अंदाज में ही मनाया जाता है. यहां पर लोग आग का मातम करते हैं. मुहर्रम महीने की नौंवी दशवी की आधी रात को यहां पर लोग जलते हुए अंगारो पर चलकर मातम मनाते हैं. यह परंपरा पिछले 32 सालों से यहां पर चली आ रही है और लोगो का मानना है कि अंगारो पर चलने में उन्हें कोई भी तकलीफ नही होती.


Body:चन्दौली के मुस्लिम बहुल गाँव दुलहीपुर मे मुहर्रम के मौके पर आग का मातम मनाने के लिए लोग सुबह से ही तैयारी में जुट जाते हैं

गाँव के बीच इमामबाड़े के सामने तकरीबन 6 फीट लंबा और ढाई फीट चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है

शाम के वक्त उसमें लकड़ियों को चिता के रूप में सजाया जाता है और आग लगा दी जाती है

आधी रात होते होते ये लकड़ीया आग के शोलों का रूप में तब्दील हो जाती है

इसके बाद आयोजक मण्डल के लोग इन शोलो को बास बल्ली से पीटकर गड्ढे में ठीक से बिछा देते हैं

इसके बाद मातम मनाने वाले लोग इन अंगारो पर चलते हुए इसे पार करते हैं.

बाईट : सैयद अख्तर अब्बास जाफरी (आयोजक, दुलहीपुर,चंदौली)Conclusion:कमलेश गिरी
चन्दौली
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