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गाजीपुर: जीरो बजट और गो आधारित खेती से स्वच्छ होंगी गंगा

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Published : Jan 28, 2020, 10:38 AM IST

Updated : Jan 28, 2020, 10:57 AM IST

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जीरो बजट खेती से स्वच्छ होंगी गंगा.

यूपी के गाजीपुर में गंगा यात्रा पहुंच चुकी है. मंगलवार को गंगा यात्रा वाराणसी के लिए प्रस्थान करेगी. इस दौरान कृषि विभाग ने मृदा संरक्षण और गंगा की अविरलता निर्मलता के लिए दो मॉडल पेश किए गए हैं. इसमें किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग, जैविक खेती और जीरो बजट खेती के बारे में बताया जाएगा.

गाजीपुर: जिले में गंगा की स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गंगा यात्रा शुरू की गई है. बलिया से शुरू होकर गंगा यात्रा गाजीपुर पहुंची. आज यह गंगा यात्रा वाराणसी के लिए प्रस्थान करेगी. इस दौरान कृषि विभाग में मॉडल के माध्यम से बताया कि कैसे किसानों के सहयोग से मृदा संरक्षण और गंगा की अविरलता-निर्मलता में कृषि विभाग योगदान दे रहा है. कैसे जीरो बजट और गो आधारित खेती से गंगा स्वच्छ होगी.

जीरो बजट खेती से स्वच्छ होंगी गंगा.

फर्टिलाइजर के प्रयोग से प्रदूषित हो रही गंगा
गाजीपुर कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर किशोर कुमार सिंह ने बताया कि हमने दो मॉडल तैयार किए गए हैं. एक तो हमने जीरो बजट फार्मिंग सिस्टम का मॉडल दिया है, जिसमें वर्मी कंपोस्टिंग सीटबेड तकनीक और मल्चिंग तकनीक दिखाने का प्रयास किया है, क्योंकि लगातार पेस्टीसाइड और फर्टिलाइजर के प्रयोग से उसकी अपशिष्ट प्रभाव से गंगा दिन-प्रतिदिन प्रदूषित हो रही हैं. भूमि की उर्वरता धीरे-धीरे नष्ट हो रही है.

ऑर्गेनिक फार्मिंग और जैविक खेती से बढ़ेंगी उर्वरा शक्ति
उन्होंने बताया कि अगर हम ऑर्गेनिक फार्मिंग, जैविक खेती और जीरो बजट खेती पर आधारित फार्मिंग करें तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही गंगा में मिट्टी से मिलने वाले विषाक्त पदार्थ भी गंगा में नहीं मिलेगे. बेड तकनीक के माध्यम से बेड पर गेहूं या कोई भी सीरियल क्रॉप को हम उगाते हैं. साथ ही उसके किनारे नालियां बनाते हैं, जहां नालियों के बीच में हम दाली फसलों के साथ सहफसलि फसली खेती करते हैं, जिसके बाद उसकी मल्चिंग करते हैं.

मल्चिंग का तात्पर्य है उसमें कोई भी कार्बोनिक खाद या कूड़ा करकट उसमें डाल देते हैं, जिसके बाद उसकी बहुत हल्की सिंचाई करते हैं. उसके मॉइश्चर से बेड पर लगी फसल तैयार होती है. इसमें जल का संरक्षण भी होता है. ऑर्गेनिक मैन्योर तैयार इस प्रोडक्ट की क्वालिटी भी अच्छी होती है, जो हमारे सेहत के लिए काफी फायदेमंद है.

इसे भी पढ़ें- गाजीपुर: आरती के बाद वाराणसी के लिए रवाना होगी गंगा यात्रा

केंचुए की खाद का प्रयोग करें किसान
कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर ने बताया कि मल्चिंग में पुआल और अन्य फसलों के अवशेषों का प्रयोग किया जाता है, जिसको किसान जला देते हैं. किसान उसको जला देते हैं या फेक देते हैं. उसके उपयोग को नहीं जान पाते. इस विधा में मल्चिंग कराई जाती है, जिसमें भूसा या फसली अवशेष से खेत को ढक देते हैं. जिसके बाद उसमें हल्की सी नमी करते हैं, जिससे उसमें सड़न हो जाए और पूरा कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में मिल जाता है. उन्होंने बताया कि केंचुए की खाद का खेतों में छिड़काव करते हैं, इससे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में बढ़ती है. इसके लिए वर्मी कंपोस्ट यूनिट विभाग द्वारा प्रत्येक राजस्व गांव में बनवा भी रहे हैं.

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कृषि विभाग ने पेश किया मॉडल , जीरो बजट और गो आधारित खेती से स्वच्छ होगी गंगा

गाजीपुर। खबर गाजीपुर से है जहां गंगा की स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गंगा यात्रा शुरू की गई है। बलिया से शुरू होकर गंगा यात्रा गाजीपुर पहुंची। आज यह गंगा यात्रा वाराणसी के लिए प्रस्थान करेगी। इस दौरान कृषि विभाग में मॉडल के माध्यम से बताया कि कैसे किसानों के सहयोग से मृदा संरक्षण और गंगा की अविरलता निर्मलता में कृषि विभाग योगदान दे रहा है। कैसे जीरो बजट और गो आधारित खेती से गंगा होगी स्वच्छ होगी।

गाजीपुर कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर किशोर कुमार सिंह ने बताया कि हमने दो मॉडल तैयार किया गया है। एक तो हमने जीरो बजट फार्मिंग सिस्टम का मॉडल दिया है। जिसमें वर्मी कंपोस्टिंग सीटबेड तकनीक और मल्चिंग तकनीक दिखाने का प्रयास किया है। क्योंकि लगातार पेस्टीसाइड और फर्टिलाइजर के प्रयोग से उसकी अपशिष्ट प्रभाव से गंगा नदी दिन-ब-दिन प्रदूषित हो रही है। भूमि की उर्वरता धीरे-धीरे नष्ट हो रही है।




Body:उन्होंने ने बताया कि बताया कि कि अगर हम ऑर्गेनिक फार्मिंग , जैविक खेती और जीरो बजट खेती पर आधारित फार्मिंग करें तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही, गंगा में मिट्टी से मिलने वाले विषाक्त पदार्थ भी गंगा में नहीं मिलेगे। बेड तकनीक के माध्यम से बेड पर गेहूं या कोई भी सीरियल क्रॉप को हम उगाते हैं। साथ ही उसके किनारे नालियां बनाते हैं। जहाँ नालियों के बीच में हम दाली फसलों के साथ हम सहफसलि फसली खेती करते हैं। जिसके बाद उसकी मल्चिंग करते हैं। मल्चिंग का तात्पर्य है उसमें कोई भी कार्बोनिक खाद या कूड़ा करकट उस में डाल देते हैं। जिसके बाद उसकी बहुत हल्की सिंचाई करते हैं।


उसके मॉइश्चर से बेड पर लगी फसल तैयार होती है। इसमें जल का संरक्षण भी होता है।  सामान्य सिंचाई की तुलना में टिलरिंग के जरिए पौधों में कळले अधिक निकलते हैं। जिससे पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है। ऑर्गेनिक मैन्योर तैयार इस प्रोडक्ट की क्वालिटी भी अच्छी होती है। जो हमारे सेहत के लिए काफी फायदेमंद है।





Conclusion:मल्चिंग में पुआल पुआल और अन्य फसलों के अवशेषों का प्रयोग किया जाता है। जिसको किसान जला देते हैं। वह उसको जला देते हैं या फेक देते हैं। उसके उपयोग को नहीं जान पाते। इस विधा में मल्चिंग कराई जाती है। जिसमें भूसा या फसली अवशेष से खेत को ढक देते हैं। जिसके बाद उसमें हल्की सी नमी करते हैं। जिससे उसमें सड़न हो जाए और पूरा कार्बनिक पदार्थ  मिट्टी में मिल जाता है।

इसके कई फायदे होते हैं। मिट्टी में उर्वरा की मात्रा बढ़ती है और मम्मी का भी संरक्षण होता है। ऐसे जीवाणु लाभदायक होते हैं। उनकी भी मृदा में मात्रा बढ़ती है। उन्होंने बताया कि केंचुए की खाद का लोग बनाकर के खेतों में इसका छिड़काव करते हैं इससे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में बढ़ती है। इसके लिए वर्मी कंपोस्ट यूनिट विभाग द्वारा प्रत्येक राजस्व गांव में बनवा भी रहे हैं।

बाइट - किशोर कुमार सिंह ( डिप्टी डायरेक्टर कृषि गाजीपुर ), विजुअल

उज्ज्वल कुमार राय, 7905690960


Last Updated :Jan 28, 2020, 10:57 AM IST
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