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विधायकों को नहीं संभाल पा रही बसपा, 2022 में हो सकता है नुकसान!

उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के 7 विधायकों का पार्टी से बगावत करना बड़ा सियासी संदेश देने वाला है. जानकार बताते हैं कि इससे समाज में यह संदेश जा रहा है कि बसपा में भगदड़ है और बसपा की स्थिति चुनाव में ठीक नहीं होने वाली. इसीलिए बसपा के विधायक पार्टी से दूर हो रहे हैं. इसका चुनावी राजनीति में भी बहुजन समाज पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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विधायकों को नहीं संभाल पा रही बसपा!
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Published : Oct 29, 2020, 5:14 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी में विधायकों की बगावत का मामला कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए जब बसपा के विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दूसरे दलों के संपर्क में आए और इसका सियासी नुकसान बहुजन समाज पार्टी को उठाना पड़ा. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के 7 विधायकों का पार्टी से बगावत करने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे बहुजन समाज पार्टी अपने विधायकों को संभाल नहीं पा रही. इस बगावत के बाद बहुजन समाज पार्टी को इसका सियासी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

विधायकों को नहीं संभाल पा रही बसपा!
इससे पहले कब हुई बसपा में हुई बगावतअभी पिछले साल की बात है जब राज्यसभा के चुनाव होने थे. उस समय बहुजन समाज पार्टी के उन्नाव से विधायक अनिल सिंह पार्टी से बगावत कर भाजपा के उम्मीदवार को मतदान किया था. उस समय भी अनिल सिंह ने पार्टी से बगावत करके भाजपा का साथ दिया. हालांकि अनिल सिंह औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल नहीं हुए, लेकिन वह लगातार बीजेपी नेताओं के साथ संपर्क में रहे और बीजेपी के कार्यक्रमों में भी आते जाते रहे. बहुजन समाज पार्टी ने अनिल सिंह को भी पार्टी से निलंबित करने का काम किया था, लेकिन किसी पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल न होने के कारण उनकी सदस्यता समाप्त नहीं हो सकी.


बसपा के 40 विधायक टूटकर बनाई थी मुलायम सिंह सरकार
साल 2003 में उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत किसी पार्टी को न मिलने के कारण मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने के लिए बसपा के 40 विधायकों को तोड़ लिया था. यह उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक बड़ा घटनाक्रम था. 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद 2003 में बसपा के 40 विधायकों को तोड़कर मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार बनाई थी. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने तमाम तरह के गंभीर और विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप मुलायम सिंह सरकार पर लगाए थे. इसके बाद जब 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही.

बसपा विधायकों को संतुष्ट नहीं कर पा रही हैं मायावती
राजनीतिक विश्लेषक प्रद्युम्न तिवारी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी के मल्टीनेशनल कंपनी वाली छवि है और वह विधायकों से भी उसी तरह का व्यवहार रखती है. तमाम बार विधायकों के आचरण को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं जब पार्टी के विधायक अपनी पार्टी नेतृत्व से संतुष्ट नहीं होते तो इस प्रकार की घटनाएं होती हैं.


अपना सियासी लाभ देखकर विधायक करते हैं बगावत
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बसपा के बागी विधायक इसलिए साथ छोड़ रहे हैं कि उन्हें लग रहा है कि मायावती से दलित समाज के लोग दूर हो रहे हैं. इसलिए वह विधायक अपना अस्तित्व बचाने के उद्देश्य से दूसरे दलों के संपर्क में आ रहे हैं. इसके राजनीतिक मायने भी हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने अपने समीकरण दुरुस्त करने के उद्देश्य से विधायक अपनी सुविधानुसार काम कर रहे हैं. कुल मिलाकर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा में 7 विधायकों की हुई बगावत ने तमाम तरह के नए राजनीतिक समीकरण खड़े कर दिए हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी दलित समुदाय और मुस्लिम बिरादरी का कितना साथ पाकर चुनाव में कितनी सीटें जीत पाती है.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी में विधायकों की बगावत का मामला कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए जब बसपा के विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दूसरे दलों के संपर्क में आए और इसका सियासी नुकसान बहुजन समाज पार्टी को उठाना पड़ा. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के 7 विधायकों का पार्टी से बगावत करने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे बहुजन समाज पार्टी अपने विधायकों को संभाल नहीं पा रही. इस बगावत के बाद बहुजन समाज पार्टी को इसका सियासी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

विधायकों को नहीं संभाल पा रही बसपा!
इससे पहले कब हुई बसपा में हुई बगावतअभी पिछले साल की बात है जब राज्यसभा के चुनाव होने थे. उस समय बहुजन समाज पार्टी के उन्नाव से विधायक अनिल सिंह पार्टी से बगावत कर भाजपा के उम्मीदवार को मतदान किया था. उस समय भी अनिल सिंह ने पार्टी से बगावत करके भाजपा का साथ दिया. हालांकि अनिल सिंह औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल नहीं हुए, लेकिन वह लगातार बीजेपी नेताओं के साथ संपर्क में रहे और बीजेपी के कार्यक्रमों में भी आते जाते रहे. बहुजन समाज पार्टी ने अनिल सिंह को भी पार्टी से निलंबित करने का काम किया था, लेकिन किसी पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल न होने के कारण उनकी सदस्यता समाप्त नहीं हो सकी.


बसपा के 40 विधायक टूटकर बनाई थी मुलायम सिंह सरकार
साल 2003 में उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत किसी पार्टी को न मिलने के कारण मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने के लिए बसपा के 40 विधायकों को तोड़ लिया था. यह उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक बड़ा घटनाक्रम था. 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद 2003 में बसपा के 40 विधायकों को तोड़कर मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार बनाई थी. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने तमाम तरह के गंभीर और विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप मुलायम सिंह सरकार पर लगाए थे. इसके बाद जब 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही.

बसपा विधायकों को संतुष्ट नहीं कर पा रही हैं मायावती
राजनीतिक विश्लेषक प्रद्युम्न तिवारी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी के मल्टीनेशनल कंपनी वाली छवि है और वह विधायकों से भी उसी तरह का व्यवहार रखती है. तमाम बार विधायकों के आचरण को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं जब पार्टी के विधायक अपनी पार्टी नेतृत्व से संतुष्ट नहीं होते तो इस प्रकार की घटनाएं होती हैं.


अपना सियासी लाभ देखकर विधायक करते हैं बगावत
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बसपा के बागी विधायक इसलिए साथ छोड़ रहे हैं कि उन्हें लग रहा है कि मायावती से दलित समाज के लोग दूर हो रहे हैं. इसलिए वह विधायक अपना अस्तित्व बचाने के उद्देश्य से दूसरे दलों के संपर्क में आ रहे हैं. इसके राजनीतिक मायने भी हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने अपने समीकरण दुरुस्त करने के उद्देश्य से विधायक अपनी सुविधानुसार काम कर रहे हैं. कुल मिलाकर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा में 7 विधायकों की हुई बगावत ने तमाम तरह के नए राजनीतिक समीकरण खड़े कर दिए हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी दलित समुदाय और मुस्लिम बिरादरी का कितना साथ पाकर चुनाव में कितनी सीटें जीत पाती है.

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