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2022 विधानसभा चुनाव में बसपा से छिटक सकता है परंपरागत वोट बैंक

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Published : Aug 17, 2021, 2:09 PM IST

Updated : Aug 17, 2021, 2:41 PM IST

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक साधने के लिए अपने-अपने हिसाब से नए-नए समीकरण तैयार कर रही हैं. इस समय यूपी में ब्राह्मण वोटों को साधने में करीब सभी पार्टियां लगी हुई हैं और इसमें बसपा नंबर एक पर है. हालांकि ब्राह्मण को साधने के चक्कर में कहीं बसपा का अपना परंपरागत वोट बैंक न खिसक जाए, इसका भी ध्यान बसपा को रखना होगा. पढ़ें ईटीवी भारत की ये रिपोर्ट..

बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे 2022 विधानसभा नजदीक आ रहा है, उसी गति से राजनीतिक दलों की सक्रियता भी बढ़ती जा रही है. सभी दल मतदाताओं का रुख अपनी ओर मोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में परंपरागत रूप से किसी दल विशेष के लिए वोट करने वाले मतदाताओं के विषय में भी चर्चा हो रही है कि क्या इस बार भी मतदाता पुराने दलों के साथ ही रहेंगे या अपने रुख में बदलाव लाएंगे. ऐसे परंपरागत मतदाताओं में सबसे पहला नाम आता है बहुजन समाज पार्टी का. ऐसा माना जाता है कि दलित मतदाता की पहली पसंद बहुजन समाज पार्टी रही है. दलितों में भी बड़ी संख्या में जाटव मतदाता मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि इस बार सूरतेहाल में बदलाव देखने को मिल सकता है.

सत्ता के गलियारों में बीते साढ़े चार साल में ऐसे कई मौके आए हैं, जब मायावती की बहुजन समाज पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी के साथ सांठगांठ करने के आरोप लगे. उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव रहे हों या विधान परिषद के. समाजवादी पार्टी ने कई बार बसपा पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगाए हैं. बहुजन समाज पार्टी ने नए कृषि कानूनों को लेकर भी भाजपा के खिलाफ कभी आक्रामक तेवर नहीं दिखाए. बसपा ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिराने के प्रयास में भी भाजपा का साथ दिया. यही नहीं साढ़े चार साल में भाजपा सरकार को लेकर मायावती की अप्रत्याशित नर्मी देखने को मिली. विपक्षी दल सपा और कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी को भाजपा की 'बी' टीम कहते रहे हैं. कहीं न कहीं भाजपा की सरकार से असंतुष्ट दलित मतदाता को लगता है कि बसपा के साथ रहकर भी वह भाजपा के खिलाफ नहीं हो पाएंगे, क्योंकि मायावती की भाजपा के प्रति नरमी से आभास होता है कि चुनाव बाद भाजपा-बसपा की गठबंधन सरकार बन सकती है. ऐसे में स्वाभाविक है कि बसपा का वह परंपरागत वोटर जो भाजपा के खिलाफ है, बसपा को वोट करने से बचेगा. इसका स्वाभाविक फायदा समाजवादी पार्टी को मिल सकता है, क्योंकि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को यही पार्टी सबसे कड़ी टक्कर देती दिखाई दे रही है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा.

यूपी में है 20 फीसद से ज्यादा है दलित आबादी
उत्तर प्रदेश को 24 करोड़ की आबादी में 20.7 फीसद से ज्यादा दलित हैं. इनके लिए राज्य की 14 लोकसभा और 86 विधानसभा की सीटें आरक्षित रखी गई हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 76 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल दलित आबादी का 55 फीसद जाटव या चमार मतदाता हैं. वहीं पश्चिमी यूपी में यह संख्या 68 फीसद हो जाती है. स्वाभाविक है कि प्रदेश की तमाम ऐसी सीटें हैं, जहां इस वर्ग के मतदाता का रुझान किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.

सपा ने कहा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं बसपा और भाजपा
इस संबंध में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा कहते हैं कि मायावती जी ने खुद कहा था कि सपा को सत्ता में नहीं आने देंगे. अखिलेश को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे. मायावती जो कर रही हैं, वह भाजपा की ताकत बढ़ाने के लिए कर रही हैं. जनता को यह मालूम हो गया है. मायावती का जो जनाधार था वह सपा में आ गया है. रोज तमाम बसपाई नेता अखिलेश जी से मिलते हैं सपा में शामिल होने के लिए, क्योंकि बसपा भाजपा को जिताना चाहती है और हम लोग भाजपा को हराने के लिए काम करते हैं. जो भाजपा चाहती है, वही बसपा का मकसद है. दोनों ही सपा को रोकना चाहते हैं. दोनों की एक ही नीति है.

किरणमय नंदा कहते हैं कि उन्हें विश्वास है कि जनता सपा को चुनेगी और अखिलेश यादव को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाएगी. बसपा समाजवादी पार्टी की बदौलत लोकसभा में 10 सीटें पा गई है, लेकिन अब स्थिति बदलने वाली है. नंदा दावा करते हैं कि भाजपा-बसपा दोनों मिलकर दो अंक से ज्यादा सीटें नहीं ला पाएंगे. नंदा कहते हैं कि 2022 का चुनाव एक महारण है. इस चुनाव से ही तय हो जाएगा कि 2024 में किसकी सरकार बनेगी. दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. उत्तर प्रदेश की हर वर्ग, हर वर्ण की जनता ने मन बना लिया है कि अखिलेश यादव को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाना है.

क्या कहती है बहुजन समाज पार्टी
बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता फैजान खान कहते हैं कि पार्टी मुखिया मायावती ने हमेशा सेकुलरिज्म का साथ दिया, लेकिन कुछ लोग मुसलमानों को डर दिखाकर भाजपा की 'बी' टीम बता देते हैं, जबकि आजम खां समेत सपा के कई बड़े नेताओं ने अपनी पार्टी ही के नेताओं पर आरएसएस से मिले होने का आरोप लगाया है. जहां तक दलितों के सपा में जाने की बात है, उसके तथ्य स्पष्ट हैं. जब हमने सपा से गठबंधन किया था, तब सीटें किसकी ज्यादा आईं? इसका मतलब साफ है कि दलित और मुस्लिम बसपा के साथ हैं. तभी हमें ज्यादा सीटों पर जीत मिली. वह खुद अपनी कन्नौज सीट नहीं बचा पाए थे. वह खुद बताएं कि यादव व मुस्लिम कितना उनके साथ था. हमने लोकसभा में 10 सीटें जीती थीं. देश में जब भी जरूरत होती है, मायावती जी धर्मनिरपेक्षता के साथ दिखाई देती हैं. राजस्थान में भाजपा के साथ मिलने के सवाल पर फैजान कहते हैं कि यदि कोई हमारे पार्टी के विधायकों को छीनेगा, क्या हम तब भी उसके साथ खड़े रहेंगे. भाजपा का डर दिखा-दिखाकर यह लोग कब तक हमें जीना और राजनीति सिखाएंगे. यदि दलित सपा के साथ थे तो राज्यसभा में हमारे दलित प्रत्याशी का उन्होंने क्यों विरोध किया. सपाइयों ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा का साथ दिया था, बसपा ने नहीं.

क्या कहते हैं विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मनीष मिश्रा कहते हैं कि बसपा की पूरी राजनीति जाति आधारित रही है. जातीय समीकरण पर ही उनकी पूरी राजनीति निर्भर रही है. बसपा का मानना है कि 2007 के चुनावों में उन्हें दलितों के अलावा ब्राह्मणों और यादवों का भी वोट मिला, जिसके कारण उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन सकी. 2012 विधानसभा चुनाव की हार के बाद बसपा को लगने लगा कि वह सिर्फ दलित वोटों के सहारे आगे नहीं बढ़ सकते. इसके बाद पार्टी ने दूसरी जातियों को रिझाना शुरू कर दिया. सपा और बसपा ब्राह्मणों को जोड़ने के प्रयासों में लगी हुई हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों यह भूल रही हैं कि ब्राह्मणों को रिझाने के चक्कर में इनका कैडर वोट भी खिसक सकता है. बसपा का कैडर वोट भी अब उसके साथ नहीं दिखता. भाजपा की सरकारों ने विभिन्न योजनाओं के तहत गरीब तबके को खुद से जोड़ने में सफलता हासिल की है. आने वाला वक्त बताएगा कि यह वोट बैंक बसपा के साथ ही रहता है या दूसरा ठिकाना खोजेगा. सपा जरूर फायदे में दिखेगी. बसपा का नाराज मतदाता शायद भाजपा की ओर न जाकर सपा की ओर जाए.

Last Updated : Aug 17, 2021, 2:41 PM IST
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