बरेली: जंगे आजादी के दौरान देश में कई ऐसे स्थान हैं, जहां एकजुट होकर भारतीय रणबांकुरों ने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ने की योजना बनायी थी. ऐसे ही एक ऐतिहासिक स्थल का नाम है बरेली कॉलेज. इस कालेज ने भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महती भूमिका निभाई थी. सन 1857 ई में मेरठ से शुरू हुई क्रांति के दौरान बरेली कॉलेज में भी बगावत हुई थी. इसमें बरेली कॉलेज के न केवल छात्रों ने, बल्कि यहां के अध्यापकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
वर्ष 1837 में स्थापित बरेली कॉलेज में सबसे पहले सन 1857 में ईद के बाद बरेली में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हुई. इसमें बरेली कॉलेज के शिक्षक मौलवी महमूद अहसन ने अहम भूमिका निभाई थी. कॉलेज में क्रांति का बिगुल फूंकने में फारसी विषय के अध्यापक मौलवी कुतुबशाह ने सबसे पहले अपना कदम बढ़ाया और फिर उनके पीछे एक के बाद एक लोग जुटते गये. कुछ माह बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और काला पानी की सजा दी गयी.
कॉलेज के होनहार छात्र मुहम्मद अली खान उर्फ जैमीग्रीन ने भी क्रांति में अहम भूमिका निभाई. अग्रेजों ने उन्हें सारेआम एक पेड़ पर लटकाकर फांसी दी. सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान वर्ष 1930 में छात्र पंडित दरबारी लाल शर्मा ने कॉलेज का बहिष्कार कर नमक आंदोलन में हिस्सा लिया. कॉलेज के राष्ट्रवादी छात्रों ने यंग स्टूडेंट्स एसोसिएशन की स्थापना की. उसके प्रथम अध्यक्ष प्रताप चंद्र आजाद बने. वर्ष 1937 में छात्र कृपानंदन ने कॉलेज हॉल पर फहरा रहे यूनियन जैक को जलाकर तिरंगा लहरा दिया. उन्हें पुलिस ने जेल में भेज दिया.
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आईये इस कॉलेज की ऐतिहासिक घटनाओं पर भी नजर डालते हैं
- 22 मई सन 1857 ई में कॉलेज के शिक्षक मौलवी महमूद ने बगावत का बिगुल फूंककर अहम भूमिका निभाई थी. इस बगावत के बाद बरेली कालेज को 14 दिनों के लिये बंद कर दिया गया था.
- सन 1930 ई में छात्र पंडित दरबारी लाल शर्मा ने नमक आंदोलन में हिस्सा लिया था.
- सन 1937 ई में छात्र कृपानंदन ने यूनियन जैक का झंडा जलाकर तिरंगा फहरा दिया था.
वर्तमान समय में बरेली कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र जब इस कॉलेज के इतिहास से वाकिफ होते हैं. तो खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. दर्जन भर छात्रों की संख्या के साथ सन 1837 ई में शुरू हुए बरेली कॉलेज में इन दिनों करीब चालीस हजार छात्र अध्ययनरत हैं.
बरेली कालेज के छात्रों का महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक जुड़ाव रहा. गांधी जी से प्रेरित होकर कॉलेज के छात्रों ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया. वहीं, सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित होकर छात्रों ने आजाद हिंद फौज की मदद के लिए छात्र संघ कोष का सारा पैसा देने का प्रस्ताव पारित किया. अंग्रेज कमिश्नर ने इसे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कदम मानते हुए प्रिंसिपल मदन मोहन को इस्तीफा देने के लिए विवश कर दिया. इसके विरोध में भी छात्रों ने आंदोलन किया.
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