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आखिर क्यों हैं...राजधानी के अस्पतालों में अलग-अलग नियम, डायरेक्टर ने कही ये बात

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Published : Aug 4, 2021, 7:50 PM IST

ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी स्थित दो जिला अस्पतालों में मरीजों की स्थिति और अस्पतालों की गाइडलाइन जानने के लिए निरीक्षण किया. इस दौरान दोनों अस्पतालों के डायरेक्टर ने ईटीवी भारत की टीम से कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं.

लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए हैं अलग-अलग नियम
लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए हैं अलग-अलग नियम

लखनऊ : प्रदेश भर के अस्पतालों को कोरोना काल के दौरान कोविड और नॉन कोविड अस्पतालों के दो समूहों में बांटा गया था. कोविड व नॉन कोविड अस्पतालों के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अलग-अलग गाइडलाइन बनाई थी. बता दें कि कोरोना काल के दौरान अधिकतर कोविड अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गईं थीं. इसी क्रम में राजधानी लखनऊ में स्थित बलरामपुर जिला अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाया गया था. जिसके कारण राजधानी स्थिति बलरामपुर जिला अस्पताल और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल की गाइडलाइन अलग-अलग हो गई थी. हालांकि स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की तरफ से दोनों अस्पतालों के लिए नियम-कानून एक ही हैं.

अस्पतालों में मरीजो की स्थिति के आधार पर कुछ प्रक्रिया बदल गई है. ऐसी स्थिति में अस्पतालों में इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों में अक्सर कंन्फ्यूजन की स्थिति बनी रहती है. जिसके कारण मरीज और उनके तीमारदारों को कई बार अस्पतालों के चक्कर लगाने होते हैं. इसी कन्फ्यूजन की समस्या को समझने और दूर करने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी स्थित दोनों जिला अस्पातालों का निरीक्षण किया. ईटीवी भारत की टीम ने दोनों अस्पतालों में अलग-अलग गाइडलाइन जानने का प्रयास किया. इस विषय पर ईटीवी भारत की टीम ने सिविल अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. सुभाष सुंद्रियाल से बातचीत की. डॉ. सुभाष सुंद्रियाल ने ईटीवी भारत को बताया, कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद बड़ी संख्या में मरीज अस्पताल में इलाज कराने आ रहे थे.

लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए हैं अलग-अलग नियम

सभी मरीजों को इलाज मिल सके इसलिए अस्पताल में डॉ. कोविड जांच के लिए नहीं कहते हैं. सिविल अस्पताल हमेशा मरीज को बेहतर इलाज मिल सके इसके लिए काम करता है. डॉक्टर बताते हैं कि मरीज को देखकर भी पता चल जाता है कि उसे क्या बीमारी है. अगर डॉक्टर को लगता है कि मरीज सीरियस है, तो तुरंत उसे ट्रीटमेंट दिया जाता है. ऐसी स्थिति में कोरोना की जांच अनिवार्य नहीं है.

कोविड जांच से बढ़कर है मरीज की जान

डॉ. सुभाष सुंद्रियाल कहते हैं कि अस्पताल में इलाज कराने आ रहे मरीजों के लिए कोरोना की जांच जरूरी है, लेकिन गंभीर मरीजों का तुरंत इलाज करना भी जरूरी है. कोरोना जांच मरीज की जान से बढ़कर नहीं है. अस्पताल में मरीज इलाज के लिए आता है तो आरटीपीसीआर(RTPCR) की जांच कराने में उसे 2 दिन लग जाएंगे. एंटीजन जांच कराने में भी कम से कम उसे 1 दिन लग जाएगा. ऐसी स्थिति में अगर सही समय पर मरीज को इलाज न मिला तो उसकी मौत हो सकती है. इसलिए मरीज की स्थिति और बीमारी देखकर ट्रीटमेंट दिया जाता है.

अगर किसी मरीज का छोटा या बड़ा ऑपरेशन होना है, तो उसके लिए कोविड जांच रिपोर्ट जरूरी है. बलरामपुर जिला अस्पताल के निदेशक डॉ. रविंद्र कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि बलरामपुर अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाया गया था. जिसकी वजह से अस्पताल की ओपीडी(OPD) सेवाएं बंद कर दी गईं थीं. बीते सोमवार से इमरजेंसी(Emergency) और सामान्य ओपीडी सेवाएं पहले की तरह सुचारू रूप से शुरु हो गईं हैं. ओपीडी और इमरजेंसी में दिखाने के लिए भी मरीजों को कोरोना जांच की नेगेटिव रिपोर्ट लाना अनिवार्य है. इस प्रक्रिया से मरीज, डॉक्टर और अस्पताल का अन्य स्टॉफ भी सुरक्षित रहेगा.

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