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सूर्यग्रहण में वट सावित्री व्रत, सुहागिन क्या करें, क्या न करें?

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Published : Jun 9, 2021, 8:23 PM IST

10 जून यानि गुरुवार को वट सावित्री व्रत है. परंपरा के मुताबिक, महिलाएं श्रृंगार के बाद वट या बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं. माना जाता है कि अखंड सुहाग और परिवार की बेहतरी के लिए हर ब्याहता को इसे पूरी श्रृद्धा के साथ करना चाहिए. सोलह श्रृंगार का इसमें खास महत्व होता है.

वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत

लखनऊ : प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाने के साथ ही वट सावित्री व्रत भी किया जाता है. चूंकि इस बार, 10 जून 2021 को साल का पहला सूर्यग्रहण भी है, इसलिए व्रत के विधि विधानों को लेकर संशय है. यह सूर्य ग्रहण कंकणाकृति सूर्य ग्रहण होगा. ज्योतिर्विदों के अनुसार ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले सूतक लग जाता है और पूजा-पाठ करना वर्जित होता है. हालांकि भारत की बहुत ही कम जगहों पर आंशिक रूप से सूर्य ग्रहण देखा जा सकेगा. यही कारण है कि भारत में सूतक काल मान्य नहीं होगा.

कब से कब तक रहेगा सूर्य ग्रहण

पुराने शहर के प्रतिष्ठित पंडित मंगलू पाधा ने बताया, 10 जून 2021 दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से सूर्य ग्रहण आरंभ हो जाएगा जो शाम 06 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा. इस तरह सूर्य ग्रहण की कुल अवधि लगभग पांच घंटे की रहेगी. आपको बता दें कि यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा इसलिए सूतक काल मान्य नहीं होगा. इस कारण सभी कार्य किए जा सकेंगे. महिलाएं भी बिना किसी संशय के पूजन कर सकती हैं, लेकिन इस दिन पूजा करने के शुभ मुहूर्त के साथ कुछ मुहूर्त ऐसे भी हैं जिनमें पूजन करना सही नहीं रहेगा. अतएव यहां पर जान लें मुहूर्त.

सूर्यग्रहण में वट सावित्री व्रत
सूर्यग्रहण में वट सावित्री व्रत.

वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त

  • ज्येष्ठ अमावस्या तिथि आरंभ- 9 जून 2021 दिन बुधवार दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर
  • ज्येष्ठ अमावस्या तिथि समाप्त- 10 जून 2021 दिन गुरुवार शाम 04 बजकर 20 मिनट पर
  • वट सावित्री व्रत तिथि- 10 जून दिन गुरुवार
  • वट सावित्री व्रत पारण- 11 जून 2021 दिन शुक्रवार

शुभ काल

  • अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 53 मिनट तक
  • अमृत काल - सुबह 08 बजकर 08 मिनट से सुबह 09 बजकर 56 मिनट तक
  • ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 08 मिनट से सुबह 04 बजकर 56 मिनट तक

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं. इस दिन महिलाएं श्रृंगार करने के पश्चात वट वृक्ष (बरगद का पेड़) और सावित्री-सत्यवान की पूजा करती हैं. पूजा के पश्चात सावित्री सत्यवान की कथा पढ़ती हैं और महिलाएं देवी सावित्री से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्रदान करें.

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक ज्येष्ठ माह तीसरा महीना होता है. जो वैशाख के बाद आता है. जेठ का महीना ज्येष्ठ नक्षत्र के नाम पर आधारित है. इस महीने में सूर्य अधिक ताकतवर होता है इसलिए गर्मी अपना प्रचंड रूप ले लेती है, तथा नौतपा भी इसी माह आरंभ होता है. सनातन हिंदू धर्म में इस महीने की विशेष मान्यता है. ज्योतिषाशास्त्र के अनुसार इस महीने सूर्य और जल से जुड़े व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं. वट सावित्री भी इसी श्रेणी में आता है. जैसा कि ऊपर आपको बताया ही गया है कि इस साल यह तिथि 10 जून दिन गुरुवार को पड़ रही है. मान्यता है इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है.

नख से शिखा तक सोलह शृंगार

भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है. वैज्ञानिक तथ्यों को लेकर भी बात होती है. ऋग्वेद में भी सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह श्रृंगारों के बारे में बताया गया है. किसी भी व्रत-त्योहार में स्त्रियां नख से शिखा तक सजती संवरती है. और बात जब वट सावित्री की हो, तो भला इसका ख्याल क्यों ना रखा जाए. आइए जानते हैं वो सोलह श्रृंगार जिसमें छुपे हैं कई राज.

  1. सिंदूर - वट सावित्री व्रत के दिन माथे पर पीला सिंदूर लगाने की परम्परा है. लंबा पीला सिंदूर लगाने के पीछे यही कामना होती है कि पति की भी उतनी ही लंबी उम्र हो और वह उतनी ही तरक्की करे.
  2. मांग टीका- यह आभूषण सौभाग्य का भी प्रतीक माना जाता है. नववधु को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले.
  3. बिंदी - ललाट के बीच में लगने वाली बिंदी के बिना सुहागिन का श्रृंगार अधूरा-सा लगता है. वट सावित्री पूजा के दिन पिया के नाम की बिंदी जरूर लगाइए.
  4. काजल - माना जाता है कि काजल या काला टीका लगाने से व्यक्ति बुरी शक्तियों से बचा रहता है. हमारे धर्मग्रंथ भी इसे शृंगार का अहम तत्व मानते हैं.
  5. नथनी - नथनी, नोज़ पिन या जिसे नथ भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सुहागिन स्त्री के नथनी पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है.
  6. कर्णफूल या इयररिंग - कर्णफूल या इयररिंग कान में पहना जाने वाला आभूषण है. यह आपकी खूबसूरती को चार चांद लगाने का काम करती है.
  7. मंगलसूत्र/हार -मंगलसूत्र पति-पत्नी को जिंदगी भर एकसूत्र में बांधे रखता है. ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है. मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फायदेमंद होगा.
  8. गजरा - गजरा एक ख़ूबसूरत व प्राकृतिक श्रृंगार है. मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताजगी देता है.
  9. मेहंदी - सोलह श्रृंगार में मेहंदी महत्वपूर्ण मानी गई है। मान्यताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है.
  10. चूड़ि‍यां - सुहागन के लिए कांच, लाख, सोने, चांदी की चूड़ियां सबसे महत्वपूर्ण मानी गई हैं. महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है. चूड़ियों का संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है.
  11. अंगूठी - अंगूठी पहनाने का उल्लेख प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी है. अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है.
  12. बाजूबंद- पहले तो महिलाएं हर समय बाजूबंद पहने रहती थीं, लेकिन आज के समय में ऐसा मुमकिन नहीं है. इसलिए महिलाएं खास मौकों पर ही इनको पहनती हैं. सोलह शृंगार का यह अहम आभूषण है.
  13. कमरबंद - तगड़ी , कमरबंद या कनकती वैवाहिक जीवन में सुख-​शांति के लिए पहना जाता है, साथ ही यह वैवाहिक प्रतीक भी है और ये दर्शाता है कि सुहागन अब अपने घर की मालिकिन है.
  14. पायल - मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है. घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है.
  15. बिछिया - व्रत वाले दिन सादगी भरी बिछिया पहनने के बजाए, घुंघरु व चेन वाले सुंदर बिछिया से पैरों को सजाएं. कुंदन, हीरा व मोती वाली बिछिया भी आप पहन सकती हैं.
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