देवरिया: जिले से मात्र 8 किलोमीटर दूर अहिल्यापुर गांव के पास स्थित एक ऐसा शक्तिपीठ है, जिसके आगे अंग्रेजों को भी नतमस्तक होना पड़ा था. यह शक्तिपीठ अहिल्या माई के रूप में जाना जाता है. इस शक्तिपीठ की कहानी ब्रिटिश शासन काल से जानी जाती है और ब्रिटिश शासन ने ही इस शक्तिपीठ की नींव रखी थी.
जिले से आठ किलोमीटर दूर अहिल्यापुर गांव के पास मां दुर्गा का शक्तिपीठ स्थित है. इस शक्तिपीठ की कहानी बहुत ही रोचक है. शक्तिपीठ के पुजारी काशीनाथ मिश्रा के मुताबिक, यह जगह सदियों पहले एक बहुत बड़ा जंगल हुआ करता था. यहां शेर रहते थे तो किसी का भी आवागमन नहीं होता था. अहिल्यापुर स्थित मंदिर से थोड़ी दूर पर एक रेलवे लाइन गुजरती है. इस रेलवे लाइन की कहानी भी बड़ी रोचक है.
तकरीबन 100 साल पहले जब अंग्रेजों ने इस रूट पर मीटर गेज लाइन का निर्माण कराना शुरू किया तो उस समय अंग्रेजों ने रेलवे लाइन को मंदिर से होकर गुजारने का फैसला लिया. हालांकि स्थानीय लोगों ने रेलवे ट्रैक को मंदिर से थोड़ी दूर पर बनाने का आग्रह किया. बावजूद इसके अंग्रेजों ने किसी की भी बात नहीं मानी.
अंग्रेज अधिकारियों ने रेलवे लाइन को मंदिर से ही गुजारने का फरमान जारी किया. यही नहींं, मां दुर्गा के प्राकट्य पिंडी के ठीक ऊपर से रेलवे पटरी बनाने का काम शुरू हो गया. शाम को अंग्रेजों ने पटरियां बिछवाईं और अगली सुबह पटरियां क्षतिग्रस्त मिलीं. अंग्रेजों ने सोचा कि यह किसी ग्रामीण की शरारत है, इसीलिए वे आम जनता को परेशान करने लगे, लेकिन दूसरे दिन भी पटरियां बिछाई गईं और फिर पूर्व की भांति पटरियां टूटी मिलीं.
अंग्रेज इंजीनियर को आया था सपना
ऐसे ही एक माह तक पटरियों के बिछाने का कार्य चलता रहा. दिन भर पटरियां बिछाई जातीं और अगली सुबह पटरियां टूटी हुई मिलतीं. एक दिन रेलवे के तत्कालीन इंजीनयर ने पटरियां बिछवाने के बाद रात भर सुरक्षा के लिए कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई. बताया जाता है कि अंग्रेज इंजीनियर ने रात्रि भोजन करने के बाद मां दुर्गा की पिण्डी के स्थान पर विश्राम किया. इसके बाद इंजीनियर को माता का स्वप्न आया. स्वप्न में माता ने इंजीनियर को आदेश दिया कि जल्द ही रेलवे की पटरियों को अन्यत्र स्थापित करो अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे.
अंग्रेजों ने मां के मंदिर का कराया था जीर्णोद्धार
अंग्रेज इंजीनियर ने बीती रात के स्वप्न की पूरी बात दिल्ली में अपने अधिकारियों को सुनाई. मां भवानी की शक्ति के आगे अंग्रेज अफसरों ने भी घुटने टेक दिए. अगले दिन ही अंग्रेज अफसरों ने रेल की पटरी को 100 मीटर दक्षिण विस्थापित करने का निर्णय लिया. साथ ही तत्कालीन अंग्रेज अफसरों ने रेलवे ट्रैक के निर्माण की सफलता के लिए मां के मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया. तब जाकर रेल की पटरियां बिछाने का कार्य पूरा हुआ.
वर्तमान में इस मंदिर में मां दुर्गा स्वयंभू पिंड के रूप में विराजमान हैं और पिंड के बगल में सिंहवाहिनी दुर्गा जी का विग्रह स्थापित है. ये मंदिर सिद्धपीठ देवरिया जनपद मुख्यालय से 8 किमी. की दूरी पर देवरिया-सलेमपुर मार्ग के मुण्डेरा बुजुर्ग चौराहा से उत्तर ग्रामसभा अहिल्वार बुजुर्ग से सटी स्थित रेलवे लाइन के उत्तर तरफ स्थित है. वैसे तो वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन चैत एवं शारदीय नवरात्रि के दौरान लाखों की संख्या में भक्तजन अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं.