बाल दिवस से अनजान सड़कों पर सर्कस दिखा रहा बचपन

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Published : Nov 14, 2021, 10:41 PM IST

बाल दिवस पर बाल मजदूरी कर रहा बचपन.

बाल मजदूरी हमारे देश के लिए एक गंभीर समस्या है. जिन बच्चों को बचपन में हंसना, खेलना और पढ़ाई करना चाहिए वे कठिन परिश्रम करते हुए मिल जाएंगे. भारत के संविधान 1950 के 24वें अनुच्छेद के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी, कारखानों, होटलों, ढाबों, घरेलू नौकर इत्यादि के रूप में कार्य करवाना बाल श्रम के अंतर्गत आता है.

गाजियाबाद : रविवार 14 नवंबर काे हम बाल दिवस मना रहे हैं, लेकिन देश में आज भी ऐसे न जाने कितने मासूम हैं, जो बाल मजदूरी का दंश झेल रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 35 मिलियन से भी ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हैं. सड़क पर इन मासूम बच्चों की ऐसी तस्वीरें सामने दिखायी देती हैं.


बाल दिवस के मौके पर गाजियाबाद के दो बच्चों की दास्तान आप को झकझोर कर रख सकती है, जिन मासूमों के हाथों में किताब और पेंसिल होनी चाहिए, उन मासूमों को दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. गाजियाबाद के नए बस अड्डे के पास एक बच्ची और उसका छोटा भाई रोड पर सर्कस दिखा रहे हैं. दो वक्त की रोटी कमाने के लिए, रोड पर ये बच्ची अपनी जिंदगी तक खतरे में डाल देती है. बच्ची के चार भाई बहन हैं. पिता जो कमाते हैं, उससे घर का खर्च नहीं चल पाता, इसलिए बच्ची को ये सब करना पड़ रहा है. बच्ची से जब पूछा गया कि वह पढ़ाई करती है, तो उसने कहा वह स्कूल जाती है, लेकिन स्कूल फिलहाल बंद है. इसलिए रोड पर सर्कस दिखाती है.

इस बच्ची की दास्तान अकेली नहीं है. एक अन्य मासूम की दास्तान भी हम आपको बता रहे हैं, जिसे इस समय स्कूल में बाल दिवस के कार्यक्रम में होना चाहिए था वह रोड किनारे गाड़ियों पर पेंट कर रहा है. दिन भर वह गाड़ियों की घिसाई करता है. उसके काेमल हाथ भी घिस चुके हैं. 6 बहनों और दो भाइयों के परिवार में रहने वाले इस मासूम के पिता नहीं है. इसलिए रोजाना 50 रुपये कमाने के लिए उसे दिन भर मजदूरी करनी पड़ती है.

बाल दिवस पर बाल मजदूरी कर रहा बचपन.


गाजियाबाद के समाज सेवक एसके शर्मा कहते हैं कि बाल मजदूरी आज भी सबसे बड़ा दंश बना हुआ है. बाल मजदूरी करने वाले बच्चे रास्ता भटककर क्राइम की दुनिया में भी चले जाते हैं. इसके लिए जरूरी है कि सरकार 100 फीसदी साक्षरता पर काम करे. कई बार ये बच्चे अलग-अलग कारणों से भी स्कूल नहीं जाते हैं. उन्हें स्कूल भेजने और पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रेरित करने के लिए अभी भी कई स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.

क्या कोई राजनीतिक पार्टी इस मुद्दे पर भी कभी बात करेगी? क्या कभी इन मासूमों के भविष्य को लेकर भी कभी कोई राजनेता बयान देगा? क्या कभी ऐसे मजबूर मासूमों जिंदगी में बदलाव के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा? इन सवालों के जवाब अगर सकारात्मक होते हैं, तभी शायद हम बाल दिवस के असली मायने समझ पाएं.

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