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बलरामपुर: दो साल बाद शारदीय नवरात्रि में फिर भक्तों से आबाद हुआ शक्तिपीठ, जानें देवीपाटन का महत्व

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Published : Oct 14, 2021, 12:41 PM IST

दो साल बाद शारदीय नवरात्रि में फिर भक्तों से आबाद हुआ शक्तिपीठ
दो साल बाद शारदीय नवरात्रि में फिर भक्तों से आबाद हुआ शक्तिपीठ

बलरामपुर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर नगर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास और पैराणिक मान्यताओं में अपना एक अलग ही स्थान है. इस विख्यात शक्तिपीठ का सम्बन्ध देवी सती, भगवान शिव, गोरखनाथ के पीठाधीश्वर गोरक्षनाथ जी महराज, साहित महाभारत कालीन दान वीर कर्ण से है.

बलरामपुर: कोरोना काल के तकरीबन दो वर्ष बाद भारतीय उपमहाद्वीप में फैले 51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन शक्तिपीठ एक बार फिर भक्तों की श्रद्धा और विश्वास से आबाद होगा. सीरिया नदी के तट पर स्थित इस शक्तिपीठ पर शक्तिपीठ पर माता सती का वाम स्कंध सहित पट गिरा था.

बलरामपुर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर नगर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास और पैराणिक मान्यताओं में अपना एक अलग ही स्थान है. इस विख्यात शक्तिपीठ का सम्बन्ध देवी सती, भगवान शिव, गोरखनाथ के पीठाधीश्वर गोरक्षनाथ जी महराज, साहित महाभारत कालीन दान वीर कर्ण से है.

दो साल बाद शारदीय नवरात्रि में फिर भक्तों से आबाद हुआ शक्तिपीठ

यह शक्तिपीठ सदियों से सभी धर्म-सम्प्रदाय के लोगों के आस्था का केन्द्र रहा है. यहां देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु माता के दर्शन को आतें हैं और माता रानी से मुरादें मानते हैं, जो जरूर पूरी होती हैं. यहां पर साल में पड़ने वाली दोनों नवरात्रों में भारी मेला लगता है. खासकर शारदीय नवरात्रि में यहां पर एक पक्षीय मेले का आयोजन होता है.

इस शक्तिपीठ के बारे में मिलने वाले व्यख्यानों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने पिता महाराजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति के हुए अपमान के कारण यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया था. जिसके बाद भगवान शिव इतने क्रोधित हुए कि देवी सती के शव को लेकर ताण्डव करने लगे. उनके तांडव से पूरी दुनिया कांप उठी और तांडव देखकर सभी देवताओं सहित तीनों लोकों में हाहाकार मच गया. देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को छिन्न भिन्न कर दिया.

देवी पाटन शक्तिपीठ
देवी पाटन शक्तिपीठ

इस दौरान देवी सती के शरीर का भाग जहां-जहां पर गिरा वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई. पैराणिक मान्यताओं के अनुसार तुलसीपुर क्षेत्र में जहां आज यह मंदिर स्थित वहीं पर ही देवी सती का वाम स्कंध सहित पट गिरा था. यही कारण है कि इस स्थान का नाम देवीपाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी मां पाटेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पाटेश्वरी के परम भक्त और सिद्ध महात्मा श्री रतननाथ जी महराज हुआ करते थे. वह अपनी सिद्ध शक्तियों की सहायता से एक ही समय में नेपाल राष्ट्र के दांग चौखड़ा व देवीपाटन में विराजमान मां पाटेश्वरी की एक साथ पूजा किया करते थे. उनकी तपस्या व पूजा से प्रसन्न होकर मां पाटेश्वरी ने उन्हें यह वर दिया कि श्रद्धालुओं द्वारा जब भी मेरी पूजा की जाएगी, लेकिन यहां पर आपको आने की जरूरत नहीं है. अब बस आपकी सवारी आएगी.

यही कारण है कि नेपाल राष्ट्र से भारत के देवीपाटन तक आने के लिए रतननाथ जी की सवारी चैत्र नवरात्रि में द्वितीया को देवीपाटन के लिए प्रस्थान करती है, जो पंचमी को यहां पहुंचती है और अपना स्थान ग्रहण करती है. लेकिन शारदीय नवरात्रि में की भी महिमा कम नहीं है. इस दौरान शक्तिपीठ में माता पाटेश्वरी का भव्य पूजन अर्चन होता है. इस दौरान माता की यहां पर विशेष पूजा अर्चना होती है. बाहर से आने वाले पुरोहित और नाथ सम्प्रदाय के पुजारी 9 दिनों तक माता की विशेष पूजन करते हैं.

देवी पाटन शक्तिपीठ
देवी पाटन शक्तिपीठ

इस शक्तिपीठ के मुख्य गर्भ ग्रह में एक अखण्ड ज्योति सैकड़ों सालों से प्रज्ज्वलित है. मान्यताओं है कि यह अखण्ड ज्योति त्रेतायुग से यहां जल रही है. इस ज्योति को जलाएं रखने के लिए देसी घी का प्रयोग किया जाता है. जो कि यही के गौशाला में पल रही गायों के दही से निकाल कर बनाया जाता है.

वहीं, मंदिर में एक काल भैरव की भव्य मूर्ति है. जहां पर सैकड़ों सालों से एक अखंड धूना भी प्रज्जवलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, गोरक्ष पीठाधीश्वर और आदि संत गोरक्षनाथ जी महराज ने त्रेता युग में मां पाटेश्वरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी, तथा यहां पर एक अखण्ड धूना प्रज्जवलित किया था, जो त्रेता युग से आज तक अनवरत ही जलता आ रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर बिना सिर पर कपड़ा रखे कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है.

देवी पाटन शक्तिपीठ
देवी पाटन शक्तिपीठ

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देवीपाटन मंदिर में ही एक विशाल सूर्यकुण्ड है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में दानवीर कर्ण ने यहीं पर स्नान किया था और सूर्य का अर्घ दिया था, इसीलिए इस कुण्ड को सूर्यकुण्ड के नाम से जाना जाता है. यहां साल के 12 मास पानी भरा रहता है और देवीपाटन दर्शन करने आने वाले एक बार जरूर यहां स्नान करते हैं.

यहां पर दूर दूर से माता के भक्त आते हैं. अपनी मिन्नतें पूरी करते हैं. यहां पर आने वाले भक्तों का कहना है कि माता रानी सबको उसके कर्म के अनुसार फल प्रदान करती है. यहां पर आप जो भी सच्चे मन से मांगते हैं. वह पूरा जरूर होता है. माता रानी सभी सुख-शांति प्रदान करती है.

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