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परिवहन विभाग के सेटिंगबाज बाबुओं पर सरकार की ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर, अफसर भी नतमस्तक

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Published : Jun 26, 2023, 2:32 PM IST

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उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की ट्रांसफर पॉलिसी का प्रभाव परिवहन विभाग के अफसरों पर लागू नहीं हो रहा है. लखनऊ के आरटीओ कार्यालय में तैनात बाबुओं के कार्यकाल पर नजर डालें तो ट्रांसफर पाॅलिसी बेमानी साबित हो रही है.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की ट्रांसफर पॉलिसी का लखनऊ के आरटीओ कार्यालय में तैनात बाबुओं पर कोई असर नहीं होता. इन सेटिंगबाज बाबुओं के आगे परिवहन विभाग के सीनियर अफसर नतमस्तक हैं. पिछले कई साल से कई बाबू आरटीओ कार्यालय में अंगद के पैर की तरह अपना पैर जमाए हुए हैं. इनका तबादला होता ही नहीं है. ऐसा लगता है जैसे इनके लिए ट्रांसफर पॉलिसी बनी ही नहीं है. कार्यालय के हर काम में इन्हीं बाबुओं की चलती है.

परिवहन विभाग में ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर.
परिवहन विभाग में ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर.

सूत्र बताते हैं कि ऐसे भी बाबू हैं जिनकी आय से अधिक संपत्ति की विजिलेंस जांच तक चल रही है. शासन से दो बार रिपोर्ट तलब की गई, लेकिन ऊपर तक जुगाड़ होने के चलते किसी तरह की कार्रवाई तो दूर कार्यालय से हटाने तक की अफसरों की हिम्मत नहीं पड़ रही है. ऐसे भी बाबू हैं जिनका अपना पेट्रोल पंप है और संपत्ति में तो पता नहीं कितनी ऊंची जंप लगा चुके हैं.

परिवहन विभाग में ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर.
परिवहन विभाग में ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर.




इन बड़े बाबुओं की बड़ी पहुंच

ट्रांसपोर्ट नगर स्थित आरटीओ कार्यालय की बात करें तो यहां पर प्रधान सहायक अखिलेश चतुर्वेदी 8 जून 2018 से जमे हुए हैं. इससे पहले उनकी तैनाती आगरा में थी. पिछली बार ही ट्रांसफर पॉलिसी के दायरे में आ गए थे, लेकिन ऊपर तक सेटिंग होने के चलते ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर साबित हुई.

ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने कहा बरती जाएगी पारदर्शिता.
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने कहा बरती जाएगी पारदर्शिता.

सूत्र बताते हैं कि ऊपर तक अच्छा खासा हिसाब किताब है. इसलिए अफसर इधर अपनी नजरें ही टेढ़ी नहीं कर पाते हैं. प्रधान सहायक विनय कुमार शाही वर्ष 2017 से लखनऊ आरटीओ कार्यालय में अपनी जगह पक्की किए हुए हैं. 10 जुलाई 2017 को देवरिया से ट्रांसफर के बाद लखनऊ आरटीओ में ज्वाइन किया और लगभग छह साल होने को है यहीं पर तैनात हैं. पिछली बार भी ट्रांसफर पॉलिसी आई, लेकिन इनका कुछ न कर पाई. प्रधान सहायक विनय कुमार मिश्रा ने भी 7 जून 2018 को बाराबंकी से लखनऊ कार्यालय ज्वाइन किया तब से यहीं पर जमे हैं. खास बात यह है कि यह बाराबंकी में कागजों पर रहे, सेवाएं लखनऊ में ही रहीं. ऐसे में इन्हें काफी समय लखनऊ में ही हो गया. ट्रांसफर पॉलिसी आती-जाती रही, इन पर कोई असर न हुआ.

इसी तरह प्रधान सहायक श्रीप्रकाश मालवीय 23 अगस्त 2017 से लखनऊ आरटीओ कार्यालय में तैनात हैं. इससे पहले उनकी तैनाती गोरखपुर में थी. अधिकारियों की कृपा से ट्रांसफर पॉलिसी को लगातार मुंह चिढ़ा रहे हैं. आशुलिपिक अरुण यादव लखनऊ में पांच फरवरी 2019 से तैनात हैं. इससे पहले उनकी तैनाती उप परिवहन आयुक्त परिक्षेत्र लखनऊ में थी, लेकिन यह सिर्फ कहने भर के लिए थी. इससे पहले भी लखनऊ आरटीओ में ही तैनाती रही. लंबा समय लखनऊ आरटीओ कार्यालय में गुजार लिया है. अब नेतागिरी के दम पर ट्रांसफर पॉलिसी का असर अपने ऊपर नहीं होने दे रहे हैं.

वरिष्ठ सहायक दिनेश प्रताप सिंह का दो जून 2018 को आजमगढ़ से लखनऊ तबादला हुआ था. आरटीओ कार्यालय में आए और इस तरह पैर जमाए कि फिर ट्रांसफर पॉलिसी ने इनसे दूरी बना ली. इन पर तैनाती के दौरान कई तरह के गंभीर आरोप भी लग चुके हैं. वरिष्ठ सहायक पंकज कुमार सिंह एक जुलाई 2017 से लखनऊ आरटीओ कार्यालय में सेवाएं दे रहे हैं. वरिष्ठ सहायक किशनचंद का 16 जुलाई 2017 को रायबरेली से आरटीओ लखनऊ में तबादला हुआ. तबसे यहीं पर तैनात हैं. तबादला नीति आई और गई लेकिन बाबू का जलवा बरकरार रहा. इन्हीं बाबुओं की तरह और भी बाबू है जिन पर ट्रांसफर पॉलिसी बेअसर साबित हो रही है.

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