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भाजपा में शामिल हुए अन्य दलों के नेताओं की नहीं हो रही पूछ!

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Published : May 24, 2023, 12:00 PM IST

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विधानसभा चुनाव 2022 से पहले कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था. पार्टी ज्वाइन करने से पहले वरिष्ठ नेताओं ने वादे भी किये थे. क्या भाजपा में शामिल हुए अन्य दलों के नेताओं की पूछ नहीं हो रही? पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में पिछले छह साल से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपना कद बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करती रही है. 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले ही कई दलों के नेताओं ने भाजपा में शामिल होना शुरू कर दिया था. यह सिलसिला अब तक जारी है. निकाय चुनाव के समय भी तमाम नेताओं को भाजपा में शामिल कराया गया. कुछ माह बाद अगले साल लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय जनता पार्टी का कुनबा लगातार बढ़ता रहेगा. दूसरे दलों से भाजपा में आने वाले नेताओं की कुछ ख्वाहिशें और सपने जरूर होंगे. कई नेताओं से पार्टी में शामिल कराते समय वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने वादे भी किए थे, जो अब तक पूरे नहीं हो सके हैं. स्वाभाविक है कि एक समय के बाद पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. जो बड़े नेता उम्मीदें लेकर भाजपा में आए थे, ख्वाहिशें पूरी न होने पर वह फिर से दल बदल सकते हैं.



ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी साथ में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह व शतरुद्र प्रकाश (फाइल फोटो)
ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी साथ में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह व शतरुद्र प्रकाश (फाइल फोटो)
शतरुद्र प्रकाश
शतरुद्र प्रकाश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की कैंट विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे पूर्व मंत्री शतरुद्र प्रकाश का नाम बड़े नेताओं में शुमार है. समाजवादी आंदोलन में छात्र जीवन से ही सक्रिय रहे शतरुद्र प्रकाश सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी रहे. मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने शतरुद्र प्रकाश को मंत्रिमंडल में अपना सहयोगी बनाया. वह काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर काफी सक्रिय रहे और मंदिर से गृहकर हटवाने, दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक हटवाने जैसे कई आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते रहे. अखिलेश यादव के सपा मुखिया बन जाने के बाद उन्हें पार्टी की नीतियां रास नहीं आईं. इसी दौरान वाराणसी में विश्वनाथ कॉरिडोर पर काम शुरू हुआ, जिसके बाद वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से काफी प्रभावित हुए. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले शतरुद्र प्रकाश समाजवादी नेता राजनारायण की पुण्यतिथि पर 31 दिसंबर 2021 को भाजपा में शामिल हो गए. उन्हें ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने पार्टी में शामिल कराया. बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की. वह जब भाजपा में आए थे, तो विधान परिषद के सदस्य थे. उन्हें संसदीय कार्यों का गहरा अनुभव है. शरुद्र प्रकाश को भाजपा में शामिल हुए डेढ़ साल से ज्यादा वक्त चुका है, लेकिन उन्हें पार्टी अथवा सरकार में कोई भूमिका नहीं मिली है.


डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्र देव सिंह व अपर्णा यादव (फाइल फोटो)
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्र देव सिंह व अपर्णा यादव (फाइल फोटो)
अपर्णा यादव
अपर्णा यादव

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे पुत्र प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव जब समाजवादी पार्टी में थीं, उस वक्त भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफें बेझिझक करती रहती थीं. इससे कयास लगाए जाने लगे थे कि वह देर-सवेर भाजपा की हमराही बन सकती हैं. अपर्णा यादव कोरोना वायरस संकट के समय काफी सक्रिय रहीं. इससे पहले उन्होंने 2017 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी की रीता जोशी से पराजय का सामना करना पड़ा. अपर्णा यादव 19 जनवरी 2022 को उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गईं. अपर्णा ने विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए खूब प्रचार भी किया. पहले कयास लगे कि भाजपा उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ. बाद में उपचुनाव और रिक्त एमएलसी सीटों पर भी अपर्णा के नाम की चर्चा रही, हालांकि भाजपा ने इन चर्चाओं पर मुहर नहीं लगाई. अपर्णा को भी भाजपा में शामिल हुए डेढ़ साल गुजर चुका है. स्वाभाविक है कि वह मुख्यधारा की राजनीति से अब तक दूर ही हैं. भाजपा ने अब तक न तो उन्हें संगठन में अवसर दिया है और न ही सरकार में. स्वाभाविक है कि भाजपा की इस नीति से अपर्णा यादव निराश तो जरूर होंगी, हालांकि कोई भी नेता सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बचता ही है.


भाजपा ज्वाइन करते सत्यदेव त्रिपाठी (फाइल फोटो)
भाजपा ज्वाइन करते सत्यदेव त्रिपाठी (फाइल फोटो)
सत्यदेव त्रिपाठी
सत्यदेव त्रिपाठी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रदेश उपाध्यक्ष अध्यक्ष रहे सत्यदेव त्रिपाठी ने 15 दिसंबर 2021 को भारतीय जनता पार्टी ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के समक्ष भाजपा की सदस्यता ली. सत्यदेव त्रिपाठी के साथ उनके बेटे ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण ली थी. त्रिपाठी अपने लिए भले ही ज्यादा कुछ न चाहते हों, लेकिन अपने बेटे के लिए निश्चितरूप से भाजपा में कहीं न कहीं जगह जरूर चाहते होंगे. पूर्व मंत्री हेमराज वर्मा चार मई 2023 को प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हुए हैं. वह पीलीभीत से लोकसभा का चुनाव लड़ने की उम्मीद लेकर भाजपा में शामिल हुए हैं. अभी आप कुछ माह बाद ही पता चल पाएगा कि भाजपा उनकी ख्वाहिश पूरी करेगी या नहीं. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में महासचिव रहे अजय त्रिपाठी मुन्ना, आगरा की खेरागढ़ विधानसभा सीट का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व विधायक भगवान सिंह कुशवाहा समेत तमाम ऐसे नेता हैं, जो बड़ी उम्मीद लेकर भाजपा में आए हैं, हालांकि अभी तक उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पाई हैं. जाहिर है भाजपा अपने फैसले अपनी तरह से ही लेती है. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि भाजपा में आए नेताओं में किसका भविष्य क्या होगा?

प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह व हेमराज वर्मा (फाइल फोटो)
प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह व हेमराज वर्मा (फाइल फोटो)
हेमराज वर्मा
हेमराज वर्मा

राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप यादव कहते हैं 'अन्य दलों से इतर भाजपा में फैसले एक व्यक्ति पर केंद्रित न होकर सामूहिकता में लिए जाते हैं. नेतृत्व सबसे पहले पार्टी का हित देखता है. यदि कोई नेता पार्टी के लिए उपयोगी है, तो सही वक्त पर उसका उपयोग भाजपा जरूर करेगी. हां, इसमें वक्त लग सकता है. राजनीत धैर्य का काम है और नेताओं को अपने समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए. सपा-बसपा जैसे दलों में निर्णय एक व्यक्ति को ही लेने होते हैं, जबकि भाजपा में ऐसा नहीं है. दूसरी बात भाजपा अपनी संगठन के कार्यकर्ताओं को पहले और अधिक महत्व देती है. यह सही बात भी है. यदि बाहर से आए नेताओं को पार्टी काडर के नेताओं से अधिक तवज्जो दी जाएगी, तो इससे उनमें निराशा ही होगी, जो किसी भी पार्टी के लिए अच्छा नहीं है.'

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