फिल्मों की कहानी भी सच होती है..यकीन न हो तो इन बॉक्सर बेटियों का संघर्ष पढ़ लीजिए

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Published : Oct 24, 2021, 6:21 PM IST

Updated : Oct 24, 2021, 6:55 PM IST

कुशीनगर का मान बढ़ा रहीं दो बॉक्सर बेटियां.
कुशीनगर का मान बढ़ा रहीं दो बॉक्सर बेटियां. ()

कुशीनगर की दो बॉक्सर बेटियों के संघर्ष की कहानी बॉलीवुड की एक फिल्म पर सटीक बैठ रही है. ये फिल्म है वर्ष 2016 में आई साला खड़ूस. चलिए जानते हैं इस फिल्म से इन होनहार बेटियों के संघर्ष और सफलता के जुड़ाव के बारे में..

कुशीनगरः वर्ष 2016 में रिलीज हुई अभिनेता आर माधवन की फिल्म साला खड़ूस को तो आपने देखा ही होगा. उस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे एक होनहार बॉक्सिंग कोच होनहार बॉक्सिंग खिलाड़ियों की तलाश करता है. उसकी तलाश के लिए वह पिछड़े इलाकों को चुनता है. वहां उसे एक ऐसी होनहार गरीब खिलाड़ी मिलती है जिसके अंदर जबरदस्त क्षमता होती है.

कुशीनगर का मान बढ़ा रहीं दो बॉक्सर बेटियां.

यह देखकर कोच उसे तैयार करने के लिए ठान लेता है और अपना सबकुछ दांव पर लगा देता है. आगे चलकर वह खिलाड़ी अपने कोच का नाम रोशन करती है. इस फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी ही कहानी है कुशीनगर की दो होनहार बॉक्सिंग खिलाड़ी अपराजिता मणि, शिल्पा यादव और उनके कोच राजेश गुप्ता की. एक गेस्टहाउस में अभ्यास करने वालीं ये बेटियां हरियाणा के हिसार में पांचवीं सीनियर नेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भाग लेने पहुंच गईं हैं. वहां रिंग में वह अपना जलवा दिखा रहीं हैं.

अभ्यास करतीं अपराजिता मणि.
अभ्यास करतीं अपराजिता मणि.

कोच हूबहू फिल्म जैसा..

उस फिल्म में कोच आदि को एक होनहार कोच के रूप में दर्शाया गया है. वह नए बॉक्सिंग खिलाड़ी की तलाश और उन्हें तराशने में अपना सबकुछ दांव पर लगा देता है. कुछ ऐसे ही बॉक्सिंग कोच राजेश गुप्ता. उन्होंने कुशीनगर में बॉक्सिंग कैंप की शुरुआत अपने बेटे को सिखाने से शुरू की. उन्हें उम्मीद थी कि उनके कैंप में होनहार खिलाड़ी जरूर आएंगे. ऐसा हुआ भी.

अभ्यास करती शिल्पा यादव
अभ्यास करती शिल्पा यादव

बिना किसी सरकारी मदद और सुविधाओं के अभाव में वह अपराजिता मणि और शिल्पा यादव जैसी खिलाड़ियों को न केवल वह निखारने में कामयाब रहे बल्कि उनकी कोचिंग की बदौलत ये दोनों खिलाड़ी प्रदेश में अपनी सफलता का झंडा लहरा रहीं हैं. कोच राजेश गुप्ता कहते हैं कि जब शुरू में कोई खेल मैदान नहीं मिला तो एक मित्र से गुजारिश करके उनके मैरिज हाल में ही खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर दी.

भाई ने बहन के लिए सपनों का बलिदान दे दिया

पांचवी नेशनल सीनियर बॉक्सिंग टूर्नामेंट में 48 किलो भारवर्ग में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाली कुशीनगर के हनुमाननगर पैकौली हाटा की रहने वाली शिल्पा यादव (19) के पिता रमाकांत यादव एक किसान हैं. तीन भाई व दो बहनों में सबसे छोटी शिल्पा के पिता की तबीयत खराब रहती है. इस वजह से दो भाई बाहर जाकर मजदूरी करते हैं. बहर और भाई अभी पढ़ रहे हैं.

शिल्पा की मानें तो छोटा भाई सुनील प्रदेश स्तरीय बॉक्सिंग खिलाड़ी है. उसको खेलता देख बॉक्सिंग सीखने की इच्छा हुई. बहन की यह इच्छा जानकर भाई सुनील उसे कोच के पास ले गया और बॉक्सिंग सिखवाने लगा. चूंकि घर चलाना भी जरूरी था. इस कारण भाई ने अपने सपनों का बलिदान दे दिया. 2012 से बॉक्सिंग के रिंग में उतरी शिल्पा ने 2014 में झांसी में सब जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोरखपुर मंडल की तरफ से गोल्ड मेडल जीत लिया.

इसके अलावा उसने कई और मेडल जीते. सन् 2019 में बनारस यूथ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में वह 48 किग्रा. भारवर्ग में प्रदेश की बेस्ट बॉक्सर चुनी गई. वह अब तक छह मेडल जीत चुकी है. 27 अक्टूबर तक चल रही पांचवीं सीनियर नेशनल टूर्नामेंट में वह प्रदेश का नेतृत्व कर रहीं हैं. शिल्पा कहतीं हैं कि भाई और कोच की बदौलत आज इस मुकाम पर वह पहुंचीं हैं. अब नेशनल टूर्नामेंट खेलने का सपना पूरा हो रहा है. वह जल्द ही गोल्ड जीतकर लौटेंगी.

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मां के हौसले ने बेटी को बॉक्सर बना दिया

पांचवी सीनियर नेशनल टूर्नामेंट के 57 किलो भारवर्ग में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाली कुशीनगर की अपराजिता मणि के पिता भुनेश्वर मणि हाटा से तीन किमी दूर पटनी गांव के किसान हैं. अपराजिता दो भाइयों में इकलौती बहन है. अखबारों में बेटियों के बॉक्सर बनने की खबरों से प्रभावित होकर उसने मां से बॉक्सिंग खिलाड़ी बनने की इच्छा जाहिर की. बेटी के सपने में मां को अपने सपने की याद आ गई.

दरअसल, उनकी मां ने भी बचपन में बॉक्सिंग खिलाड़ी बनने का सपना देखा था लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकीं. ऐसे में मां ने बेटी को बॉक्सर बनाने की ठान ली. परिवार वालों को जैसे-तैसे समझाकर मां ने अपराजिता को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए राजी कर लिया. 2015 में बॉक्सिंग रिंग में उतरी अपराजिता ट्रेनिंग के लिए घर से काफी दूर जातीं थीं. 2016 में उन्होंने पहला पदक जीत.

अभी तक वह पांच मेडल जीत चुकीं हैं. 2019 में मिर्जापुर में आयोजित यूथ बॉक्सिंग टूर्नामेंट में वह प्रदेश की बेस्ट बॉक्सर चुनीं गईं. 2019-20 में गोरखपुर विश्वविद्यालय की तरफ से ऑल इंडिया इंटरनेशनल बॉक्सिंग कॉन्टेस्ट में उन्होंने ओडिशा में आयोजित फर्स्ट खेलो इंडिया चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता. अब वह हिसार में पांचवी सीनियर नेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट मैं 57 किलो भार वर्ग में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं. उन्होंने इस टूनार्मेंट में गोल्ड मेडल जीतने का वादा किया है.

Last Updated :Oct 24, 2021, 6:55 PM IST
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