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गोरखपुर एम्स के नए निदेशक प्रो. गोपाल कृष्ण पाल ने संभाला कार्यभार, बोले- सुविधाओं को बनाएंगे बेहतर

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 4, 2024, 9:34 AM IST

गोरखपुर एम्स के नए निदेशक (Gorakhpur AIIMS Executive Director) ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है. बुधवार की रात मीडिया से बातचीत में उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं गिनाईं. एडवांस सेंटर फार योगा थिरेपी खोले जाने की बात भी कही.

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गोरखपुर एम्स के नए निदेश बने डॉ. गोपाल कृष्ण पाल.

गोरखपुर : विवादों और भ्रष्टाचार में घिरी गोरखपुर एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर को हटा दिया गया था. इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पटना एम्स के निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल को गोरखपुर एम्स का नया कार्यकारी निदेशक बना दिया गया. बुधवार की रात उन्होंने कार्यभार ग्रहण कर लिया. इस दौरान मीडिया से बातचीत में उन्होंनेकहा कि कि पेशेंट मैनेजमेंट को बेहतर बनाना उनकी प्राथमिकता होगी. हर मरीज को बेहतर एवं सर्वोत्तम इलाज मिले इसके लिए वह पूरा प्रयास करेंगे. एम्स में सुपरस्पेशियलिटी विभाग की कमी है. यहां अतिशीघ्र कार्डियोलाजी, नेफ्रोलाजी व न्यूरोलाजी विभाग खोले जाने के लिए प्रयास किया जाएगा. नए कार्यकारी निदेशक ने कहा कि योग में कई रोगों का निदान है. प्रयास होगा कि एम्स पटना की तर्ज पर गोरखपुर एम्स में भी एडवांस सेंटर फार योगा थिरेपी केन्द्र की स्थापना की जाए.

मैन पावर बढ़ाने पर रहेगा जोर : डॉ. गोपाल कृष्ण पाल ने कहा कि एम्स में हॉस्पिटल मैनेजमेंट में सुधार लाना मेरी प्राथमिकता होगी. मैन पावर बढ़ाया जाएगा. पैरा मेडिकल स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ एवं रेजिडेंट डाक्टरों की संख्या बढ़ाई जाएगी. रिसर्च पर काम होगा और सर्जरी आंकोलाजी विभाग भी खोला जाएगा. उन्होंने रेडियोथिरेपी विभाग की आवश्यकता पर बल दिया. छह माह के कार्यवाहक निदेशक ने बताया कि एम्स में शीघ ही ब्लड बैंक खोला जाएगा. खून संग्रह के लिए शिविर लगाया जाएगा. निदेशक ने बताया कि पटना एवं गोरखपुर एम्स की जिम्मेदारी मिलने से उनकी कार्यशैली पर कोई खास फर्क कार्य पर नहीं पड़ेगा. दोनों एम्स को तीन-तीन दिन का समय दूंगा.

चिकित्सीय पेशे में समय में बंधकर कार्य संभव नहीं : डॉ पाल ने कहा कि पटना एम्स में कार्य करने के दौरान उनके कार्यालय में कार्य का समय शाम को 6:00 बजे से रात के 11:00 बजे तक होता था. दिन के समय में वह ओपीडी, फैकेल्टी, छात्रों और रेजीडेंट डॉक्टरों के साथ समय बिताकर उनकी उनकी जरूरत और गतिविधियों को समझते थे. कार्यालय की फाइलें, मीटिंग देर रात तक चलती रहती थीं. उन्हें कार्य के लिए समय निर्धारण करने की कोई जरूरत नहीं है. चिकित्सीय पेशे में समय आधारित कार्य नहीं हो सकता. अधिकतम समय, सेवा और सुविधा को बेहतर बनाने के लिए ही देना होता है. यही कार्यकारी निदेशक की असली भूमिका है.

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