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UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी

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Published : Mar 18, 2023, 7:30 AM IST

UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी.
UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी.

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सभी दलों ने अपनी गोटियां अभी से बिछाने शुरू कर दी हैं. समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कोलकाता में हो रही है. वहीं उत्तर प्रदेश में सपा अपनी खोई जमीन वापस पाने की जुगत में रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के साथ कई मुद्दों पर दोहरी नीति अपनाकर जनता को क्या संदेश देना चाहती है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

लखनऊ : पिछले काफी दिनों से पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर दिया गया बयान सुर्खियां बन रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर अखिलेश का मौन समर्थन है। उन्होंने मानस पर सीधे भले ही कुछ ना कहा हो, लेकिन विधानसभा सत्र के दौरान भी चौपाई पर सवाल उठाए और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहा कि आप ही बताएं कि इस चौपाई का क्या मतलब है और इसमें दलितों और महिलाओं का अपमान है या नहीं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मानस की चौपाई की व्याख्या की और बताया भी कि चौपाई का अर्थ क्या है. इसके बावजूद यह मुद्दा अभी शांत नहीं हुआ है. कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी को लगता है दलित मतदाता और आधी आबादी यानी महिलाएं इस मुद्दे से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी से जुड़ सकती हैं।. यही कारण है कि स्वामी प्रसाद मौर्या निरंतर यह मुद्दा उठाते रहते हैं, तो वहीं अखिलेश यादव धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होकर अपनी आस्था के बारे में भी दिखाना नहीं भूलते.

UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी.
UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी.
वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर समाजवादी पार्टी कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर रही है. यह बैठक लोकसभा सीटों की दृष्टि से सबसे बड़े और अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में न होकर पश्चिम बंगाल में क्यों हो रही है, इसके फायदे क्या होंगे, उत्तर प्रदेश में यदि यह बैठक होती तो उसका कितना लाभ होता, जैसे विषयों पर चर्चा बाद में. फौरी तौर पर यह जानना जरूरी है कि आखिर सपा ऐसे विवादित प्रकरणों में हाथ क्यों डालती है, जिसमें उसे फायदा हो न हो, नुकसान जरूर हो सकता है. रामचरितमानस बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ ग्रंथ है. यह ग्रंथ घर-घर में मिल जाएगा. स्वाभाविक है कि लोगों को इसके बारे में कोई अमर्यादित टिप्पणी शायद ही रास आए. बावजूद इसके सपा के रणनीतिकारों ने राजनीतिक लाभ के लिए इसे चुना. पार्टी को इसका कितना लाभ मिलेगा यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा, लेकिन सपा के भीतर ही तमाम नेता, विधायक और पदाधिकारी इसका विरोध कर रहे हैं. ज्यादातर पार्टी की नीतियों की प्रतिबद्धता के कारण खुलकर सामने नहीं आ पाते, किंतु एक विधायक और कुछ पदाधिकारियों ने मीडिया में अपना विरोध जरूर दर्ज कराया है. स्वामी प्रसाद मौर्य शायद ही कोई दिन हो जब रामचरितमानस पर अपनी टिप्पणी न करते हों, जबकि अखिलेश यादव मंदिर और पुरोहितों के पास जाकर यह दिखाना चाहते हैं कि वह हिंदू हैं और हिंदुओं के हिमायती भी हैं.
UP Politics News : रामचरितमानस पर दोहरी नीति समाजवादी पार्टी को पड़ सकती है भारी.
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राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आलोक राय कहते हैं सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में अपने शासन का छठा वर्ष पूरा कर रही है. केंद्र में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने 10 वर्ष अगले साल पूरे कर लेगी. ऐसे में किसी भी विपक्षी दल के पास सरकार की नाकामियों का पुलिंदा होना चाहिए. विपक्षी दलों को सरकार के कामकाज पर पैनी निगाह रखनी चाहिए. शायद समाजवादी पार्टी यह नहीं कर पा रही है. हाल ही में प्रयागराज शूटआउट का संदर्भ लें. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा था कि इस हत्याकांड को अंजाम देने वालों को मिट्टी में मिला दिया जाएगा.‌ घटना को एक पखवारा बीत चुका है, लेकिन वारदात में शामिल सभी मुख्य आरोपी फरार हैं. विपक्षी दलों के लिए यह मुद्दा होना चाहिए, लेकिन सपा ऐसे मुद्दों पर जानें क्यों चुप रह जाती है. यही नहीं और भी तमाम विषय हैं. जो दल सत्ता में होगा वह कई गलतियां भी करेगा और अच्छे काम भी. जरूरत है सरकार के कामकाज का बारीकी से अवलोकन करने की. वैसे भी जाति धर्म का विषय यदि कोई विपक्षी दल उठाता है तो इसका सीधा लाभ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को ही मिलता है, क्योंकि वह खुलकर हिंदुत्व की राजनीति करते हैं. अन्य दलों के लिए यह संभव नहीं है. इसीलिए समाजवादी पार्टी को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना चाहिए. पार्टी जल्दी नहीं चाहती तो लोकसभा चुनाव में उसे नतीजा भुगतना पड़ सकता है.

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