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बलरामपुर के इस मंदिर में खुदाई में निकली थी हजारों साल पुरानी प्रतिमा

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Published : Oct 7, 2019, 10:36 PM IST

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग क्षेत्र के बीचों बीच स्थित नंदमहरा गांव में माता नंदा देवी मंदिर स्थित है. इस मंदिर में पड़ोसी देश नेपाल राष्ट्र के श्रद्धालु भी दर्शन के लिए आते हैं. 13 शताब्दी में राजा सुहेलदेव के समय इस मंदिर पर मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया था. नाथ संप्रदाय के संतों ने इसका पुनर्निर्माण किया था.

माता नंदा देवी मंदिर में नेपाल से आते हैं श्रद्धालु.

बलरामपुर: जिले में दुर्गापूजा के पर्व को बहुत उत्साह के साथ लोग मना रहे हैं और माता की भक्ति में रंगे नजर आ रहे हैं. इस दौरान दुर्गा मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. ऐसा ही एक दुर्गा मंदिर सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग के बीचों बीच स्थित नंदमहरा ग्राम सभा में पड़ता है, जो गोरखनाथ पीठ द्वारा संचालित है. इसके इतिहास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 13 शताब्दी में राजा सुहेलदेव के समय इस मंदिर पर मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया था. जिसमें इस मंदिर को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया गया था.

माता नंदा देवी मंदिर में नेपाल से आते हैं श्रद्धालु.

मंदिर में नेपाल से आते हैं श्रद्धालु
सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तमाम मनोरम स्थलों में से एक है माता नंदा देवी का मंदिर. यहां पर न केवल आसपास के गांवों में और इलाकों में रहने वाले श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. बल्कि पड़ोसी नेपाल राष्ट्र के श्रद्धालु भी दर्शन के लिए आते हैं. क्योंकि यह मंदिर नेपाल की सीमा से महज 10 किमी पहले भारतीय सीमा में स्थापित है. मनोरम जंगल के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना बताया जाता है. कहा जाता है कि नाथ संप्रदाय के संतों ने यहां पर माता के दर्शन के लिए तप किया था. इस मंदिर का पुर्ननिर्माण नाथ सम्प्रदाय के संतों के द्वारा किया गया था.

13वीं शताब्दी में मुगलों ने किया गया था मंदिर पर आक्रमण
वहीं लोग यहां भी बताते हैं कि 13वीं शताब्दी में राजा सुहेलदेव के शासन के समय आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था. मंदिर में व्याप्त खजाने को लूट लिया गया था. नाथ संप्रदाय के संतों द्वारा जब यहां पर तप किया गया, तो इस मंदिर का दोबारा निर्माण कार्य शुरू करवाया गया. जिसमें हजारों साल की पुरानी मूर्तियां निकली. वह आज भी मंदिर के गर्भ गृह के बाहर स्थापित है. लोग बताते हैं मंदिर के बाहर स्थापित नर वाहिनी देवी की जो प्रतिमा है, वह खुदाई के दौरान ही मिली थी, जिसमें खजुराहो के निर्माण शैली को साफ-साफ देख सकते हैं.

इसे भी पढ़ें- जौनपुर: देवी पंडाल से दानपेटी व आरती की थाली ले भागे दबंग, मूर्तियों को भी किया क्षतिग्रस्त

पुनर्निर्माण में नाथ संप्रदाय के संतों का रहा मुख्य योगदान
यहां पर आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि जंगल के बीचों बीच स्थित होने के कारण इस मंदिर में आसपास के गांवों और नेपाल राष्ट्र के श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. जो भी यहां पर सच्चे मन से माता से मुरादे मांगता है. उसकी मुराद जरूर पूरी होती है.

पुजारी अवधेश नाथ बताते हैं कि इस मंदिर के पुनर्निर्माण में नाथ संप्रदाय के संतों का बहुत बड़ा हाथ है. यहां पर जब हमारे गुरुजनों ने आकर तपस्या की. तब इस मंदिर और क्षेत्र का हालत बहुत ही खराब थी. तपस्या के दौरान ही भक्तजनों के सहयोग और माता के आशीर्वाद से इस मंदिर का पूरा निर्माण शुरू हुआ. जिसमें हजारों साल पुरानी प्रतिमाएं खुदाई के दौरान मिली.

इस मंदिर की महत्वता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह गोरक्षनाथ की द्वारा संचालित किया जाता है. मंदिर पर लगातार सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है. पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए तमाम तरह के काम मौजूदा सरकार में करवाए गए हैं. वहीं मंदिर द्वारा एक विद्यालय भी संचालित किया जाता है. मंदिर की पूरी देखरेख देवीपाटन शक्तिपीठ के अंतर्गत की जाती है.
-अवधेश नाथ, पुजारी

Intro:नवरात्रि देवी की आराधना का पर्व है। पूरे देश में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बलरामपुर जिले में भी इस पर्व को बहुत उतसाह के साथ लोग मानते हैं और माता की भक्ति में रंगे नज़र आते हैं। इस दौरान दुर्गा मंदिरों में भक्तों का ताता लगा रहता है। ऐसा ही एक दुर्गा मंदिर सुहेलवा वन्य जीव अभ्यारण के बीचों बीच स्थित नंदमहरा ग्राम सभा में पड़ता है। जो गोरखनाथ पीठ द्वारा संचालित है। इसके इतिहास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 13 शताब्दी में राजा सुहेलदेव के समय इस मंदिर पर मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया था। जिसमें इस मंदिर को पूरी तरह तहस नहस कर दिया गया था।


Body:सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तमाम मनोरम स्थलों में से एक है माता नंदा देवी का मंदिर। यहां पर न केवल आसपास के गांवों में और इलाकों में रहने वाले श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। बल्कि पड़ोसी नेपाल राष्ट्र के श्रद्धालु भी दर्शन के लिए आते हैं। क्योंकि यह मंदिर नेपाल की सीमा से महज 10 किलोमीटर पहले भारतीय सीमा में स्थापित है। मनोरम जंगल के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि नाथ संप्रदाय के संतों ने यहां पर माता के दर्शन के लिए तप किया था। इस मंदिर का पुर्ननिर्माण नाथ सम्प्रदाय के संतों के द्वारा किया गया था।
वही, लोग यहां भी बताते हैं कि 13वीं शताब्दी में राजा सुहेलदेव के शासन के समय आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था। मंदिर में व्याप्त खजाने को लूट लिया गया था। नाथ संप्रदाय के संतों द्वारा जब यहां पर तप किया गया। तो इस मंदिर का दोबारा निर्माण कार्य शुरू करवाया गया। जिसमें हजारों साल की पुरानी मूर्तियां निकली। वह आज भी मंदिर के गर्भ गृह के बाहर स्थापित है।
लोग बताते हैं मंदिर के बाहर स्थापित नर वाहिनी देवी की जो प्रतिमा है, वह खुदाई के दौरान ही मिली थी, जिसमें खजुराहो के निर्माण शैली को साफ-साफ देख सकते हैं।



Conclusion:यहां पर आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि जंगल के बीचोंबीच स्थित होने के कारण इस मंदिर में आसपास के गांवों और नेपाल राष्ट्र के श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। जो भी यहां पर सच्चे मन से माता से मुरादे मांगता है। उसकी मुराद जरूर पूरी होती है।
पुजारी अवधेश नाथ बताते हैं कि इस मंदिर के पुनर्निर्माण में नाथ संप्रदाय के संतों का बहुत बड़ा हाथ है। यहां पर जब हमारे गुरुजनों ने आकर तपस्या की। तब इस मंदिर और क्षेत्र का हालत बहुत ही खराब था। तपस्या के दौरान ही भक्तजनों के सहयोग और माता के आशीर्वाद से इस मंदिर का पूरा निर्माण शुरू हुआ। जिसमें हजारों साल पुरानी प्रतिमाएं खुदाई के दौरान मिली।
पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर की महत्वता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह गोरक्षनाथ की द्वारा संचालित किया जाता है। वह कहते हैं कि मंदिर पर लगातार सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए तमाम तरह के काम मौजूदा सरकार में करवाए गए हैं। वही, मंदिर द्वारा एक विद्यालय भी संचालित किया जाता है। मंदिर की पूरी देखरेख देवीपाटन शक्तिपीठ के अंतर्गत की जाती है।
बाईट क्रमशः :-
वीके द्विवेदी, श्रद्धालु
करुनसिंधु तिवारी, श्रद्धालु
अवधेश नाथ, पुजारी
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