ETV Bharat / state

सदस्यता अभियान से BSP का किनारा, अब छोटी-छोटी कैडर मीटिंग पर फोकस

author img

By

Published : Oct 27, 2022, 2:02 PM IST

बहुजन समाज पार्टी ने निकाय चुनाव को ध्यान में रखते हुए सदस्यता अभियान से किनारा करने का मन बनाया है. कैडर को फिर से पार्टी के साथ जोड़ने की जरूरत बसपा सुप्रीमो को महसूस होने लगी है. जिसके चलते पार्टी का अब पूरा फोकस छोटी-छोटी कैडर मीटिंग पर होगा.

मायावती.
मायावती.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी ने निकाय चुनाव से पहले सदस्यता अभियान से किनारा कर लिया है और अब पार्टी का पूरा फोकस छोटी-छोटी कैडर मीटिंग पर होगा. लगातार बिखरते जा रहे कैडर को फिर से पार्टी के साथ जोड़ने की जरूरत बसपा सुप्रीमो को महसूस होने लगी है. इसीलिए बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम वाले रास्ते पर फिर से पार्टी को लाने के कोशिशों में मायावती जुट गई हैं.

जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय और कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी.

बसपा मुखिया मायावती ने हाल ही में सभी पदाधिकारियों को निर्देश जारी किए कि जून माह से अब तक चलने वाला सदस्यता अभियान खत्म कर दिया जाए. इसकी जगह पदाधिकारी सीधे छोटी-छोटी कैडर मीटिंग का आयोजन करें और कैडर को सबसे पहले अपने साथ मजबूती से जोड़ें. बहुजन समाज पार्टी से दलितों के छिटकने पर विपक्षी दलों के नेता और राजनीतिक विश्लेषक इसे मायावती की बड़ी चिंता मानते हैं.

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी पहली बार अपने सिंबल पर स्थानीय निकाय चुनाव में हिस्सा लेने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मायावती रिव्यू करना चाहती हैं कि उत्तर प्रदेश में उनकी वास्तविक स्थिति आखिर है क्या? क्या उनकी इतनी भी हैसियत बची है कि लोकसभा चुनाव मजबूती से लड़ सकें. यही वजह है कि निकाय चुनाव पर उनका पूरा फोकस है. हाल ही में पार्टी मुख्यालय पर मायावती ने एक सम्मेलन भी आयोजित किया था, जिसमें बड़े पदाधिकारियों के साथ मंथन कर स्थानीय निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के बेहतर परिणाम लाने के बड़े प्रयास करने की बात कही थी.

पार्टी की तरफ से मंडल कोऑर्डिनेटर्स के साथ ही जिलाध्यक्षों को निर्देशित किया गया है कि अच्छे प्रत्याशियों के नामों का चयन करें. लगभग 5 माह तक प्रदेश भर में चलाए गए सदस्यता अभियान का भी मायावती ने फीडबैक लिया. हालांकि यह फीडबैक बसपा सुप्रीमो को बिल्कुल भी रास नहीं आया. लिहाजा, बीएसपी सुप्रीमो ने साफ तौर पर कह दिया कि अब मेंबरशिप कैंपेन न चलाकर कैडर पर पूरा फोकस करें. छोटी-छोटी कैडर मीटिंग का आयोजन कर अपने लोगों के बीच में जाएं. पहले की तरह उन्हें पार्टी के साथ जोड़े जिससे बेहतर परिणाम मिल सकें.

विधानसभा चुनाव में जीता सिर्फ एक प्रत्याशी
मायावती की पार्टी के गिरते ग्राफ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी 400 से ज्यादा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी, लेकिन 1 ही प्रत्याशी सदन तक पहुंचने में सफल रहा. बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर बलिया जिले के रसड़ा से उमाशंकर सिंह ही चुनाव जीतकर विधायक बन पाए. अन्य सभी सीटों पर बसपा का बुरा हाल हुआ. साल 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो मायावती की पार्टी उत्तर प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि महज 19 सीटों पर ही पार्टी के प्रत्याशी जीतने में सफल हो पाए थे.

लोकसभा में 10 सीटों पर जीते प्रत्याशी
जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटें मिली थीं, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा मुखिया मायावती ने समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. इसमें मायावती को तो फायदा मिला था लेकिन अखिलेश को काफी घाटा हुआ था. हालांकि मायावती को अखिलेश के साथ गठबंधन करने में जितनी सीटें जीतने की उम्मीद थी उन उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी सिर्फ 10 सीटें जीतने में सफल हो पाई थी.

दलितों पर अत्याचार पर खामोश रहती हैं बहन जी, क्यों जुड़ेगा कैडर
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी पर प्रदेश के दलित समाज ने भरोसा किया और समर्थन दिया, लेकिन उसका परिणाम हुआ कि बसपा मुखिया सिर्फ और सिर्फ अपनी पार्टी और अपना बैंक अकाउंट भरती रहीं. दलितों पर अत्याचार होता रहा. पिछले 6 साल से भाजपा की उत्तर प्रदेश में सरकार है. लगातार दलितों के साथ अत्याचार हुए. हाथरस, उम्भा, लखीमपुर, आजमगढ़ जैसी तमाम घटनाएं हुईं. सबसे ज्यादा दलितों पर अत्याचार उत्तर प्रदेश में हो रहा है, लेकिन बहन जी कहीं पर उनकी आवाज उठाती नहीं दिखीं. उनकी आवाज सिर्फ कांग्रेस पार्टी उठा रही है, प्रियंका गांधी उठा रही हैं. आज इसीलिए दलित समाज अपने पुराने घर कांग्रेस वापस आ रहा है. बहुजन समाज पार्टी को न तो मेंबरशिप के लिए लोग मिल रहे हैं न ही उनके जो कार्यकर्ता थे वह उनके साथ खड़े हैं. जब आप आवाज नहीं उठाएंगे तो यह स्वाभाविक है कि लोग आपको छोड़ देंगे. आज वह अपने पुराने घर वापस आ चुके हैं. आज बसपा की जमीन खिसक चुकी है, क्योंकि बसपा के कार्यकर्ता और कैडर को यह बात पता चल चुकी है कि बसपा दूसरी भाजपा है, जो दलितों पर अत्याचार होने पर मूकदर्शक बनी रहती है.

पुराने रास्ते पर लौट रहीं मायावती
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के छोटी-छोटी कैडर मीटिंग के आयोजन करने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन का कहना है कि अब बसपा मुखिया मायावती को कांशीराम के रास्ते पर चलने की याद आ गई है. जिस तरह कांशीराम छोटी-छोटी मीटिंग कर लोगों को अपने साथ जोड़ते थे और उसी का नतीजा था कि बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में कई बार सरकार बनाने में सफल रही. मायावती ने अपने कैडर से ही दूरी बना ली थी. यही वजह है कि वर्तमान में बहुजन समाज पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. अब सदस्यता अभियान के बजाय मायावती ने कैडर पर ध्यान देने की बात कही है तो इसका फायदा स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी को मिल भी सकता है. मायावती की चिंता इस बात को भी लेकर है कि कांग्रेस ने हाल ही में दलित वर्ग से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया, वहीं उत्तर प्रदेश में भी दलित वर्ग से ही आने वाले बृजलाल खाबरी को कमान सौंप दी. उधर भारतीय जनता पार्टी लगातार दलितों के हित वाली योजनाएं चला रही है जिसमें उन्हें आवास देना और राशन उपलब्ध कराना शामिल है. इससे दलित वर्ग काफी लाभान्वित हुआ है. लिहाजा, भारतीय जनता पार्टी के साथ भी दलित जुड़ गया है. अब मायावती को चिंता सता रही है दलितों को कैसे रोका जाए. यही वजह है कि फिर से वह पार्टी के मूल मार्ग पर लौटने वाली हैं.

इसे भी पढे़ं- मायावती ने हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए जारी की 40 स्टार प्रचारकों की सूची

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.