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UP Election 2022: क्या छोटे दलों से सियासी गठजोड़ अखिलेश यादव को दिलाएगी कामयाबी?

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Published : Dec 22, 2021, 6:00 PM IST

Updated : Dec 22, 2021, 7:31 PM IST

अखिलेश यादव ने बनाई खास रणनीति.
अखिलेश यादव ने बनाई खास रणनीति.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Asssembly Election 2022) से पहले सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने छोटे-छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ किया है. आइए जानते हैं कि अखिलेश यादव ने किस रणनीति के तहत छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है.

लखनऊ : बड़े दलों से गठबंधन का खामियाजा भुगत चुके सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव इस बार सावधानी के साथ बीजेपी के छोटे दलों से गठबंधन के फार्मूले पर काम कर रहे हैं. इस दिशा में उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक के सभी छोटे दलों खासकर वह जो बीजेपी के विरोधी माने जाते हैं, से गठबंधन कर लिया है.

यही नहीं, उन्होंने अपने चाचा शिवपाल से भी गठबंधन कर इस बात के संकेत दे दिए कि वे इस बार के चुनाव में सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. हालांकि उनका यह गठजोड़ जमीनी स्तर पर उन्हें कितनी कामयाबी दिला पाएगा, इसका विश्लेषण गठबंधन की पार्टियों के सियासी ताकत को आंककर ही किया जा सकता है.

अखिलेश यादव ने बनाई खास रणनीति.

बता दें कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Asssembly Election 2022) में जीत हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी तैयारियों को तेजी से आगे बढ़ा रही है. एक तरफ जहां अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) जनाक्रोश रथयात्रा (Rath Yatra) के जरिए प्रदेशभर में कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं, तो वहीं छोटे दलों के वोट बैंकों को साधकर नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

इन दलों में मुख्य रूप से ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल, पूर्वांचल में अच्छा प्रभाव रखने वाले जनवादी पार्टी सोशलिस्ट, केशव देव मौर्य का महान दल शामिल है. इन दलों के साथ गठबंधन कर वह किसान, जाट, पाल, प्रजापति आदि जातियों का समर्थन हासिल कर सरकार बनाना चाहते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जिस प्रकार से अपनी रणनीति बना रहे हैं और छोटे दलों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उससे स्वाभाविक रूप से चुनावी लड़ाई दिलचस्प होगी. यह भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती भी साबित होगी.

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क्या है गठबंधन का सियासी गणित

प्रदेश में समाजवादी पार्टी के गठबंधन का सियासी गणित समझने के लिए हमें पहले गठबंधन के दलों की सियासी ताकत को जानना होगा. इसमें..

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पश्चिम यूपी में आरएलडी का जनाधार

समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी के साथ भी गठबंधन कर रखा है. एक दौर में आरएलडी की पश्चिम यूपी की सियासत में तूती बोलती थी. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे की वजह से जाट और मुस्लिम दोनों ही वोट बैंक बंट गए और इस दल से दूर चले गए. हालांकि चौधरी अजीत सिंह के निधन और किसान आंदोलन के चलते इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस दल की साख बढ़ी है. पार्टी भी पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से सक्रिय है.

बता दें कि आरएलडी का कोर वोटबैंक जाट समुदाय माना जाता है. यूपी में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी बताई जाती है. पश्चिम यूपी में यह प्रतिशत 17 के आसपास है. जाट समुदाय सहारनपुर, मेरठ और अलीगढ़ मंडल जिले की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करता है. इसके अलावा करीब 40 सीटों पर जाट बिरादरी का करीब चार फीसद वोट है जो सपा के खाते में जुड़ सकता है. रालोद का जाट समाज के बीच अच्छी पकड़ है.

सपा का आरएलडी से गठबंधन इस लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस गठबंधन से जाट और मुस्लिम वोटरों को एक साथ लाने में यदि कामयाबी मिली तो सपा को इसका सीधा फायदा होगा और वह बीजेपी को मात दे सकेगी.

जनवादी पार्टी के साथ सपा का गठबंधन

सपा का गठबंधन डॉ. संजय चौहान की जनवादी पार्टी के साथ भी है. जनवादी पार्टी पूर्वांचल के कुछ जिलों में सक्रिय है. जनवादी पार्टी के संजय चौहान को सपा के चुनाव निशान पर चंदौली संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा गया था लेकिन वो जीत नहीं सके. ऐसे में सपा प्रमुख उन्हें अपने साथ जोड़कर रखे हुए हैं. संजय का सियासी आधार लोनिया समुदाय के बीच है. पूर्वी यूपी के मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, चंदौली, देवरिया सहित तमाम जिले हैं जहां लोनिया समाज के वोट काफी अहम भूमिका अदा करते हैं.

महान दल की सियासी ताकत

अखिलेश यादव ने केशव देव मौर्य के महान दल के साथ गठबंधन किया है. महान दल का यूपी में सियासी आधार बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, आगरा, बिजनौर और मुरादाबाद इलाके के शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, कम्बोज, भगत, महतो, मुराव, भुजबल और गहलोत समुदाय के बीच है. यह सूबे की करीब 6 फीसदी आबादी बनती है. बता दें कि केशव मौर्य ने 2008 में महान दल का गठन किया था. पहली बार 2009 लोकसभा में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था.

तब पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी. इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में महान दल कोई सीट नहीं जीत सका था. हालांकि 20 सीटों पर उसे 50 हजार तक वोट मिले थे. पार्टी ने 2017 के चुनाव में 71 सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब उसे करीब साढ़े 6 लाख वोट मिले थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में महान दल के प्रदर्शन में 2012 की तुलना में गिरावट आई और सिर्फ चार विधानसभा कासगंज, मधुगढ़, अमांपुर और पटियाली में ही उनके प्रत्याशियों को 10 हजार तक वोट हासिल हुए थे.

ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन

ओमप्रकाश राजभर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे. इस बार सियासी तोल मोल में फेल होने पर उन्होंने सपा का दामन थाम लिया. बता दें कि ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर के रहने वाले हैं. यहां आसपास के जिलों में राजभर जाति का अच्छा वोट प्रतिशत है. गौरतलब है कि राजभर समाज का वोट पूर्वांचल में करीब 30 सीटों पर तीस हजार से लेकर 60 हजार वोट अलग-अलग क्षेत्र में हैं. ऐसे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का सपा का गठबंधन अखिलेश यादव को चुनावी लड़ाई में मजबूती प्रदान करेगा.

खत्म हुआ चाचा शिवपाल का इंतजार

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया (प्रसपा) के मुखिया व चाचा शिवपाल सिंह यादव का सपा के साथ गठबंधन का सपना भी पूरा हुआ. हाल ही में अखिलेश यादव खुद चाचा शिवपाल के घर पहुंचे और उनकी पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की.

इसके अलावा जनवादी सोशलिस्ट पार्टी लोनिया चौहान अति पिछड़े करीब 3 फीसद पूर्वांचल की करीब 30 से 40 सीटों पर समाज का दो फीसद वोट सपा को भाजपा को टक्कर देने में मदद करेगा.

Last Updated :Dec 22, 2021, 7:31 PM IST
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