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1400 करोड़ का स्मारक घोटाला, जानिए कैसे पत्थरों की खरीद में हुआ खेल

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Published : Apr 10, 2021, 3:24 PM IST

Updated : Apr 10, 2021, 6:13 PM IST

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में स्मारक बनवाए थे. इन स्मारकों को बनवाने में पैसों का जमकर बंदरबांट किया गया था. लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा की जांच में 1400 करोड़ के स्मारक घोटाले की बात सामने आई थी. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में पढ़ें, 'क्या है स्मारक घोटाला, कैसे खुली थी इस घपले की पोल'....

स्मारक घोटाला
स्मारक घोटाला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के बहुचर्चित स्मारक घोटाला मामले में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) की लखनऊ टीम ने बड़ी कार्रवाई की थी. विजिलेंस टीम ने राजकीय निर्माण निगम के चार पूर्व सीनियर अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. विजिलेंस की इस कार्रवाई से हड़कंप मचा हुआ है. यही नहीं विजिलेंस टीम राजकीय निर्माण निगम, एलडीए समेत कई अन्य अधिकारियों पर भी शिकंजा कस सकती है. आइये जानते हैं कि आखिर क्या है 'स्मारक घोटाला', जिसने मायावती सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया और इन पूर्व अधिकारियों पर अब गाज गिरी है.

दरअसल, उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती बहुजन समाज पार्टी की सरकार के दौरान लखनऊ और नोएडा में बहुजन नायकों के नाम पर बनाए गए कि स्मारक और अन्य पार्क के निर्माण में बड़ा घोटाला हुआ था. करीब 1400 करोड़ रुपये का स्मारक घोटाला लोकायुक्त ने अपनी जांच में पाया था.

लाल पत्थरों की खरीद में हुआ था खेल
लोकायुक्त की जांच में यह बात सामने आई थी कि लखनऊ और नोएडा में मायावती सरकार में स्मारक बनाने के लिए जिन पत्थरों का उपयोग किया गया, उनकी खरीद-फरोख्त में बड़ा फर्जीवाड़ा किया गया. पत्थर यूपी के मिर्जापुर से खरीदे गए और उन्हें राजस्थान से खरीद कर लाने को लेकर यह बड़ा घोटाला किया गया था. विजिलेंस डिपार्टमेंट ने इस घोटाले में शामिल कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है.

लखनऊ-नोएडा में बनवाए गए थे स्मारक
बसपा सरकार में मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ व नोएडा में बहुजन नायकों के नाम पर बड़े पैमाने पर पार्क और स्मारक बनवाए थे. राजधानी लखनऊ के गोमती नगर व कानपुर रोड की तरफ जेल रोड के आसपास बड़े पैमाने पर पार्क बनाए गए और तमाम महापुरुषों की प्रतिमाएं लगाई गईं. स्मारकों को बनाने के लिए पत्थरों की खरीद-फरोख्त की गई. लाल पत्थर को खरीद कर उन्हें अधिक कीमतों पर दिखाकर या फर्जीवाड़ा किया गया था, जिसका लोकायुक्त जांच में खुलासा हुआ.

सारा काम मिर्जापुर में और खरीद दिखाई गई राजस्थान से
खास बात यह थी कि पार्कों और स्मारकों में बड़े पैमाने पर लाल पत्थर का उपयोग किया गया था. सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि प्रदेश के मिर्जापुर जिले से पत्थरों को खरीदा गया और इनको कागज में राजस्थान से लाकर उन्हें तरासते हुए लखनऊ और नोएडा में स्थापित कराने का काम किया गया और इसी में बड़ा फर्जीवाड़ा कर दिया गया.

मिर्जापुर में तराशने के बाद लखनऊ-नोएडा में लगाया गया था पत्थर
राजस्थान के बजाय यह सारा काम मिर्जापुर में ही किया गया था. मिर्जापुर में बड़ी मशीनें लगाकर पत्थरों को तराशने का काम किया गया और फिर नोएडा और लखनऊ में बनाए गए स्मारकों व पार्कों में इनका उपयोग किया गया, लेकिन कागजों में इन पत्थरों की खरीद प्रक्रिया और तराशने का काम राजस्थान में दिखाया गया और यहीं से शुरू हुआ फर्जीवाड़े का खेल.

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लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने पकड़ा था बड़ा घोटाला
लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा की जांच में यह बात सामने आई थी कि खनन नियमों के खिलाफ कंसोर्सियम बनाने के साथ ही ₹840 प्रति वर्ग फुट के हिसाब से अधिक वसूली की गई. जांच में यह बात भी सामने आई थी कि अफसरों ने मनमाने ढंग से पत्थरों की खरीद को लेकर नियम बदले और तय मानकों से अलग रेट तय किए गए. दाम तय करने के बाद पट्टे देने का भी काम शुरू किया गया था.

मंत्रियों-अफसरों के करीबियों को मिले ठेके
मंत्रियों और अफसरों के नजदीकी लोगों की फर्म को बड़ा काम दिया गया था. इसके बाद जब नियम ताक पर रखकर काम हुआ तो यह घोटाला हो गया. पत्थरों की सप्लाई में भी कमीशन लेने के आरोप लगे थे. लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने जांच कर अपनी रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भेजी थी. सिफारिश के बावजूद अखिलेश सरकार ने सीबीआई जांच और एसआईटी जांच कराने के बजाय विजिलेंस को जांच करने के लिए निर्देश दिया था.

विजिलेंस ने जांच कर की है कार्रवाई
इसके बाद विजिलेंस ने गोमती नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराने के बाद जांच तो शुरू की, लेकिन जांच धीरे-धीरे चलती रही. सपा शासनकाल में भी कोई प्रगति नहीं हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और इसमें तेजी दिखाई.

Last Updated : Apr 10, 2021, 6:13 PM IST
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