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नीलकंठेश्वर धाम में सदियों से निभाई जा रही 'भोले बाबा के विवाह की परंपरा'

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Published : Mar 1, 2022, 5:13 PM IST

नीलकंठेश्वर धाम में सदियों से निभाई जा रही 'भोले बाबा के विवाह की परंपरा'
नीलकंठेश्वर धाम में सदियों से निभाई जा रही 'भोले बाबा के विवाह की परंपरा'

शिव रात्रि के पर्व पर ललितपुर जिले के पाली गांव में स्थित नीलकंठेश्वर धाम में मंगलवार को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की परंपरा धूमधाम से मनाई जाएगी. यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है.

ललितपुर : शिव रात्रि के पर्व पर ललितपुर जिले के पाली गांव में स्थित नीलकंठेश्वर धाम में मंगलवार को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की परंपरा धूमधाम से मनाई जाएगी. माता पार्वती और बाबा भोले के विवाह का कार्यक्रम कई वर्षों से नीलकंठेश्वर धाम में आयोजित किया जा रहा है. शिव रात्रि के पर्व पर शाम के वक्त भगवान भोले की बारात माता पार्वती से विवाह कराने के लिए पहुंचेगी. माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का कार्यक्रम बुंदेली परंपरा के तहत आयोजित किया जाता है.

नीलकंठेश्वर धाम में मौजूद है सदियों पुराना शिवलिंग

ललितपुर में बना नीलकंठेश्वर धाम अपने गर्भ में हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति और सभ्यता की कहानी समेटे हैं. यह पीठ ज्योतिष और तांत्रिक साधकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. मंदिर में विराजमान भगवान शिव की त्रिमुखी प्रतिमा का निर्माण नौवीं शताब्दी में चंदेल कालीन राजाओं के द्वारा कराया गया था.

मंदिर में मौजूद वास्तु शिल्प बेहद खास है. मंदिर में जाने के लिए 100 से ज्यादा सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है. मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश के साथ ही काले बलुए पत्थर पर भगवान शिव के त्रिमुखी दर्शन होते हैं. मंदिर के अंदर नीचे फर्श पर एकमुखी ज्योतिर्लिंग स्थापित है, साथ ही भगवान का अर्धनारीश्वर स्वरूप भी मौजूद है.

महाशिवरात्रि के पर्व पर इस धाम की शोभा देखते ही बनती है. इस पर्व पर मंदिर में भगवान भोलेनाथ और राजा हिमांचल की पुत्री गौरा का विवाह धार्मिक अनुष्ठानों के बीच बुंदेली परंपरा के साथ संपन्न कराया जाता है.

देर रात तक चलने वाले भगवान शिव और मां गौरा के विवाह के कार्यक्रम में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. भोलेनाथ के दरबार में हाजरी लगाने वाले भक्त बेलपत्ती, धतूरा, फल-फूल चढ़ाते हैं और दूध, दही, घी, गुड़, शहद और पानी से भगवान का रुद्राभिषेक करते हैं.

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