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चुनाव चिन्ह निरस्त होने पर चुनाव लड़ने की क्या है व्यवस्था ? राजनीतिक विश्लेषक ने दी पूरी जानकारी

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Published : Dec 27, 2021, 7:19 PM IST

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) अब पास आ गया है. लेकिन इसी बीच शिवपाल यादव की पार्टी का चुनाव चिन्ह चुनाव आयोग ने वापस ले लिया है. आखिर चुनाव आयोग पार्टियों का चुनाव चिन्ह क्यों निरस्त कर देता है, और इसके बाद वो पार्टियों किस तरह से चुनाव मैदान में उतरती हैं, इसके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने, चुनाव सुधार को लेकर काम करने वाले राजनीतिक विश्लेषक पूर्व न्यायाधीश सीबी पांडेय से बातचीत की.

राजनीतिक विश्लेषक पूर्व न्यायाधीश सीबी
राजनीतिक विश्लेषक पूर्व न्यायाधीश सीबी

लखनऊ : यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) से पहले उत्तर प्रदेश में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को आवंटित चुनाव चिन्ह चाबी निर्वाचन आयोग ने वापस ले ली है. ऐसी स्थिति में अब शिवपाल सिंह यादव के पास दो रास्ते हैं. पहला ये कि वो समाजवादी पार्टी के साथ हुए गठबंधन के अंतर्गत उनके चुनाव चिन्ह साइकिल पर चुनाव मैदान में उतरे या फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की तरह ही मिलने वाले चुनाव चिन्ह पर अपने प्रत्याशियों को उतारें.


राजनीतिक विश्लेषक व चुनाव सुधार को लेकर काम करने वाले जस्टिस सीबी पांडे का कहना है कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिन्ह आवंटित करने के कुछ नियम बनाए गए हैं. उसके अनुसार मान्यता प्राप्त पार्टी के लिए अलग नियम हैं. रजिस्टर्ड पार्टियों के लिए अलग नियम हैं और निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए अलग है. मान्यता प्राप्त जो पार्टी हैं, कम से कम 1 से 2 फीसद वोट पाना अनिवार्य होता है. प्रदेश और देश स्तर पर एक व दो फीसद वोट मिलने पर ही उनके चुनाव चिन्ह यथावत रहते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक पूर्व न्यायाधीश सीबी

जो पार्टियां केवल रजिस्टर्ड हैं और नई पार्टी हैं, उनको दो बार चुनाव लड़ने का अवसर मिलता है. चुनाव के दौरान प्रदेश में 1 फीसद और देश स्तर पर 2 फीसद वोट मिलने पर ही चुनाव चिन्ह बरकरार रहता है. नहीं तो चुनाव चिन्ह निरस्त करने की व्यवस्था है. जो भी नई पार्टियां हैं, उन्हें दो बार चुनाव लड़कर अपना वोट 1 फीसद प्रदेश में पाने का अवसर दिया जाता है. अगर दो बार चुनाव में वह 1 फीसद वोट प्रदेश में नहीं पाती हैं, तो उसकी भी स्थिति निर्दलीय प्रत्याशी जैसे रजिस्टर्ड राजनीतिक दल की हो जाती है.


राजनीतिक विश्लेषक पूर्व न्यायाधीश सीबी पांडेय कहते हैं कि आयोग से चुनाव चिंह निरस्त होने के बाद की स्थिति में जो अनारक्षित चुनाव चिन्ह हैं, वही उन्हें दिए जाने की व्यवस्था है. इस व्यवस्था के अंतर्गत पहले इन पंजीकृत राजनीतिक दलों को अनारक्षित चुनाव चिन्ह में से चुनाव चिन्ह का विकल्प चुनने की छूट रहती है, उसके बाद वह अनारक्षित चुनाव चिन्ह निर्दलीय उम्मीदवारों को आवंटित किए जाते हैं. निर्वाचन आयोग ने यही व्यवस्था निर्धारित की है. हालांकि यह व्यवस्था भेद करने वाली व्यवस्था है और इसको लेकर तमाम विवाद भी हैं, जो न्यायालय में विचाराधीन हैं.

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वहीं, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अरविंद सिंह यादव ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा- चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत चुनाव चिन्ह निरस्त किया गया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव, अखिलेश यादव आपस में बैठकर रणनीति बनाकर तय करेंगे कि चुनाव मैदान में कैसे उतारना है. जबकि ईटीवी भारत को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के सिंबल साइकिल पर चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है और इसको लेकर उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बातचीत भी कर ली है.


उल्लेखनीय है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की स्थापना शिवपाल सिंह यादव ने वर्ष 2018 में की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को चुनाव चिह्न चाबी आवंटित किया था. चाबी चुनाव चिह्न के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी तो प्रसपा को महज 0.31 फीसद वोट ही मिले. ऐसी स्थित में पिछले दिनों निर्वाचन आयोग ने चुनावों में 1 फीसद वोट न मिलने की वजह से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को आवंटित चाबी को निरस्त कर दिया था.



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