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धार्मिक सौहार्द के लिए मशहूर मऊ की ऐतिहासिक रामलीला पर लगा कोरोना का ग्रहण

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Published : Oct 22, 2020, 10:59 PM IST

यूपी के मऊ की ऐतिहासिक रामलीला पर कोरोना का ग्रहण लग गया है. कोरोना के चलते इस बार रामलीला कमेटी ने रामलीला का आयोजन न करने का निर्णय लिया है. इससे रामभक्तों ने निराशा देखने को मिल रही है.

कोरोना के चलते नहीं होगी मऊ की रामलीला.
कोरोना के चलते नहीं होगी मऊ की रामलीला.

मऊ: जिले की ऐतिहासिक रामलीला को धार्मिक सौहार्द के लिए जाना जाता है, लेकिन इस वर्ष रामलीला का आयोजन नहीं होगा. मुगल काल से तड़के सुबह अजान और हर-हर महादेव, जय श्रीराम के जयकारों की गूंज इस वर्ष सुनाई नहीं देगी. बता दें कि कोरोना के मद्देनजर रामलीला कमेटी ने इस वर्ष आयोजन नहीं करने का निर्णय लिया है, जिससे राम भक्तों में थोड़ी सी निराशा है.

कोरोना के चलते नहीं होगी मऊ की रामलीला.
कोरोना के चलते नहीं होगी मऊ की रामलीला.

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला का आयोजन मऊ जनपद में अपने धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है. यहां भगवान की लीला का मंचन एक मंच से नहीं बल्कि शहर के विभिन्न स्थानों पर होता है. इसमें भरत मिलाप का मंचन शाही कटरा के मैदान में होता है. तड़के सुबह सूर्योदय के पहले जब अजान का समय होता है. उसी वक्त वनवास से अयोध्या लौटते श्रीराम का विमान शाही मस्जिद से स्पर्श होता है, जहां पर आशीर्वाद और सलामी देने की परंपरा पूर्ण होती है. इसके पश्चात चारो भाइयों का मिलन होता है. इस पल के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस दौरान सुरक्षा के मद्देनजर भारी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की जाती है.

देखें वीडियो.

वर्षों से हो रहा है रामलीला का मंचन
जनपदवासियों का कहना है कि जिले में रामलीला का मंचन वर्षों से होता चला आ रहा है. वरिष्ठ पत्रकार राहुल सिंह ने बताया कि मऊनाथ भजन की रामलीला का भरत मिलाप भी वाराणसी के रामनगर की तरह प्रसिद्ध है. यहां चारो भाइयों के मिलन का दृश्य देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं.

धार्मिक सौहार्द का परिचायक है यह आयोजन
भरत मिलाप के दौरान जो विमान के शाही मस्जिद से स्पर्श करने की परम्परा है, उसको लेकर युवा उत्साहित रहते हैं. असल में वह धार्मिक सौहार्द का परिचायक है, जो मुगल बादशाह औरंगजेब की बहन जहांआरा द्वारा शुरू किया गया है. बताया जाता है कि मुगल काल में मऊनाथभंजन का शासन जहांगीरा को मिला था. आज जहां शाही मस्जिद है उसी स्थान पर जहांआरा का आवास होता था. उन्होंने ही यहां रामलीला के दौरान वन से वापस अयोध्या आ रहे श्रीराम का विमान स्पर्श करने के बाद ही भरत मिलाप की परम्परा शुरू की थी. जहांआरा के निवास के स्थान पर बनी शाही मस्जिद के मुख्य द्वार पर विमान को तीन बार स्पर्श कराकर आर्शीवाद दिया जाता है, जिसे मुस्लिम पक्ष सलामी की रश्म कहते हैं. इस रश्म के बाद शाही कटरा के मैदान में भरत मिलाप का आयोजन होता है.

आयोजन में कोविड प्रोटोकाल का पालन करना होगा कठिन
कोरोना के चलते ऐतिहासिक रामलीला के आयोजन पर ग्रहण लग गया है. कोविड-19 के प्रोटोकॉल के तहत प्रशासन ने रामलीला कराने की अनुमति दे दी थी, लेकिन रामलीला समिति ने कोरोना के चलते मंचन नही करने का फैसला लिया. इसके पीछे तर्क दिया कि रामलीला का मंचन शहर के विभिन्न स्थानों में होता है. इस दौरान अधिक संख्या में भीड़ एकत्रित होती है. ऐसे में कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करना कठिन है.

रामलीला समिति के सदस्य ने दी जानकारी
रामलीला समिति के सदस्य विनोद गुप्ता ने बताया कि कोरोना महामारी को देखते हुए रामलीला का आयोजन नहीं किया जा रहा है. जब लोग सुरक्षित और खुशहाल होंगे त्योहार भी तभी त्यौहार लगता है. रामलीला का आयोजन न होने से लोगों को थोड़ा दुख जरूर हो रहा है, लेकिन लोगों की सुरक्षा सबसे पहले है.

वहीं संघ के प्रांतीय धर्म प्रमुख तारकेश्वर ने बताया कि जब श्रीराम का विमान शीतला मंदिर से उठता है तो मुहल्ले-गलियों में एक किमी. से अधिक दूरी तयकर शाही मस्जिद भरत मिलाप के लिए पहुंचता है. इस दौरान जो सभी धर्मालंबियों द्वारा विमान की पूजन-अर्चन की परम्परा है, यह दृश्य रामलीला जीवंत कर देता है. उन्होंने बताया कि इस बार कोरोना के चलते रामलीला का मंचन नहीं किया जाएगा. उनका कहना है कि इसके लिए विकल्प हो सकते हैं. जब अयोध्या में रामलीला का आयोजन हो रहा है तो यहां भी होना चाहिए. तकनीकी विज्ञान का समय है कोविड-19 के नियमों के साथ सोशल मीडिया पर ऑनलाइन प्रसारित करके आयोजन हो सकता था.

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