मथुरा: जिला कारागार में निरुद्ध बंदी इस कोरोना काल में नए-नए आयाम स्थापित कर रहे हैं. वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार के निर्देशन में जिला कारागार के बंदियों ने अनोखा कार्य किया है. जेल में बंद कैदी गाय के गोबर और गोमूत्र का सदुपयोग करने के साथ ही वातावरण को भी स्वच्छ रखने का काम कर रहे हैं.
जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों से गाय के गोबर और गोमूत्र से दीपावली के दीये और हवन के लिए लकड़ियां बनवाई जा रही हैं. वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार ने इसकी जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में गाय का गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध का घी, गाय का दूध और और शहद को मिलाकर हाथ से दीये बनाए जा रहे हैं, जो कि बिल्कुल इको फ्रेंडली हैं.
उन्होंने बताया कि आगामी दीपावली के पर्व पर यहां बनाए गए दीये जेल में ही जलाए जाएंगे. इन दीपकों की एक खासियत यह है कि जब दीपक का तेल खत्म हो जाता है तो यह दीपक भी जल जाएगा. लिहाजा, इस दीपक को जलाने में इतनी ही सावधानी बरतनी पड़ेगी कि किसी ज्वलनशील पदार्थ पर इसे न रखा जाए. पूरी तरह से जलने के बाद यह दीपक भस्म के रूप में हो जाएगा, जिसका बाद में इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस भस्म को पेड़ों में डाल सकते हैं. साथ ही अगर किसी कारणवश दीपक नहीं जलता है तो भी पेड़ों में डाल सकते हैं, क्योंकि यह गोबर से बना है और इससे किसी तरह का वातावरण प्रदूषित नहीं होगा.
हवन की लकड़ी में भी 11 पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है. इन पदार्थों में गाय का गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध की दही, गाय का दूध, शहद, कपूर, हवन की लकड़ी, आम की लकड़ी का चूरा शामिल है. साथ ही दीपक और हवन की लकड़ी दोनों में गंगा और यमुना का पानी इस्तेमाल किया गया है. वर्तमान में जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों को इन पदार्थों को बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
बता दें कि इससे पूर्व भी जिला कारागार में निरुद्ध बंदी भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक, बच्चों की स्कूल ड्रेस आदि बनाते चले आ रहे हैं. वहीं कोरोना काल मैं हर्बल सैनिटाइजर , फेस शिल्ड, मास्क आदि भी बंदियों ने बनाए हैं. अब बंदियों द्वारा इको फ्रेंडली दीये और हवन की लकड़ियां बनाई जा रही हैं, जो वातावरण के लिए लाभप्रद हैं.