बुलंदशहर: सरकार की तरफ से थैलेसीमिया मरीजों के लिए हर साल शासन से करोड़ों रुपये का बजट आता है. बावजूद इसके बुलंदशहर जिले में थैलेसीमिया मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. आलम ये है कि मरीजों को ब्लड चढ़वाने के लिए खुद ही सरकारी अस्पताल में बाजार से फिल्टर भी खरीदकर लाना पड़ रहा है. प्रदेश सरकार हर साल थैलेसीमिया मरीजों के लिए करोड़ों रुपये का बजट देती है. उसके बावजूद भी बुलंदशहर जिले में जो तस्वीर सामने आई है, उसके मुताबिक यहां पर अफसरों को मरीजों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं है.
ईटीवी भारत की मदद के बाद पीड़िता को न सिर्फ वार्ड में भर्ती कराया गया, बल्कि थैलेसीमिया वार्ड पर लगा हुआ ताला खुलवा कर साफ-सफाई भी कराई गई. गौरतलब है कि मई में ही थैलेसीमिया मरीजों के लिए बजट जिला मुख्यालय भेजा गया है. उसके बावजूद भी बुलंदशहर में थैलेसीमिया मरीजों को फायदा नहीं मिल पा रहा है.
महीने में 2 बार होती है खून की आवश्यकता
थैलेसीमिया मरीज को महीने में दो बार खून की आवश्यकता होती है. अगर समय से ऐसे मरीजों को सही ढंग से खून न मिले तो उन्हें जान का खतरा भी हो सकता है. इस समस्या को समझते हुए प्रदेश सरकार ने दवाइयों से लेकर अन्य व्यवस्थाओं के लिए बजट का प्रावधान भी किया हुआ है. ब्लड चढ़ाने के लिए एक अलग तरह के फिल्टर की आवश्यकता भी होती है, लेकिन बुलंदशहर में थैलेसीमिया मरीज शिवानी और उसके पिता ने बताया कि वह खुद ही बाजार से महंगा फिल्टर खरीदने को मजबूर हैं. हैरान करने वाली बात ये है कि जिला प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है.
सरकार के दावे खोखले
इस मामले में ईटीवी भारत ने जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर राजीव प्रसाद से भी बात की. डॉक्टर राजीव प्रसाद का कहना है कि थैलेसीमिया मरीजों के लिए सभी व्यवस्थाएं यहां उपलब्ध हैं, लेकिन लापरवाही का आलम ये है कि जहां एक तरफ मरीज फिल्टर लेकर अस्पताल में पहुंच रहा है. वहीं स्टाफ की कमी का रोना रोकर डॉक्टरों ने उसे घंटों बिठाए रखा है. इन सब बातों से अस्पताल प्रशासन की लापरवाही सामने आती है. अस्पताल में जिस तरह से थैलेसीमिया मरीजों के साथ व्यवहार किया जा रहा है. वह कहीं न कहीं सरकार के दावों को खोखला कर रहा है.