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बरेली: मोक्ष की आस में सालों से अपनों का इंतजार...

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Published : Sep 17, 2019, 3:26 PM IST

यूपी के बरेली में कई सालों से श्मशान घाट में रखी अस्थियां अपनों के इंतजार में हैं. यहां के सिटी श्मशान भूमि में कई सालों से कई अस्थिकलश पेड़ों और कमरों में रखे हैं. श्मशान भूमि के केयरटेकर समाजसेवी संगठनों की मदद से इनकी अस्थियां विसर्जित करते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके.

श्मशान घाट में रखी अस्थियां को है अपनों के इंतजार.

बरेली: कहते हैं जब तक अस्थियां प्रवाहित न कर दी जाएं, मुक्ति नहीं मिलती. बरेली के इस श्मशान घाट में मुक्ति की आस में अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं. अंतिम संस्कार कर लौटे लोग अपनों को ऐसे भूले कि फिर कभी नहीं लौटे. सालों साल गुजर गए, इंतजार अब भी जारी है. श्मशान की दीवारों और पेड़ों पर कलशों में बंद फूल अब भी अपनों की राह देख रहे हैं.

श्मशान घाट में रखी अस्थियों को है अपनों का इंतजार.

पेड़ और मटकों में टंगी हैं अस्थियां

धार्मिक मान्यता है कि पिंडदान की पूजा में किसी तरह की लापरवाही करने से पितरों की आत्मा नाराज या अशांत हो सकती है. वहीं तमाम परिवार ऐसे भी हैं जो मौत के बाद अपने बुजुर्गों को भुलाकर रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो चुके हैं. उन्होंने अपने बुजुर्गों की मौत के बाद उनका अस्थि विसर्जन तक नहीं किया है. इन बुजुर्गों के फूल (अंतिम संस्कार के बाद चुनी हुई अस्थियां) श्मशान भूमि में पेड़ और कमरों में मटकों में टंगे रहते हैं.

वीडियो में दिख रहे बरेली के सिटी श्मशान भूमि में टंगे यह मटके महज मटके नहीं है बल्कि यह उन लोगों की अस्थियां हैं, जिन्हें उनके अपने भूल गए हैं. श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है और लोग घरों में अपने बुजुर्गों की आत्मा की शांति के लिए तरह-तरह के आयोजन कर रहे हैं लेकिन यहां सैकड़ों की संख्या में बुजुर्गों की अस्थियां विसर्जन के इंतजार में लटकी हैं.

बदलते परिवेश में जहां लोग अपने मां-बाप को उन्हीं के घर में जगह नहीं देते हैं और धक्के मार कर घर से निकाल देते हैं, वही कहां उम्मीद की जा सकती है कि ऐसे लोग मरने के बाद अपने बुजुर्गों का अंतिम संस्कार करेंगे. शमशान भूमि से मात्र कुछ दूर रहने वाले तमाम ऐसे लोग भी हैं जो अपनों की अस्थियां विसर्जित करने की फुर्सत नहीं निकाल पा रहे हैं. श्मशान भूमि के केयरटेकर समाजसेवी संगठनों की मदद से इनकी अस्थियां विसर्जित करते है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके.

श्मशान भूमि के पास के ही इलाकों के लोगों के परिजनों की अस्थियां हैं जो अपने परिवार के लोगों का इंतजार कर रही हैं. कब उनके परिवार के लोग आए और उनको मोक्ष प्राप्त हो.
-त्रिलोकीनाथ, केयरटेकर, श्मशान भूमि

Intro:नोट:-डे,प्लान की खबर है।


एंकर:-हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा और पिंडदान का विशेष महत्व है। इस साल 14 सितंबर से 28 सितंबर तक पितृपक्ष है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को पिंडदान और तर्पण दिया जाता है। इसलिए इस पूजा को विधिपूर्वक करना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि पिंडदान की पूजा में किसी तरह की लापरवाही करने से आपके पितरों की आत्मा आपसे नाराज या अशांत हो सकती है। लेकिन तमाम परिवार ऐसे भी हैं जो मौत के बाद अपने बुजुर्गों को भुलाकर रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो चुके हैं।यह व्यस्तथा इस हद तक है कि उन्होंने अपने बुजुर्गों की मौत के बाद उनका अस्थि विसर्जन तक नहीं किया है इन बुजुर्गों के फूल (अंतिम संस्कार के बाद चुनी हुई अस्थियां) श्मशान भूमि में पेड़ और कमरों में मटको में  टंगी रहती हैं।




Body:Vo1:- बरेली की सिटी श्मशान भूमि मैं टंगे यह मटके महज मटके नहीं है बल्कि यह उन लोगों की हस्तियां हैं जिन्हें उनके अपने भूल गए हैं श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है और लोग घरों में अपने बुजुर्गों की आत्मा की शांति के लिए तरह-तरह के आयोजन कर रहे हैं लेकिन यहां सैकड़ों की संख्या में बुजुर्गों की अस्थियां विसर्जन के इंतजार में लटकी पड़ी है। श्मशान भूमि के केयरटेकर त्रिलोकीनाथ ने बताया कि श्मशान भूमि के पास के ही इलाकों के लोगों के परिजनों की अस्थियां है जो आपने परिवार के लोगों का इंतजार कर रही हैं। कब उनके परिवार के लोग आए और उनको मोक्ष प्राप्त हो। 


Conclusion:बदलते परिवेश में जहां लोग अपने मां बाप को उन्हीं के घर में जगह नहीं देते हैं और धक्के मार कर घर से निकाल देते हैं वही कहां उम्मीद की जा सकती है। कि ऐसे लोग मरने के बाद अपने बुजुर्गों का अंतिम संस्कार करेंगे। शमशान भूमि से मात्र कुछ दूर रहने वाले तमाम ऐसे लोग भी हैं जो अपनों की अस्थियां विसर्जित करने की फुर्सत नहीं निकाल पा रहे हैं। श्मशान भूमि समाजसेवी संगठनों की मदद से इनकी अस्थियां विसर्जित करती है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके।

रंजीत शर्मा

9536666643

ईटीवी भारत, बरेली।

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