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प्रतिहार शासकों का क्षेत्र था गोरखपुर, खुदाई में मिले सिक्के दे रहे प्रमाण

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Published : Jun 8, 2022, 8:10 PM IST

गोरखपुर मंडल इतिहास के कई तथ्यों को अपने में समेटे हुए है. यह क्षेत्र कभी प्रतिहार शासकों का क्षेत्र भी रहा है. ऐसा एक नहर की खुदाई से मिले सिक्कों से प्रमाणित होता है. प्रतिहार शासनकाल के इन सिक्कों के बारे में जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर..

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खुदाई में मिले सिक्के

गोरखपुरः महात्मा बुद्ध, कबीर और गुरु गोरखनाथ के क्षेत्र के रूप में जाना जाने वाला गोरखपुर, इतिहास के कई तथ्यों को अपने में समेटे हुए है. यह क्षेत्र प्रतिहार शासकों का भी रहा है. यह मंडल के महाराजगंज जिले के बृजमनगंज थाना क्षेत्र में एक नहर की खुदाई से मिले सिक्कों से प्रमाणित हो रहा है. इन सिक्कों का संकलन गोरखपुर के राजकीय बौद्ध संग्रहालय में किया गया है. इन सिक्कों को यहां के स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रखा गया है. प्रतिहार शासनकाल के इन सिक्कों के संदर्भ में संग्रहालय के उप निदेशक डॉ. मनोज गौतम ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुछ अहम जानकारी दी है.

संग्रहालय उप निदेशक डॉ. मनोज गौतम

संग्रहालय उप निदेशक डॉ. मनोज गौतम ने बताया कि 600 बीसी से लेकर वर्तमान समय तक यह क्षेत्र बहुत ही समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संपदा का क्षेत्र रहा है. प्रतिहार शासकों के समय के कुल 951 सिक्के नहर की खुदाई से उन्हें मिले तो वह बहुत खराब हालत में थे. उन्हें साफ सफाई के बाद संग्रहालय के स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रख दिया गया है. बहुत जल्द उन्हें यहां व्यवस्थित कर प्रदर्शित किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जब इन सिक्कों पर उन्हें वराह का चित्र दिखा तो यह स्पष्ट हो गया कि यह प्रतिहार शासकों के सिक्के हैं. जो प्रतिहार शासक मिहिर भोज का सिक्का है. यह शोधार्थी और इतिहास के जानकारों के लिए शोध का भी विषय होगा.

सिक्कों के मिलने और इसके प्रतिहार शासकों से जुड़े होने के प्रमाण के संबंध में ईटीवी भारत ने

वहीं, गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर राजवंत राव ने बताया कि प्रमाणिकता और तथ्यों के साथ गोरखपुर को प्रतिहार शासकों का क्षेत्र बताया. उन्होंने यहां तक कहा कि प्रतिहार शासकों का क्षेत्र गंगा सागर तक फैला था, इसके प्रमाण भी मिलते हैं. उन्होंने कहा कि इन शासकों का मूल स्थान मालवा था, जिनकी दो-तीन विशेषताएं थीं.

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उन्होंने बताया कि नागभट्ट प्रथम इस प्रतिहार वंश का पहला शासक था. जिसके विषय में मुस्लिम इतिहासकार "अल बिरादुरी" कहता है कि नागभट्ट प्रथम ने भारत वर्ष की तुर्कों से रक्षा के लिए नारायण की भांति प्रतिहार किया था. ऐसी ही बातें इस वंश के शासक मिहिर भोज के विषय में कही जाती हैं कि उसने नारायण की भांति पृथ्वी से मलिच्चों का उद्धार किया. उन्होंने कहा कि नागभट्ट और मिहिर भोज ने धर्मपाल और देव पाल को पराजित कर गोरखपुर के आसपास के क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया.

प्रोफेसर राजवंत राव ने कहा कि यह संपूर्ण घटनाक्रम चव्हाण के अभिलेखों से भी ज्ञात होती है कि यह क्षेत्र प्रतिहारों का था. जिसका प्रमाण इस काल के सिक्के और प्रतिमाएं देती हैं. उन्होंने कहा कि गुणानबोधि कहता है कि उसने अपने मालिक यानी कि प्रतिहारों के विरुद्ध पलों से लड़ते हुए अपनी तलवार को गंगासागर में स्नान कराया था, जो यह बताता है कि वह बंगाल तक गया था. उन्होंने कहा कि यही नहीं प्रतिहारों के इसी काल में वैष्णव धर्म का यहां विकास हुआ. क्योंकि प्रतिहार शासक वैष्णव थे. उनकी मुद्राओं ने भी वराह की उपाधि धारण किया. मिहिर भोज ने खुद आदि वाराह की प्रभास की उपाधियां धारण की जो वैष्णव उपाधियां हैं. सार यही है कि तुर्कों और मलिच्चों के विरुद्ध प्रतिकार ही प्रतिहार है जो अन्याय के विरुद्ध लड़ा गया.

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