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यूपी में जिन पर लगा राजद्रोह, उनकी ये थी कहानी...फिर हुआ ये

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Published : May 14, 2022, 5:19 PM IST

Updated : May 15, 2022, 11:11 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह यानी धारा 124 A को फिलहाल रद्द कर दिया है. देश के हर राज्य में कई लोगों पर यह धारा लग चुकी है. यूपी में भी कई लोगों पर राजद्रोह की धारा लग चुकी है. चलिए, जानते हैं ऐसे कुछ चर्चित मामलों के बारे में और इससे जुड़ा अन्य खास जानकारी के बारे में.

यूपी में जिन पर लगा राजद्रोह, उनकी ये थी कहानी...फिर हुआ ये
यूपी में जिन पर लगा राजद्रोह, उनकी ये थी कहानी...फिर हुआ ये

लखनऊ: बीते साल दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि कानून के विरोध में हुए किसानों के आंदोलन के दौरान उनपर राजद्रोह के मुकदमे लादने का मामला चर्चा में था. यहां तक दिल्ली की एक कोर्ट ने धारा 124 A पर टिप्पणी भी की थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल IPC की इस धारा को रदद् कर दिया है. देश के हर राज्य की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी सैकड़ों लोगों के ऊपर राजद्रोह जैसी गंभीर धारा का प्रयोग किया गया है. हालांकि कुछ मामलों में पुलिस ने खुद केस वापस ले लिए लेकिन बहुत से ऐसे भी केस है जिनका ट्रायल तक शुरू नही किया जा सका है.


उत्तर प्रदेश में बीते 11 सालों में राजद्रोह की धारा 124 A का प्रयोग जमकर हुआ है. पूर्व की अखिलेश सरकार हो या फिर वर्तमान की योगी आदित्यनाथ की सरकार, राज्य की सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ राजद्रोह का केस एक झटके में लगाया जाता रहा है. सूबे में ऐसे ही कुछ बड़े मामले रहे है जिनमें राजद्रोह की धारा का प्रयोग किया गया है, जिनकी आज बात करेंगे.

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राजद्रोह के इस मामले में परिवार को होना पड़ा था परेशान.

1- दुकानदार पर लगा राजद्रोह, बाद में हटा
9 नवंबर 2018 को महराजगंज जिले में भारत-नेपाल बॉर्डर के करीब स्थित नौतनवा थाना की पुलिस ने बिजली की दुकान चलाने वाले फिरोज अहमद को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उसके खिलाफ राजद्रोह की धारा 124 A के तहत मुकदमा दर्ज किया था. मुदकमा दर्ज करवाने वालों में एक संगठन से ताल्लुक रखते थे. उनका आरोप था कि फिरोज अहमद ने एक धर्म विशेष को बदनाम करने वाला संदेश व्हाट्सएप के जरिये फॉरवर्ड कर साम्प्रदयिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश की थी. हालांकि पुलिस ने जांच करने के ढाई महीने बाद राजद्रोह का केस फिरोज के ऊपर से हटा लिया. जिससे उसकी निचली अदालत से बेल मिलने में आसानी हो गयी. फिरोज के करीबी रिश्तेदार बताते है कि "पुलिस ने जब फिरोज के खिलाफ राजद्रोह के मामले में एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया तब लोग उसे शक की नजर से देख रहे थे. जेल जाने की वजह से फिरोज की दुकान बंद हो गयी, घर में खाने को खाना नही था. भले ही पुलिस ने फिरोज के ऊपर से राजद्रोह की धारा हटा दी लेकिन उस दौरान उसे जो कष्ट मिले उसे कैसे भुलाया जा सकता है. फिरोज के रिश्तेदार कहते है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उन्हें आशा है कि अगला कोई फिरोज परेशान नही होगा."

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राजद्रोह का यह मामला भी काफी चर्चित रहा था.


2-कश्मीरी स्टूडेंट्स के खिलाफ भी हुई कार्रवाई
आगरा में राजा बलवंत सिंह इंजीनियरिंग टेक्निकल कॉलेज के तीन कश्मीरी स्टूडेंट पर आरोप लगा कि 24 अक्टूबर 2021 को हुए भारत-पाकिस्तान मैच में भारत के हार जाने पर उन्होंने जश्न बनाया और व्हाट्सएप में अपने दोस्तों को बधाई दी. चैट वायरल हुई तो कॉलेज से उन्हें निलंबित कर दिया गया लेकिन बीजेपी युवा मोर्चा के सदस्य गौरव ने तीनों कश्मीरी छात्र इनायत अल्ताफ, शौकत अहमद गनी व आरसीद यूसुफ के खिलाफ 153 A, 505 (1) बी व आईटी एक्ट के तहत आगरा के जगदीशपुरा थाने में एफआईआर दर्ज कराई. बाद में पुलिस इन इन तीनों के खिलाफ राजद्रोह की धारा 124 A भी जोड़ दी. इन तीनों कश्मीरी छात्रों को राजद्रोह के चलते 6 महीने जेल में गुजारने पड़े और जब जमानत हुई तो इनकी जमानत लेने वाला भी कोई नही मिला.

3- गोरखपुर के अब्दुल के घर में हुई थी तोड़फोड़
10 नवंबर 2021 को गोरखपुर के चौरीचौरा में अब्दुल कलाम कुरैशी, तालीम समेत 4 लोगों के खिलाफ एक संगठन की तहरीर पर राजद्रोह की धारा में केस दर्ज हुआ. आरोप था कि एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें इन चारों के घर पर पाकिस्तानी झंडे फहर रहे थे. वीडियो वायरल होते ही मामला बिगड़ गया, और कुछ संगठन के लोग हंगामा करने लगे. यही नहीं वीडियो में दिखने वालों की शिनाख्त कर राजद्रोह की धारा में मुकदमा दर्ज करवा दिया गया. दूसरे ही दिन तालीम की गिरफ्तारी भी कर ली गयी लेकिन पुलिस की जांच में एफआईआर होने के 3 दिन बाद ही सामने आया कि वीडियो में दिखने वाला झंडा पाकिस्तानी नहीं बल्कि धार्मिक झंडा है. तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर राजद्रोह का मामला हटाने की प्रकिया शुरू की गई. कलीम के छोटे भाई बताते है कि "जिस दिन यह वीडियो वायरल हुआ था उनके घर के बाहर सैकड़ों की संख्या में लोगों ने तोड़फोड़ शुरू कर दी. 3 दिन तक वो घर से नहीं निकले. हालांकि पुलिस ने राजद्रोह के केस को हटाने का फैसला तो कर लिया था लेकिन जो उनके साथ बिता उसे भुलाया नही जा सकता है".

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इस मामले में पुलिस को राजद्रोह की धारा हटानी पड़ी थी.
4- पत्रकार समेत कई पर लगा था राजद्रोहहाथरस में एक दलित बेटी की गैंगरेप व हत्या के बाद पूरे देश में आंदोलनों की बाढ़ सी आ गयी थी. तमाम संगठन व समाजसेवी यूपी के हाथरस कूच करने लगे थे. इसी दौरान यूपी पुलिस ने मथुरा से पत्रकार सिद्दिकी कप्पन, CFI सदस्य अतीक उर रहमान, मसूद अहमद व आलम को गिरफ्तार किया और राज्य सरकार को बदनाम करने व साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए राजद्रोह का केस दर्ज किया गया.

5- पूर्व राज्यपाल के खिलाफ भी हुई थी कार्रवाई

पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी के खिलाफ रामपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में 6 अक्टूबर 2021 को राजद्रोह के मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई. उत्तर प्रदेश में साल 2010 से 2021 के बीच राजद्रोह के कुल 127 केस दर्ज किए गए है. जिसमें 288 नामजद व 1095 अज्ञात लोगों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे दर्ज है. 105 लोगों की अब तक कोर्ट में ट्रायल के दौरान जमानत याचिका कोर्ट ने खारिज की है. इन सभी पर धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने, राष्ट्र के झंडे का अपमान व राज्य सरकार को बदनाम करने का आरोप था. वहीं, 92 राजद्रोह के आरोपियों को कोर्ट से जमानत भी इस दौरान मिली है.

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पूर्व राज्यपाल पर भी लगा था राजद्रोह.

अधिकतर उन मामलों में जिनमे कोर्ट ने राजद्रोह के आरोपियों को जमानत दी है उसके पीछे सबसे बड़ा कारण रहा है कि 'ज्यादा दिन तक जेल में रहना', 'एफआईआर में नाम न होना' व 'उम्र'. पिछले 5 सालों के दर्ज हुए राजद्रोह के केस में पुलिस सिर्फ 9 मामलों में ही चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर सकी है. उत्तर प्रदेश में 77 प्रतिशत राजद्रोह की एफआईआर व्यक्तिगत तौर पर दर्ज की गई है. महज 23 प्रतिशत सरकार या पुलिस के द्वारा दर्ज हुई है.

(यह सभी आंकड़े, NCRB व निजी सर्वे एजेंसी के द्वारा लिए गए है)


यूपी में लंबे समय से पुलिस सेवा में रहने वाले पूर्व डीजीपी एके जैन बताते है कि "जल्दबाजी में पुलिस तहरीर के आधार पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लेती है. मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपी पर अभियोजन चलाये जाने व चार्जशीट को कोर्ट में दाखिल करने से पहले शासन से मंजूरी लेनी होती है. ज्यादातर मामलों में पुलिस के पास साक्ष्य नही होते है जिसके चलते शासन अभियोजन चलाने की मंजूरी नही देती है इसी वजह से ट्रायल शुरू नही हो पाते है."

1870 में राजद्रोह का कानून बना था
1860 में भारत में जब इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) आई, तब उसमें राजद्रोह का कानून नहीं था. भारत में 1870 में संशोधन कर आईपीसी में धारा 124A को जोड़ा गया था तभी से भारत में राजद्रोह का कानून लागू था.

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Last Updated : May 15, 2022, 11:11 AM IST
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