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कौशाम्बी: विदेशों तक है इस गांव के बने ताजियों की मांग

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Published : Sep 9, 2019, 9:17 PM IST

उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी के प्राचीन कस्बे कडा में बने ताजिये मोहर्रम के समय देश के कोने-कोने में भेजे जाते हैं. हुसैन की शहादत में बनाये गए इन आलीशान ताजियों की मांग विदेशों तक में है.

विदेशों में भी है कौशाम्बी में बने ताजियों की मांग.

कौशाम्बी: ताजिया मुहर्रम का अटूट हिस्सा है. यह पैगम्बर साहब के नवासे हुसैन की शहादत की याद में निकाले जाते हैं. मोहर्रम के महीने में वैसे तो ये ताजिये हर जगह नजर आते हैं. लेकिन कौशाम्बी जिले के प्राचीन कस्बे कडा में बने ताजिये देश के कोने-कोने में जाते हैं. इन आलीशान ताजियों की मांग विदेश तक में है. कई साल पहले यहां से एक ताजिया नीदरलैंड भेजा गया था, जो आज भी वहां के म्यूजियम में एक नमूने के तौर पर मौजूद है.

विदेशों में भी है कौशाम्बी में बने ताजियों की मांग.

इमाम हुसैन की शहादत को करते हैं याद-
इस कस्बे में इन आलीशान ताजियों को बनाने वाले सैकड़ों परिवार ताजिये बनाकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं. जब तक ये कारीगर हजारों की तादाद में ताजिये बनाकर ताजियेदारों को सौंप न दें, उन्हें सुकून नहीं मिलता है. ताजिया बनाने में कारीगरों का पूरा परिवार रात दिन लगा रहता है.


सबसे ज्यादा सुंदर होते हैं ताजिए-
कडा में बनने वाले ताजिया दूसरी जगहों पर बनने वाले ताजिया से अधिक शोहरत पा चुके हैं. यहां के कारीगरों के हाथों से बनने वाले ताजिये लोग हाथों-हाथ लेते हैं. बांस की खपचियों के ऊपर चमकदार कागजों को जब आकार मिलता है, तो लोग उन्हें देखते रह जाते हैं.

छः महीने में बनता है एक ताजिया-
एक ताजिया बनाने में चार से छः महीने तक का समय लगता है. इसमे लगभग पैंतीस से चालीस हजार तक की लागत आती है. जबकि एक ताजिये को वह साठ से सत्तर हजार रुपये तक में बेचते हैं. एक परिवार 12 से 15 पंद्रह ताजिये बनाते हैं. इससे होने वाली कमाई से ही उनके परिवार का भरण पोषण होता है.

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हम सालों से यहां से ताजिये खरीदने आते हैं क्योंकि यहां के ताजिये बाकी जगहों से बहुत ज्यादा खूबसूरत होते हैं.
अतीक अहमद, ताजिया खरीददार

कडा की मंडी में सालों से ताजिये बनाए जा रह हैं. ये बहुत पुरानी मंडी है. यहां से लोग ताजिए बनाने की कला सीखकर जाते हैं लेकिन यहां के ताजियों की खूबसूरती की बात ही अलग है.
नियाज अली, ताजिया कारीगर

Intro:ANCHOR- ताजिया, मुहर्रम का अटूट हिस्सा है, जो पैगम्बर मुह्हमद साहब के नवासे हुसैन की शहादत को यादकर निकाले जाते है| मोहर्रम के महीने में वैसे तो ये ताजिये हर जगह नजर आते हैं लेकिन कौशाम्बी जिले के प्राचीन कस्बे " कडा " में बने ताजिया मुहर्रम के समय देश के बिभिन्न प्रदेशों मे भेजे जाते हैं | हुसैन की शहादत बनाये गए इन आलीशान ताजियों की मांग विदेशो तक में है | कई साल पहले यहा से एक ताजिया नीदरलैंड भेजा गया, जो आज भी वहाँ के म्यूजियम मे एक नमूने के तौर में मौजूद है | इस कस्बे में इन आलीशान ताजियों को बनाने वाले सैकड़ों परिवार ताजिये बनाकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते है| जब तक ये कारीगर हजारों की तादाद में ताजिये बनाकर ताजियेदारों को सौप न दें उन्हें सुकून नहीं मिलता है |



Body:V O-1 रंग -बिरंगे कागजो से तैयार किये गए इन ताजियों का मुहर्रम में अहम् स्थान रहता है| बिना ताजिया के मुहर्र्रम पूरा नहीं होता है| ताजिया तैयार करने वाले कारीगर इसे बनाने में काफी संतोष पाते है| कडा में बनाने वाले ताजिया दूसरी जगहों पर बनने वाले ताजिया से अधिक शोहरत पा चुके है| यहाँ के कारीगरों के हांथो बनने वाली ताजिया लोग हांथो हाँथ लेते है | बांस की खपचियों के ऊपर चमकदार कागजो को जब आकर मिलता है तो लोग उन्हे देखते रह जाते है।

BYTE- अतीक अहमद (ताजिया खरीददार)

V O-2 ताजिया बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि आस्था का प्रतिक ताजिया बनाने से उनके मन को सुकून मिलाता है और वो अपने एस हुनर से इमाम हुसैन को श्रधांजलि देते है| ताजिया बनाने में कारीगरों का पूरा परिवार रात दिन लगा रहता है| एक ताजिया को बनाने में चार से छः महीने तक का समय लगता है| इसमे लगभग पैतीस से चालीस हजार तक की लागत आती है| जबकि एक ताजिया को वह साठ से सत्तर हजार रुपये तक में बेचते है| मुहर्रम के मौके पर एक परिवार 12 से 15 पंद्रह ताजिया बनाते है| इससे होने वाली कमाई से ही उनके परिवार का भरण पोषण होता है|

BYTE- नियाज अली (ताजिया कारीगर)
Conclusion:V O-03 ऐतिहासिक नगरी कडा में बनने वाले आस्था का प्रतिक ताजिया की चमक देश के बिभिन्न प्रान्तों के आलावा सात समुन्दर पार तक फैली हुई है| कडा के कारीगर असगर अली उर्फ़ बडकू का ताजिया कई साल पहले "नीदरलैंड" के "KITROPREN" संग्रहालय में ले जाकर रखा गया है| इस ताजिया को विशेष आकर के बक्से में पैक कर के ले जाया गया था| मुहर्रम से पहले कड़ा में ताजिया बनवाने वालो की भीड़ लगी रहती है। ताजिया बनाने में लगभग चार से छः माह तक का समय लगता है| इसमे अभ्रक , गंधक के साथ रंग -बिरंगी चमकदार पन्नियाँ व सजावट के कई दूसरे समान लगाए जाते है | ताजिया मुहर्रम की दसवी तारीख को करबला में दफन किये जाते है|
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