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निकाय चुनावों के बाद अस्तित्व में आई शहरों की सरकार के सामने क्या होंगी चुनौतियां

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Published : May 27, 2023, 8:17 PM IST

यूपी के निकाय चुनाव संपन्न हो चुके हैं. बहुमत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन शहरी सरकार के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं. दरअसल लोगों को शहर की सरकार से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रहती हैं. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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लखनऊ : नगरीय निकाय चुनाव संपन्न होने के बाद जीतकर आए प्रतिनिधियों ने तमाम स्थानों पर शपथ ग्रहण कर ली है, तो कई स्थानों पर एक-दो दिन में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित होने हैं. चूंकि निकाय चुनाव बड़े शहरों, जिला मुख्यालयों और कस्बों में ही होते हैं, इसलिए इन्हें शहरों की सरकार भी कहा जाता है. नगर निगमों, नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में चुनकर आए प्रतिनिधियों के सामने कई तरह की चुनौतियां होंगी. वह इन चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं? इनसे निपटने और लोगों से किए वादों पर खरा उतरने में कितने कामयाब होते हैं, यह देखने वाली बात होगी.

योजनाएं जिनका हो रहा क्रियान्वयन.
योजनाएं जिनका हो रहा क्रियान्वयन.
लखनऊ शहर के विभिन्न क्षेत्रों की तस्वीर.
लखनऊ शहर के विभिन्न क्षेत्रों की तस्वीर.



निकायों के मुख्य कार्यों की यदि बात करें, तो शहर की सीवेज सुविधा का समुचित प्रबंध करना, पेयजल की व्यवस्था करना, ढांचागत सुविधाओं का बेहतर विकास करना, सार्वजनिक परिवहन का उचित प्रबंध करना, सड़कों का निर्माण और देखरेख, कूड़ा प्रबंधन, शहर में हरियाली के लिए पौधरोपण आदि कराना, शहर को प्रदूण मुक्त रखने के लिए उचित उपाय आदि करना प्रमुख हैं. शहरी निकायों को तमाम अन्य विभागों के साथ तालमेल के साथ काम करना होता है. इसके साथ ही निकायों को अपनी आय के प्रबंध भी करने होते हैं, जिससे शहरों का विकास हो सके. कूड़ा प्रबंधन, साफ-सफाई, शुद्ध पेय जल उपलब्ध करा पाना आदि निकायों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों से निपटना आसान नहीं है. इसके लिए योजनाबद्ध ढंग से कड़ी मेहनत करनी होगी, तभी इन क्षेत्रों कोई बदलाव आ पाएगा.

योजनाएं जिनका क्रियान्वयन जरूरी.
योजनाएं जिनका क्रियान्वयन जरूरी.
राजधानी लखनऊ में हुए जलभराव का जायजा लेने निकलीं कमिश्नर रौशन जैकब.  फाइल फोटो
राजधानी लखनऊ में हुए जलभराव का जायजा लेने निकलीं कमिश्नर रौशन जैकब. फाइल फोटो



गौरतलब है कि देश में गांवों से पलायन और शहरों का अनियोजित विकास लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके कई कारण हैं. कई लोग अच्छी शिक्षा या चिकित्सा के लिए नगरों की ओर पलायन करते हैं, तो वहीं बड़ी संख्या में लोग नौकरी और रोजगार के अन्य साधनों की खोज में यहां आते हैं. यही कारण है कि दिनों दिन शहरी आबादी बढ़ती जा रही है. हालांकि शहरीकरण से हानि व लाभ दोनों की हैं. शहरीकरण से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है. उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है. रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जाति-पांति और छुआछूत जैसी कुरीतियां दूर होती हैं. यदि इसके दुष्परिणामों की बात करें, तो शहरों में भ्रष्टाचार, ड्रग्स नशे की समस्या और भिक्षावृत्ति अधिक देखने को मिलती है. पेयजल संकट, जल निकासी की समस्या, प्रदूषण और मलिन बस्तियों का विस्तार भी बड़ी समस्याएं हैं.

राजधानी लखनऊ के चौक में पार्किंग की समस्या.  फाइल फोटो
राजधानी लखनऊ के चौक में पार्किंग की समस्या. फाइल फोटो




राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आलोक कुमार कहते हैं 'सरकार को निकायों को और अधिक अधिकार देने की जरूरत है. नगर विकास अधिनियम का 74वां संशोधन लागू करके नगर निगमों को शक्तिशाली बनाया जा सकता है. मुंबई और दिल्ली में यह व्यवस्था लागू है. इस व्यवस्था के तहत लोक निर्माण विभाग, अग्निशमन विभाग और विकास प्राधिकरण जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विभाग नगर निगम के मातहत काम करते हैं. स्वाभाविक है कि इससे विभागों में तालमेल बेहतर होता है और विकास को गति मिलती है. सभी जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी, तो इस विषय को जोर-शोर से उठाती रहती थी, किंतु छह साल से भाजपा खुद सत्ता में है, तो निकायों को शक्तियां देना भूल गई है. यह दोहरा रवैया न निकायों के लिए बेहतर है और न ही जनता के लिए. अधिकार संपन्न निकाय ही जनता के लिए बेहतर काम कर पाएंगे.

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