नेपाली घुमंतू हाथियों को आखिर क्यों भाया लखीमपुर खीरी का जंगल, किस वजह से नहीं लौट रहे नेपाल?

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Published : Dec 2, 2022, 4:39 PM IST

Etv bharat

नेपाली घुमंतू हाथी इन दिनों लखीमपुर खीरी के जंगल में घूम रहे हैं. वह नेपाल नहीं लौट रहे हैं. आखिर उन्हें यहां क्या भाया है चलिए जानते हैं.

लखीमपुर खीरीः नेपाली घुमंतू हाथी (Nepali nomadic elephants) इन दिनों लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के जंगल में उत्पात मचा रहे हैं. वह नेपाल नहीं लौट रहे हैं. ये हाथी नेपाल से दुधवा टाइगर रिजर्व से होते हुए दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के जंगल तक पहुंच गए हैं. वह पिछले पांच महीनों से किसानों के गन्ने के खेतों को तहस-नहस कर रहे हैं. नेपाली हाथियों की वजह से वन विभाग और किसान खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं.

दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व बफर जोन और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के जंगल से निकलकर किसानों के गन्ने के खेतों को तबाह करने वाले जंगली हाथियों को गन्ने की दो खास प्रजातियों का स्वाद ऐसा मुंह लगा है कि वह इलाका छोड़ने को तैयार नहीं हैं. दरअसल, करनाल गन्ना शोध संस्थान की ओर से विकसित सीओ 15023 गन्ना प्रजाति हाल के दो सालों से तराई के खीरी और आसपास के जिलों में किसानों ने बोनी शुरू की है. करनाल से ही विकसित सीओ 0238 वैरायटी में रेड रॉट नामक बीमारी लग जाने से बहुतायत क्षेत्रफल में अब इसे कम बोया जा रहा है. इसके विकल्प के तौर पर शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान से विकसित Cos13235 वैराइटी बोई जा रही है. इस प्रजाति के गन्ने का स्वाद नेपाली हाथियों को बहुत पसंद आ रहा है.

लखीमपुर खीरी में नेपाली घुमंतू हाथियों ने मचाई ये तबाही.

दक्षिण खीरी वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी संजय बिस्वाल कहते हैं कि नेपाली हाथी आम तौर पर एक महीने या 20-25 दिन रहकर वापस चले जाते थे. इस बार हाथी वापस जाने का नाम नहीं ले रहे हैं. हाथियों को इस इलाके की गन्ने की नई प्रजातियां काफी भा गईं हैं. उन्होंने बताया कि नेपाल से सटे तराई इलाके में बसे यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में नेपाल के वर्दिया और शुक्लाफांटा नेशनल पार्क से हर साल घुमंतू हाथियों का समूह आता है. घुमंतू दल अब किशनपुर सेंचुरी को पार कर दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के जंगल तक पहुंच रहा है. मोहम्मदी रेंज के जंगल आबादी से सटे जंगल है. यहां जंगल के किनारे कई गांव बसे हुए हैं. हाथियों के आने से हर साल यहां गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रही है. बीते चार माह से हाथियों का घुमंतू दल यहां से जाने का नाम नहीं ले रहा है.


बिहारीपुर के रहने वाले किसान राजपाल सिंह कहते हैं कि इस इलाके में हम बचपन से रहते चले आ रहे हैं. जंगली हाथी यहां कभी नहीं आते थे, पर पिछले दो सालों से हाथियों के झुंड हमारे इलाके में आने लगे हैं. हमने अपने खेतों में दो नई प्रजाति के गन्ने बोए हैं. हाथी इस फसल को तबाह कर दे रहे हैं. दो-तीन माह से नेपाली हाथियों का दल यहीं जमा है. करीब 50 गांव हाथियों से प्रभावित हैं.

इस बारे में डीएफओ दक्षिण खीरी वन प्रभाग संजय बिस्वाल कहते हैं कि हाथी भोजन की तलाश में ही नेपाल के वर्दिया और शुक्ला फाटा नेशनल पार्क से भारतीय दुधवा टाइगर रिजर्व, किशनपुर सेंचुरी व पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल तक आते हैं. इसका डोर उत्तराखंड के जंगल तक जाता है पर अब जगह-जगह गांव बस गए हैं. मानव आबादी बढ़ी है. हाथियों का प्राकृतिक रास्ता भी प्रभावित हुआ है. हाथियों ने नए ठिकाने तलाशने शुरू कर दिए हैं. यहां पर हाथियों को खाने में काफी अच्छी प्रजाति का गन्ना मिल रहा है. इस वजह से वे यहां रुक गए हैं. उनके मुताबिक 13235 और 15023 प्रजाति काफी मीठी होती है. यह प्रजाति हाथियों का काफी भा रही है.इस इलाके में कठिना नदी भी जो कि पानी का बढ़िया स्त्रोत है. इस वजह से नेपाली हाथी यहां टिक गए हैं. हमारी चिंता हाथियों और लोगों की सुरक्षा को लेकर भी है. हाथी फसल को नुकसान पहुंचाएं इसके लिए कोशिश की जा रही है. ग्रामीणों का सहयोग मिल रहा है. हाथी कभी-कभी नहीं मान रहे हैं.

वह बोले कि कोशिश है कि हाथियों को यहां से किसी तरह दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगल में वापस किया जाए, जिससे किसानों को कुछ राहत मिल सके. हमने उच्चाधिकारियों को भी इस बाबत जानकारी दे दी है. बता दें कि इस वक्त 50 से ज्यादा गांवों में इन नेपाली हाथियों का आतंक है. हाथियों के हमले में एक किसान की भी मौत हो चुकी है. हाथियों का ज्यादा दिन ठहरना किसानों के लिए नुकसानदायक है.

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