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वीरान पड़ा है शहीद महावीर सिंह पुस्तकालय, चंद्रशेखर आजाद संग लड़ी थी आजादी की लड़ाई

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Published : Jul 13, 2021, 9:43 PM IST

देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के लिए सरकार लगातार मुहिम चला रही है. अमर शहीदों के नाम पर नई- नई योजनाओं को कागज पर लाकर जमीन पर उतार रही है. गौर करे तो इस दिशा में पहले भी खूब काम किया गया. पिछली सरकारों ने भी शहीदों के नाम पर खूब काम किया. किसी के नाम सड़क बनवाई तो किसी के नाम विद्यालय, किसी का स्टैचू खड़ा किया तो किसी के नाम पर पुस्तकालय खुलवाया. मगर फिरभी ये संस्थान कहीं न कहीं उपेक्षा के शिकार हैं. इटीवी भारत की टीम भी निकली है इसी पड़ताल में कि आखिर जिन शहीदों ने इस देश को विदेशी आक्रांताओं से बचाने में अपना प्राणों की आहुति देदी, आखिर उनके नाम पर जारी हुई योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है.

वीरान पड़ा है शहीद महावीर सिंह पुस्तकालय
वीरान पड़ा है शहीद महावीर सिंह पुस्तकालय

कासगंज: देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों के गांव के विकास के लिए सूबे की योगी सरकार कितनी सजग है इसकी पड़ताल आज ईटीवी भारत ने की है. ईटीवी भारत की टीम पहुंची है महान क्रांतिकारी और चन्द्रशेखर आजाद के साथी रहे अमर शहीद महावीर सिंह के जन्म स्थान यानि कि उनके गांव शाहपुर टहला. इस मौके पर अमर शहीद महावीर सिंह के परिजनों से भी ईटीवी भारत ने बातचीत की.

वीरान पड़ा है शहीद महावीर सिंह पुस्तकालय
अमर शहीद महावीर सिंह के जन्म स्थान उनके गांव पहुंची तो वहां सैकड़ों वर्ष पुराना एक विशाल वट वृक्ष देखा जो मानो क्रांतिकारी महावीर सिंह के जीवन के संघर्षों की गवाही दे रहा हो. ठीक उसी विशाल वट वृक्ष के समीप कभी उनका घर हुआ करता था. लेकिन आज वहां पर उनके परिवारीजनों के घर बने हैं. शाहपुर टहला गांव में इस समय अमर शहीद महावीर सिंह राठौर के भतीजे परिवार सहित रह रहे हैं.


इस महान क्रांतिकारी के गांव में सरकार या प्रशासन ने अगर कभी कुछ किया है तो वह है अमर शहीद महावीर सिंह का स्मारक और उनके नाम पर बना एक बिना पुस्तकों का पुस्तकालय, जो 31 अक्टूबर 2004 को तत्कालीन विधायक और दर्जा प्राप्त मंत्री राजेन्द्र सिंह चौहान के प्रयासों से बना था. तब से आज तक उस पुस्तकालय में एक भी पुस्तक नहीं रखी गयी है. यही नहीं पुस्तकालय की छत से बरसात में पानी टपकता है. फर्श उखड़ रहा है.

वीर सपूत के नाम पर बने इस पुस्तकालय की जर्जर हालत देख कर आखिरकार हमने गांव के ग्रामीण रमेश सिंह से बातचीत की. तो उन्होंने हमें बताया कि कई बार जिला प्रशासन को यहां की समस्याओं के बारे में अवगत कराया गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.

फिर हमारी टीम ने अमर शहीद महावीर सिंह के पारिवारिक भतीजे प्रदीप सिंह राठौर से बात की तो उन्होंने सरकार और प्रशासन से कासगंज जनपद में और गांव शाहपुर टहला में अमर शहीद महावीर सिंह के नाम पर स्मारक बनाने, सड़कों के नाम उनके नाम पर रखने, उनके नाम से कोई उद्योग लगाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि अमर शहीद महावीर सिंह की जीवनी को शिक्षा विभाग अपने विषयों में स्थान दे जिससे आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके और युगों तक उनका यश गान होता रहे.

आपको बता दें कि अमर शहीद क्रांतिकारी महावीर सिंह का जन्म 16 सितंबर 1904 को उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद के पटियाली ब्लॉक के ग्राम शाहपुर टहला में एक ठाकुर परिवार में हुआ था. बचपन से ही महावीर सिंह को देश के प्रति प्रेम था. आजादी की जंग में महावीर सिंह ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के साथ 40 दिन तक भूख हड़ताल की थी.

वर्ष 1929 में दिल्ली असेम्बली में बम फेंकने और सांडर्स की हत्या के बाद भगत, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, सुखेव के साथ महावीर सिंह को भी हिरासत में ले लिया गया और मुकदमे की सुनवाई के लिए लाहौर भेज दिया गया. सांडर्स की हत्या में भगत सिंह की सहायता करने के चलते महावीर सिंह को आजीवन कारावास दिया गया. जिसके बाद महावीर सिंह जेल में ही 40 दिन तक भूख हड़ताल पर रहे थे.

ईटीवी भारत ने अमर शहीद महावीर सिंह राठौर के पारिवारिक भतीजे प्रदीप सिंह राठौर से जब बात की गई तो उनका दर्द छलक पड़ा. उन्होंने कहा कि जब महावीर सिंह को काला पानी की सजा हुई थी और उन्हें अंग्रेज सैनिकों के द्वारा कासगंज से पकड़कर अंडमान निकोबार स्थित पोर्टब्लेयर की सेल्युलर जेल ले जाया गया था, जहां उनको असीमित यातनाएं दीं गईं. प्रदीप सिंह राठौर ने आगे बताया कि क्रूर अंग्रेजों ने भूख हड़ताल पर बैठे महावीर सिंह को जबरन दूध पिलाया जो उनके फेफड़ों में चला गया जिससे 17 मई 1933 को उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद उनके शरीर को पत्थर से बांधकर समंदर में फेंक दिया गया था. महावीर सिंह के भतीजे प्रदीप सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि उस समय अगर कांग्रेस चाहती तो महावीर सिंह को बचा सकती थी लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने ऐसा कुछ नहीं किया.

महावीर सिंह की शहादत के बाद अंग्रेज महावीर सिंह के परिजनों की तलाश में शाहपुर टहला भी पहुंचे. उन्होंने बताया कि उनके परिजनों की तलाश में उनके गांव-घर में रोज छापेमारी होती. जिससे तंग आकर हमारा परिवार 1942 में राजस्थान चला गया और वहीं बस गया, उन्होंने कहा कि वहां कुछ को तो नौकरियां मिल गईं. अब जब परिवार के लोग रिटायर हुए हैं तो हम लोग 2015 में वापस गांव कासगंज के शाहपुर टहला आ गए हैं.


देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महान क्रांतिकारी अमर शहीद महावीर सिंह के पैतृक गांव में उनके स्मारक और पुस्तकालय की ऐसी दुर्दशा निश्चित ही शासन और प्रशासन की शहीदों के परिवार और उनके गांवों में विकास के प्रति उदासीनता को प्रकट करता है. सरकार को इस पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए.

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