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कभी शिकागो तक होती थी गोरखपुर के अपराधों की चर्चा, अब जिंदगी और संपत्ति बचाने में जुटे माफिया

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 26, 2023, 5:22 PM IST

गोरखपुर शहर की गोलियों की तड़तड़ाहट (Gorakhpur mafia administration action) की चर्चा 80 के दशक में अमेरिका के शिकागों तक होती थी, उस दौर में लोगों को ऐसा लगता था कि अपराधी और माफिया अपराधों का रिकॉर्ड तोड़ने पर आमादा हैं, लेकिन अब काफी बदलाव आ चुका है.

Gorakhpur mafia administration action
Gorakhpur mafia administration action

गोरखपुर से माफिया और अपराधियों का सफाया हो चुका है.

गोरखपुर : मौजूदा समय में विकास की राह पर दौड़ रहे गोरखपुर के माथे पर 80 के दशक में अपराधियों और माफियाओं ने कई कलंक लगा दिए थे. यही वजह थी यहां के गोलियां की तड़ातड़ाहट की चर्चा शिकागो तक होती थी. उस दौर में शिकागो में भी क्राइम का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ रहा था. माना जाता था कि दोनों शहर क्राइम के मामले में एक-दूसरे को पीछे ढकेलने में लगे हैं. करीब 30 सालों तक ऐसा ही चलता रहा. इसके बाद शहर से माफियाओं और अपराधियों का वजूद मिटना शुरू हो गया. कई अपराधी सलाखों के पीछे हैं, जबकि कई माफिया खुद की संपत्ति और जान बचाने के लिए जूझ रहे हैं.

गोरखपुर में अब पहले जैसे गैंगवार नहीं होते.
गोरखपुर में अब पहले जैसे गैंगवार नहीं होते.

ठेकेदारी को लेकर दो माफिया थे आमने-सामने : अस्सी के दशक के माफियाओं में अब कोई जीवित नहीं है. वर्तमान के माफिया जिन्होंने करोड़ों की संपत्ति अर्जित की है. वे अपनी जिंदगी और संपत्ति बचाने में जुटे हैं. इनमेें से कई पर 24 से 36 मुकदमे दर्ज हैं. कोई जेल में है तो कोई फरार है. इन सबकी मौजूदा समय में हालत पतली है. वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रह चुके सुजीत पांडेय कहते हैं कि 80 के दशक में अपराध को लेकर एक अलग ही माहौल पैदा हो गया था. रेलवे की ठेकेदारी इसके मूल में थी. इसे लेकर वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी जैसे दो माफिया आमने-सामने थे. यहां ब्राह्मण और ठाकुर दो वर्गों में मफियाओं की टोली थी.

कई माफिया जेल में है.
कई माफिया जेल में है.

दो माफियाओं के इर्द-गिर्द घूमने लगा था पूर्वांचल : सुजीत पांडेय बताते हैं कि साइकिल स्टैंड के ठेके से लेकर हर बड़े ठेके में कब किस तरफ गोलियां चल जाएंगी कोई नहीं जानता था. पूरा पूर्वांचल दो माफियाओं के इर्द-गिर्द घूमने लगा था. बिहार के भी अपराधी इनके करीब हो चुके थे. इनकी धमक इस कदर थी कि शासन में या सत्ता में बैठे लोग हों, इन पर कोई भी लगाम नहीं लगा पाता था. यही वजह थी कि अपराध का लेवल इस कदर बढ़ा कि उस दौर में गोरखपुर की चर्चा शिकागो के अपराध से हुआ करती थी. वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी ने राजनीति के अपराधीकरण का दौर शुरू किया. पंडित हरिशंकर तिवारी 1982 में जेल से ही विधायक हुए तो वीरेंद्र शाही भी लक्ष्मीपुर से विधानसभा में पहुंचे. करीब 20 वर्षों तक इनका तिलिस्म कायम था. इस बीच में कुछ अपराधी पैदा हुए, लेकिन वह इनके आगे बौने ही साबित हुए. श्रीप्रकाश शुक्ला तेजी से उभरता अपराधी था, लेकिन बीच में ही वह एनकाउंटर में मार दिया गया.

अब गोरखपुर से अपराधी और माफियाओं का सफाया हो चुका है.
अब गोरखपुर से अपराधी और माफियाओं का सफाया हो चुका है.

प्रशासन ने माफियाओं पर कसा शिकंजा : सुजीत पांडेय ने बताया कि मौजूदा दौर के जो अपराधी हैं, उन्होंने रुपये कमाए, जमीनों पर कब्जा किया, लेकिन अपनी हनक से वह शासन और प्रशासन पर कब्जा नहीं जमा पाए. यही वजह है कि 20 से 30 बड़े-बड़े मामलों में जिन अपराधियों का नाम दर्ज है, वह या तो जेल में हैं या फिर फरारी काट रहे हैं. राजनीति में भी वह अपना पांव जमा नहीं पा रहे हैं. इसके मूल में पिछले 7 वर्षों से प्रदेश में काबिज हुई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार है. प्रशासन ने काफी तेजी और चतुराई से ऐसे माफियाओं पर शिकंजा कसा. चाहे वह सुधीर सिंह हों, अजीत शाही, राकेश यादव, विनोद उपाध्याय, राजन तिवारी सबकी हेकड़ी बंद है.

कई अपराधी एनकाउंटर में भी  मारे जा चुके हैं.
कई अपराधी एनकाउंटर में भी मारे जा चुके हैं.
कई अपराधी सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए.
कई अपराधी सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए.

अब पहले की तरह नहीं होते गैंगवार : सुजीत पांडेय ने बताया कि अब गोरखपुर की सड़कों पर न तो पहले की तरह गैंगवार हो रहे हैं, और न ही गोलियों की गूंज सुनाई दे रही है. एसपी सिटी कृष्ण कुमार विश्नोई का कहना है कि अजीत शाही पर कुल 35 मुकदमे हैं, वह जेल में बंद है. राकेश यादव पर 50 मुकदमे हैं, वह भी जेल में है. सुधीर सिंह पर कुल 36 मुकदमे है, वह अभी जेल में बंद है. राजन तिवारी पर 32 मुकदमे हैं, वह भी जेल में है. 25 मुकदमे विनोद उपाध्याय पर है. वह फरारी काट रहा है. प्रशासन ने काफी मशक्कत कर रहा है, लेकिन अभी तक वह पुलिस के हाथ नहीं लगा है.

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