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गोरखपुर में पाली लैक्टिक एसिड से बना बायोडिग्रेडेबल ड्रोन, ये है खासियत

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Published : Nov 9, 2022, 5:37 PM IST

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन विभाग के छात्रों ने एक बायोडिग्रेडेबल ड्रोन (biodegradable drones) बनाने में सफलता हासिल की है. चलिए जानते हैं इसकी खासियत के बारे में.

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गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने बायोडिग्रेडेबल ड्रोन के बारे में जानकारी

गोरखपुरः इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र शोध के जरिए अपना नाम रोशन करते हैं. उनका शोध समाज को भी कई तरीके से लाभ पहुंचाता है. मौजूदा दौर में ड्रोन तकनीक पर बड़े काम हो रहे हैं. ऐसे में मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर (madan mohan malviya university of technology gorakhpur) के इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन विभाग के छात्रों ने मिलकर एक बायोडिग्रेडेबल ड्रोन (biodegradable drones) बनाने में सफलता हासिल की है. इसका वजन करीब 750 ग्राम है.

पाली लैक्टिक एसिड से तैयार ड्रोनः यह ड्रोन अपनी क्षमता और तकनीक के अनुसार काम के साथ ही पर्यावरण को भी भरपूर लाभ पहुंचाएगा. यह खराब होने के 6 महीने के अंदर ही मिट्टी में मिल जाएगा. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा. पर्यावरण के लिए सुरक्षित माने जाने वाले बायोडिग्रेडेबल मैटेरियल पाली लैक्टिक एसिड यानी की पीएलए से तैयार किया गया है. पाली लैक्टिक एसिड से तैयार हुआ या ड्रोन देशस्तर पर आयोजित मोबाइल कांग्रेस में भी सराहना पा चुका है.

गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने बायोडिग्रेडेबल ड्रोन के बारे में जानकारी देते छात्र.

कार्बन फाइबर से बने ड्रोन 50 साल नष्ट नहीं होते: परंपरागत ड्रोन कार्बन फाइबर (carbon fiber drone) से तैयार होते हैं, जो खराब होने के बाद जमीन में 50 साल तक नष्ट नहीं होते हैं. कार्बन फाइबर नष्ट होने की प्रक्रिया के दौरान मिट्टी में खतरनाक कार्बन रसायन का उत्सर्जन करते हैं. इससे पर्यावरण की भी सेहत खराब होती है. यह कैंसर का कारक होता है जबकि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रों ने यह जो ड्रोन बनाया है. इसका फ्लाइट टाइम सवा घंटे का है. यह एक बार में 5 किलोमीटर की परिधि में निगरानी कर सकता है. इसके निर्माण की लागत भी बेहद कम है जबकि परंपरागत कार्बन फाइबर 7 हजार रूपये प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है. शोध टीम के लीडर विवेक शुक्ला बताते हैं कि इसकी बॉडी को पॉलीलैक्टिक एसिड से तैयार किया गया है. जिसके बाद थ्री डी तकनीक से बॉडी की प्रिंटिंग की गई है. इसके निर्माण का पूरा कार्य विश्वविद्यालय में ड्रोन टेक्नोलॉजी को विकसित करने के लिए तैयार प्रयोगशाला में किया गया है. जिसके लिए जरूरी उपकरण विश्वविद्यालय की तरफ से मुहैया कराया गया है.

शोध टीम के सदस्य पीयूष त्रिपाठी ने कहा कि ड्रोन को तैयार करने में उसके बैटरी से लेकर उड़ान भरने के दौरान हवा के प्रेशर को भी झेल सकने योग्य बॉडी तैयार की जाती है. इसमें बायोडिग्रेडेबल यह ड्रोन पूरी तरह से कारगर है. इन शोधार्थियों के मार्गदर्शक और इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन विभाग के प्रोफेसर संजय कुमार सोनी ने इस उपलब्धि को मौजूदा दौर में बेहद ही कारगर बताया है. उन्होंने कहा कि ऐसे में जब मटेरियल महंगे होते जा रहे हैं और किसी भी यंत्र को तैयार करने में अधिक धन खर्च हो रहा है. उस समय पर्यावरण के साथ कम बजट में तैयार किया गया यह बायोडिग्रेडेबल ड्रोन बेहद कारगर है. उन्होंने कहा कि अन्य और तकनीकों पर भी शोध कार्य चल रहा है. जिससे समाज को विविध क्षेत्रों में बड़ा लाभ मिलेगा.



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