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स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गाथाओं की गवाह हैं लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें, आप भी जानिए इतिहास

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Published : Aug 9, 2023, 10:33 PM IST

इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से राजधानी के ऐतिहासिक धरोहर रेजीडेंसी में हुए स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्णिम गाथा दर्ज है. अतीत की कई कहानियां समेटे रेजीडेंसी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है.

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स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें. देखें खबर




लखनऊ : इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से राजधानी के ऐतिहासिक धरोहर रेजीडेंसी में हुए स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्णिम गाथा आज भी दर्ज है. गदर के निशान देखने हों तो रेजीडेंसी से ज्यादा मकबूल जगह और कहीं नहीं मिलेगी. उस दौर में आजादी के मतवालों ने अंग्रेज अधिकारियों के गढ़ रेजीडेंसी में पूरे 86 दिन तक कब्जा जमाए रखा. इस दौरान कई छोटे-बड़े अंग्रेज सैनिक और अधिकारी आजादी के मतवालों के हाथों मारे गए. संघर्ष में कई हिंदुस्तानी सैनिक भी शहीद हुए. अतीत की कई कहानियां समेटे रेजीडेंसी आज भी शहर आने वाले पर्यटकों को अपने मोहपाश में जकड़ लेती है.

लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.



इतिहासकार हाफिज किदवई ने बताया कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम महासंग्राम के नाम से जाना जाता है. इसका रेजीडेंसी से गहरा ताल्लुक है. 1857 में रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब, बेगम हजरत महल व मौलवी अहमद उल्लाह शाह जैसे अनेकों वीर थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. लखनऊ की रेजिडेंसी से बेगम हजरत महल और अहमद उल्लाह शाह का एक खास जुड़ाव है. मौलवी अहमद उल्लाह शाह को फैजाबाद के जेल में रखा गया था, लेकिन जब क्रांति का बिगुल बजा तो वह जेल को तोड़कर बाहर आए. लखनऊ के चिनहट छावनी को जीता, दिलकुशा को जीता और फिर वह बेगम हजरत महल को मिलते हुए, लखनऊ को जीतते हुए आगे बढ़े. इसके बाद रेजिडेंसी को घेर लिया. रेजीडेंसी का घेरा ऐसा था कि अंग्रेजों को यह भी नहीं समझ में आ रहा था कि वह कहां जाएं. एक तरफ बेगम हजरत महल थी दूसरी तरफ मौलवी अहमद उल्लाह शाह थे और उनके सैनिक थे. यह लड़ाई ऐसी छिड़ी कि रेजीडेंसी के बाहर हमारे सैनिक और आम लोग इनसे लड़ रहे थे और अंदर अंग्रेज कैद थे.

लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.



मौलवी अहमदुल्लाह शाह के सैनिकों ने यूनियन जैक पर ईंट बरसाना शुरू किया. अंग्रेजों का उस समय यह सोचना था कि यूनियन जैक यानी कि अंग्रेजों के झंडे पर कौन पत्थर बरसा रहा है. यह अपने आप में बड़ी बात थी कि अंग्रेजों के झंडे यूनियन जैक जो कभी नहीं झुका वह लखनऊ की रेजीडेंसी में स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा पत्थरों से जमींदोज कर दिया गया. आज भी वह इंग्लैंड के एक म्यूजियम में रखा गया है जिस पर यह लिखा गया है कि लखनऊ रेजीडेंसी में जमींदोज कर दिया गया था. यह हमारी क्रांतिकारियों की स्ट्रैटेजी थी उन्हें पता था कि हम अपनी पूरी ताकत से लड़ रहे हैं अगर नहीं भी जीतेंगे तो हम अंग्रेजों का मान सम्मान सब जमींदोज कर देंगे. यूनियन जैक को मिट्टी में मिला देंगे. क्रांतिकारियों ने यूनियन जैक को मिट्टी में मिलाने के साथ ही लखनऊ को आजादी भी दिलाई बेगम हजरत महल के बेटे बिरजिस कद्र को गद्दी पर बैठा दिया गया.

स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.

कुछ समय बाद कुछ हालात ऐसे बने कि दोबारा वह लड़ाई आगे छिड़ी तो हमारे क्रांतिकारियों को असफलता का मुंह देखना पड़ा. इसमें अंग्रेजों की गद्दारियां थीं. हमारे क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी से स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी और उन्होंने जीता भी. इसलिए हम हमेशा यह कहते हैं कि रेजीडेंसी हमारी हार की निशानी नहीं बल्कि हमारी जीत की निशानी है. रेजीडेंसी को हमेशा इसलिए याद रखा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में क्रांतिकारियों ने यहां पर अपना लहू बहाया है और यहीं से लड़ाई के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए और इसका सम्मान हम कभी घटने नहीं देंगे.

स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गवाह लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.




रेजीडेंसी में घूमने आए दिल्ली के तुहीम देव एक सोशल एक्टिविस्ट हैं जो कि अपने स्टूडेंट के साथ घूमने आए. उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में रेजीडेंसी का अहम रोल है. आज भी महासंग्राम की लड़ाई के समय गोली बारूद के निशान यहां की इमारतों पर बने हुए हैं. राजधानी के विशेष धरोहरों में से एक माना जाता है. इसलिए प्रशासन और सरकार को इसे संरक्षित करना चाहिए, ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी इसके इतिहास को जान सके. ट्रेज़री हाउस का निर्माण 1851 में 16,897 रुपये में हुआ था. यह एक तल का भवन था जो सादे दोहरे स्तम्भों पर आधारित था. 1857 के स्वंतत्रता संग्राम में इस ट्रेजरी का प्रयोग एनफील्ड कारतूस बनाने के कारखाने के रूप में हुआ था.

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