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संविधान दिवस विशेष: जानिए क्यों आंबेडकर को पाकिस्तान की संविधान सभा से देना पड़ा था इस्तीफा?

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Published : Nov 26, 2019, 10:29 AM IST

Updated : Nov 26, 2019, 12:07 PM IST

पूरे भारत में 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है. इसे बनाने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे थे. उस समय तत्कालीन मुद्रा मूल्य में 64 लाख रुपये खर्च हुए थे. यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. इस अवसर पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ डॉ. पीएम त्रिपाठी से बातचीत की.

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लखनऊ: भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. संविधान बनने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे. उस समय तत्कालीन मुद्रा मूल्य में 64 लाख रुपये खर्च हुए थे. संविधान सभा के कई सदस्यों की अलग-अलग समितियां बनाई गई थीं, जिन्होंने संविधान के अलग-अलग प्रारूपों को रचा. डॉ. भीम राव आंबेडकर संविधान सभा के सदस्य थे. 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है. इस खास मौके पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ डॉ. पीएम त्रिपाठी से बातचीत की.

26 नवंबर को मनाया जाता है संविधान दिवस.


26 नवंबर को मनाया जाता है संविधान दिवस
डॉ. पीएम त्रिपाठी का कहना है कि जनमानस में संविधान के प्रति जागरूकता होनी चाहिए. कैबिनेट मिशन 1946 के तहत एक संविधान सभा गठन करने का प्रारूप तय किया गया. यह निश्चित हुआ कि संविधान सभा के जो सदस्य होंगे, उसमें कुछ प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाएंगे. कुछ जो देसी राजे-रजवाड़े, रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में होंगे. कुछ एक मुख्य आयुक्त प्रांत हुआ करता था (चीफ कमिश्नर प्रोविंस) वहां से आएंगे. इस तरह से आंशिक रूप से निर्वाचित और आंशिक रूप से नामित संस्था संविधान सभा के रूप में बनी. 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान बन कर संविधान सभा के द्वारा स्वीकार किया गया. इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है.


संविधान बनने में लगे 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन
संविधान बनने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे. उस समय तत्कालीन मुद्रा मूल्य में 64 लाख रुपये खर्च हुए थे. संविधान सभा के कई सदस्यों की अलग-अलग समितियां बनाई गई थीं. जैसे संघ सरकार पर उसके अधिकार क्या होंगे, उसकी एक समिति थी. राज्य सरकारों के अधिकार क्या होंगे, उस पर एक समिति थी. हमारा राष्ट्रीय ध्वज क्या होगा, उस पर एक समिति थी. उत्तर पूर्व के राज्य असम और जनजातीय क्षेत्र, उनको भारत में कैसे शामिल किया जाएगा. इस तरीके से 20 से अधिक समितियां थी. इन सब के ऊपर एक प्रारूप समिति थी. सारी समितियां अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती थी. प्रारूप समिति ने उसको संकलित और समेकित करके वास्तविक संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया. इसके सदस्य बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर थे. इसलिए संविधान का नाम लेते ही मन-मस्तिष्क में डॉ. आंबेडकर का चित्र उभरता है.

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माउंटबेटन प्लान के बाद आंबेडकर थे पाकिस्तान संविधान सभा के सदस्य
जब संविधान सभा के सदस्यों के लिए चुनाव हो रहे थे, तब डॉ. आंबेडकर जहां से चुने गए थे, वह पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा पड़ता था, जो आज बांग्लादेश है. भारत की संविधान सभा बनी. 3 जून 1947 को माउंटबेटन प्लान में कहा गया कि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा होगा. भारत की संविधान सभा को दो हिस्सों में बांट दिया गया. एक भारत की संविधान सभा और दूसरी पाकिस्तान की संविधान सभा. तब आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य हुए.


अब उनके पास दो ही रास्ते थे कि वह संविधान सभा की सदस्यता जारी रखें या अब भारतीय संविधान सभा में चुनकर आते. तो अब दोबारा कैसे चुनाव हो? यानी कोई व्यक्ति जो पहले से संविधान सभा का सदस्य वह इस्तीफा दे. तब हिंदू महासभा के सदस्य जो मुंबई प्रोविंस से चुनकर आए थे, उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने डॉ. आंबेडकर से अपने जगह पर आने को कहा. तब आंबेडकर साहब भारत की संविधान सभा में आए.


भारत का संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान
भारत की पहली संविधान सभा की बैठक संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के पुस्तकालय कक्ष में हुई. उस दिन ऑल इंडिया रेडियो से इसका सीधा प्रसारण किया गया. उस प्रसारण में बताया जा रहा था कि क्या-क्या हो रहा है. इस तरीके से संविधान सभा के द्वारा 11 सत्र आयोजित हुए. इन 11 सत्र में 2 साल 11 महीने 18 दिन लगा. यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. उस समय संविधान में 22 भाग 395 अनुच्छेद और केवल 8 अनुसूचियां थीं. आज उन 8 अनुसूचियों की संख्या बढ़कर 12 हो गई हैं.


अटल सरकार में संविधान समीक्षा आयोग का हुआ गठन
वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. 1950 से सन् 2000 तक भारतीय संविधान के लागू होने के 50 वर्ष पूरे होने पर अटल सरकार ने निर्णय लिया कि संविधान समीक्षा आयोग बनाया जाए, जो इसकी समीक्षा करे कि संविधान पिछले 50 वर्षों में कितना सफल या विफल रहा. इसमें क्या और सुधार या संशोधन किए जा सकते हैं. तब एक 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग बनाया गया. इसके अध्यक्ष पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एमएन वेंकटचलैया थे. उस हाई पावर कमीशन ने रिपोर्ट पेश की. उसका अगर निष्कर्ष निकालें तो यह था कि संविधान विफल नहीं है, बल्कि हमने ही अपने संविधान को विफल कर दिया है.


भारत का संविधान विश्व के कुछ सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम विधि और मस्तिष्क के विचारों का सुंदर प्रदर्शन है. जो स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार, संघ-राज्य संबंध, राज्यों और नागरिकों के बीच संबंध, राज्य के नीति निदेशक तत्व, संसद, कार्यपालिका, विधानसभा न्यायपालिका, इनसे जुड़े तमाम प्रावधान, अधिकार, कर्तव्य का स्पष्ट दिशा निर्देश देता है. संविधान देश की सबसे बड़ी विधि है, इसलिए सुप्रीम लॉ ऑफ द लैंड, हाईएस्ट लॉ ऑफ द लैंड, भूमि विधि या आधारभूत विधि भी कहा जाता है.

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संविधान ने दी सबको ताकत
संविधान में स्पष्ट तौर पर प्रस्तावना की प्रथम पंक्तियां हैं. हम भारत के लोग, वी द पीपल ऑफ इंडिया. यह पंक्तियां स्पष्ट कहती हैं कि हमारे देश में सर्वोच्च शक्तियां संप्रभुता, प्राधिकार, किसी सेना अध्यक्ष, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री में, प्रधान न्यायाधीश में, किसी एक व्यक्ति में नहीं है. हम भारत के नागरिक में है. आपको बराबर का उतना ही अधिकार देता है, जितना समाज में किसी अन्य व्यक्ति को देता है. संविधान में कोई भेदभाव नहीं है न धर्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न पंथ, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर. हमारे संविधान की विशेषता है कि आपकी सामाजिक, आर्थिक, परिस्थिति कुछ भी हो, संविधान की दृष्टि में सभी बराबर नागरिक हैं. हमारा संविधान हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के लोक कल्याण, गरिमा और अस्तित्व के लिए गारंटी देता है.


अनुच्छेद 370 को शिथिल करने और 35ए को हटाने में संविधान के तहत हुआ कार्य
संविधान के अनुसार अनुच्छेद 370 को शिथिल करने और अनुच्छेद 35A को समाप्त करने की प्रक्रिया अपनाई गई. अनुच्छेद 370 में अगर कोई बदलाव हो सकता है, तो वह वहां की विधानसभा की अनुमति से हो सकता है. विधानसभा अस्तित्व में नहीं थी, भंग हो चुकी थी. राष्ट्रपति शासन लागू था. इसलिए राज्य का शासन प्रशासन राज्यपाल संभाल रहे थे. विधानसभा की शक्तियां, कार्यपालिका की शक्तियां यह दोनों राज्यपाल में विद्यमान थी. 370 को शिथिल करने और अनुच्छेद 35A को हटाने की प्रक्रिया अपनाई गई. 370 में साफ-साफ लिखा था कि उसकी सार्वजनिक सूचना राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाए, जो भारत के राजपत्र में प्रकाशित हुई. संसद में गृहमंत्री ने सबको इस बारे में सूचित किया. इसमें कोई संवैधानिक त्रुटि या संवैधानिक व्यवस्था का पालन नहीं हुआ, ऐसा नहीं है.

Intro:लखनऊ: संविधान दिवस विशेष: संविधान बनने में खर्च हुए 64 लाख रुपये, आंबेडकर को पाकिस्तान संविधान सभा से क्यों देना पड़ा था इस्तीफा

लखनऊ। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान संविधान बनने में दो वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे। उस समय तत्कालीन मुद्रा मूल्य में 64 लाख रुपये खर्च हुए थे। संविधान सभा के कई सदस्यों की अलग-अलग समितियां बनाई गई थी जिन्होंने संविधान के अलग-अलग प्रारूपों को रचा। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीम राव आम्बेडकर थे। आम्बेडकर पूर्वी पाकिस्तान(मौजूदा बांगला देश) से चुनकर संविधान सभा के सदस्य हुए लेकिन देश विभाजन की वजह से संविधान सभा भी विभाजित कर दी गयी। तब आम्बेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा में चले गए। उन्होंने इस्तीफा दिया। हिन्दू महासभा के सदस्य ने आम्बेडकर के लिए अपनी सीट छोड़ दी और वह भारत के संविधान सभा के सदसय बने। फिर अध्यक्ष बने। 26 नवम्बर को संविधान दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत से बात करते हुए संविधान विशेसज्ञ डॉ पीएम त्रिपाठी ने ऐसी ही तमाम रुचिकर जानकारियां दी।


Body:कैप्टन त्रिपाठी कहते हैं आपका यह विषय देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस पर चर्चा की जाए तो घंटों बात की जा सकती है। लेकिन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं जिससे कि जनमानस में संविधान के विषय के प्रति जागरूकता भी हो और वह समझ पाएं कि हमारा संविधान कैसे बना। तो संक्षेप में यदि कहें तो कैबिनेट मिशन 1946 के तहत एक संविधान सभा गठन करने का प्रारूप तय किया गया और यह निश्चित हुआ की संविधान सभा के जो सदस्य होंगे उसमें कुछ कुछ प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाएंगे, कुछ जो देसी राजे, रजवाड़े, रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में होंगे। कुछ एक मुख्य आयुक्त प्रांत हुआ करता था चीफ कमिश्नर प्रोविंस वहां से आएंगे। इस तरह से फिर आंशिक रूप से निर्वाचित और आंशिक रूप से नामित संस्था संविधान सभा के रूप में बनी। 26 नवंबर 1949 का वह तिथि है जिस दिन हमारा संविधान बन करके संविधान सभा के द्वारा स्वीकार कर लिया गया। इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दूसरी यह बात यह है कि हमारा संविधान बनने में दो वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे। उस समय तत्कालीन मुद्रा मूल्य में 64 लाख रुपये खर्च हुए थे। संविधान सभा के कई सदस्यों की अलग-अलग समितियां बनाई गई थी जिन्होंने संविधान के अलग-अलग प्रारूपों को रचा। जैसे संघ सरकार पर उसके अधिकार क्या होंगे, एक समिति थी। राज्य सरकारों के अधिकार क्या होंगे, उस पर एक समिति थी। हमारा राष्ट्रीय ध्वज क्या होगा उस पर एक समिति थी। उत्तर पूर्व के राज्य असम और जनजातीय क्षेत्र, उनको भारत में कैसे शामिल किया जाएगा। इस तरीके के से 20 से अधिक समितियां थी। इन सब के ऊपर एक प्रारूप समिति थी। जो सारी समितियां अपनी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती थी, प्रारूप समिति ने उसको संकलित और समेकित कर के वास्तविक संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया जिसके अध्यक्ष बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर साथी और इसलिए संविधान का नाम लेते हैं संविधान के विषय में पढ़ते हैं तो हमारे मन मस्तिक में जो छवि चित्र उभरती है वह डॉक्टर अंबेडकर जी की उभरती है।

एक बड़ा आश्चर्य जनक तथ्य आपको बताऊं कि जब संविधान सभा के सदस्यों के लिए चुनाव हो रहे थे, तब डॉ आंबेडकर संविधान सभा के लिए जहां से चुने गए थे, वह पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा पड़ता था जो आज का बांग्लादेश है। और वह चुनाव हो गए तब भारत की संविधान सभा बनी। लेकिन तीन जून 1947 को माउंटबेटन प्लान में यह कहा गया कि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा होगा और इसलिए भारत की संविधान सभा को भी दो हिस्सों में बांट दिया गया। एक भारत की संविधान सभा और दूसरी पाकिस्तान की संविधान सभा। तो आंबेडकर साहब दरअसल पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य हो गए। अब उनके पास दो ही रास्ते थे, या तो वह अपनी संविधान सभा की सदस्यता जारी रखते या अब भारतीय संविधान सभा में चुनकर आते। तो अब दोबारा कैसे चुनाव हो। तो यानी कि कोई ना कोई व्यक्ति जो पहले से संविधान सभा का सदस्य वह अपना इस्तीफा दे। तब आपको आश्चर्य होगा उस समय वैचारिक मतभेद जो भी रहते हों। राजनीतिक मतभेद जो भी रहे हों। लेकिन वह बड़े लोग थे और उनके बड़े हृदय थे। "यह और बात है जो चुपचाप खड़े रहते हैं जो लोग बड़े हैं वह बड़े रहते हैं"। हिंदू महासभा के सदस्य ने अपनी मुंबई प्रोविंस से जो चुनकर आए थे सीट से इस्तीफा दे दिया और डॉक्टर अंबेडकर को कहा कि आप आइए हमारी जगह पर। यानी हिंदू महासभा जिसको कि आमतौर पर यह माना जाता है कि वह कथित ब्राह्मण मनुवादी व्यवस्था की पोषक और अंबेडकर साहब इसके विरोधी, राजनीतिक और वैचारिक विरोधाभास। यह तथ्य और तत्व तो थे फिर भी एक दूसरे के प्रति इतना समादर था। तब अंबेडकर साहब भारत की संविधान सभा में आए।

भारत की संविधान सभा की जो बैठक थी। पहली बैठक संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के पुस्तकालय कक्ष में हुई। उस दिन ऑल इंडिया रेडियो में इसका सीधा प्रसारण किया था। उस प्रसारण में बताया जा रहा था कि क्या क्या हो रहा है। संविधान सभा की प्रक्रिया किस किस तरह से गुजर रही है। इस तरीके से हमारी संविधान सभा के द्वारा 11 सत्र आयोजित हुए। इन 11 सत्र में दो साल 11 महीने 18 दिन लगा। तो हमारा संविधान बना। यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। उस समय जब यह संविधान बना था तो 22 भाग 395 अनुच्छेद और केवल 8 अनुसूचियां थीं। आज उन आठ अनुसूचियों की संख्या बढ़कर 12 हो गई हैं। इस तरीके से हमारा संविधान बना।

अटल सरकार में संविधान समीक्षा आयोग का हुआ गठन

वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी। 1950 से सन 2000 तक भारतीय संविधान के लागू होने के 50 वर्ष पूर्ण होने पर अटल सरकार ने निर्णय लिया कि संविधान समीक्षा आयोग बनाया जाए। जो इसकी पड़ताल करे। समीक्षा करे कि हमारा संविधान पिछले 50 वर्षों में कितना सफल या विफल रहा है। उसका क्या लेखा-जोखा है। इसमें क्या और सुधार हो सकते हैं। संशोधन किए जा सकते हैं। तब एक 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग बनाया गया। इसके अध्यक्ष पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एमएमएन वेंकटाचलैया थे। उस हाई पावर कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पेश की। उसका अगर निष्कर्ष निकाले तो ये था कि हमारा संविधान विफल नहीं है। बल्कि हमने ही अपने संविधान को विफल कर दिया है। भारत का संविधान विश्व के कुछ सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम विधि और मस्तिष्क के विचारों का सुंदर प्रदर्शन है। जो हमें स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार, संघ राज्य संबंध, राज्यों एवं नागरिकों के बीच संबंध, राज्य के नीति निदेशक तत्व, संसद, कार्यपालिका, विधानसभा न्यायपालिका। इनसे जुड़े तमाम प्रावधान, अधिकार, कर्तव्य, इनके बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश देता है और संविधान चूंकि देश की सबसे बड़ी विधि है। इसलिए सुप्रीम ला ऑफ द लैंड। हाईएस्ट ला ऑफ द लैंड, भूमि विधि या आधारभूत विधि भी कहा जाता है।

संविधान ने दिया सबको दी ताकत

देखिए सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे संविधान में स्पष्ट तौर पर प्रस्तावना की प्रथम पंक्तियां हैं। हम भारत के लोग, वी द पीपल ऑफ इंडिया। यह पंक्तियां मसीहाई हैं। यह सिद्ध करती हैं। स्पष्ट करती हैं कि हमारे देश में सर्वोच्च शक्तियां, संप्रभुता, प्राधिकार किसी सेना अध्यक्ष, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री में, प्रधान न्यायाधीश में, किसी एक व्यक्ति में नहीं है। हम भारत के नागरिक में है। किसी एक संस्था में नहीं है हम भारत के नागरिकों में है। यानी भारत की सर्वोच्च सत्ता, शक्ति, संप्रभुता का वास हम भारत के नागरिकों में है। जिसमें भारत का वह प्रत्येक नागरिक जो समाज की पंक्ति में, कतार में किसी भी कोने में किसी भी स्तर पर, किसी जगह पर खड़ा है। हमको आप को बराबर का उतना ही अधिकार देता है। जितना समाज में किसी अन्य व्यक्ति को देता है। हमारे संविधान में कोई भेदभाव नहीं। न धर्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न पंथ, लिंग, जन्म स्थान, उत्पत्ति के आधार पर। हमारे संविधान की विशेषता है कि आपकी सामाजिक, आर्थिक, परिस्थिति कुछ भी हो, संविधान की दृष्टि में सभी बराबर नागरिक हैं। बहुत कम देश के ऐसे नागरिक हैं जिनमें मौलिक अधिकार, व्यक्ति की निजता, गरिमा, प्रतिष्ठा, उसके प्राण और जीवन के अस्तित्व, जीवन की गुणवत्ता के लिए जो आवश्यक हैं, वह सारे प्रावधान हमारे संविधान में हैं। हमारा संविधान हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के लोक कल्याण, गरिमा एवं अस्तित्व के लिए गारंटी देता है।

अनुच्छेद 370 को शिथिल करने और 35-ए को हटाने में संविधान के तहत हुआ कार्य

मेरा यह मानना है कि संविधान के अनुसार ही अनुच्छेद 370 को शिथिल करने और अनुच्छेद 35a को समाप्त करने की प्रक्रिया अपनाई गई है, वह विधि संवत और संविधान सम्मत है। उसके पीछे कारण यह है कि अनुच्छेद 370 में अगर कोई बदलाव हो सकता है, तो वह वहां की विधानसभा की अनुमति से हो सकता है। विधानसभा अपने अस्तित्व में नहीं थी। विधानसभा भंग हो चुकी थी। विधानसभा चुकी भांग थी। राष्ट्रपति शासन लागू चल रहा था। इसलिए राज्य का शासन प्रशासन राज्य का राज्यपाल संभाल रहे थे। तो विधानसभा की शक्तियां कार्यपालिका की शक्तियां। यह दोनों शक्तियां राज्यपाल में विद्यमान थी। तो विधानसभा के द्वारा जो अनुमति, जो प्रक्रिया अपनाई जाती वह राज्यपाल ने उन शक्तियों का प्रयोग किया। जो सत प्रतिशत भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार था । और इसलिए जो 370 को शिथिल करने और अनुच्छेद 35a को हटाने की प्रक्रिया अपनाई उसके बाद 370 में साफ-साफ लिखा था कि उसकी सार्वजनिक सूचना राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाए जोकि भारत के राजपत्र में प्रकाशित हुई। संसद में गृहमंत्री ने सबको इस बारे में सूचित किया। तो मेरे विचार से इसमें कोई संवैधानिक त्रुटि या संवैधानिक व्यवस्था का पालन नहीं हुआ ऐसा नहीं है।

दिलीप शुक्ला-9450663213

नोट-संविधान दिवस के लिए संविधान विशेषज्ञ डॉ पीएम त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से बातचीत की। इसका वीडियो एफटीपी से भेजा जा चुका है।


Conclusion:
Last Updated : Nov 26, 2019, 12:07 PM IST
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