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ईसाई समाज के कब्रिस्तान में दफनाने के लिए नहीं बची जगह

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Published : Jan 1, 2021, 3:39 PM IST

कब्रगाह में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची
कब्रगाह में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची

अलीगढ़ में ईसाइयों के कब्रिस्तान में शवों को दफनाने के लिए जगह नहीं बची है. शवों को दफनाने के लिए ईसाई समाज नए कब्रिस्तान की मांग कर रहा है. जगह नहीं होने के कारण मजबूरन पुरानी कब्रों को खोदकर शवों को दफनाया जा रहा है.

अलीगढ़: अलीगढ़ में ईसाइयों के कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची है. मजबूरी में मृतकों के शवों को पुरानी कब्रों को खोदकर दफनाया जा रहा है. शवों को दफनाने के लिए ईसाई समाज नए कब्रिस्तान की मांग कर रहा है. पिछले सालों में ईसाइयों की आबादी तेजी से बढ़ी है, लेकिन 100 सालों से कोई नया कब्रिस्तान नहीं बना है. इसलिए जिला प्रशासन से नये कब्रिस्तान के लिए जगह उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है.

ईसाई समाज कर रहा कब्रिस्तान की मांग.
200 साल पुराना है ईसाइयों का तस्वीर महल कब्रिस्तानअलीगढ़ में तस्वीर महल स्थित ईसाइयों का कब्रिस्तान 200 साल से अधिक पुराना है. यहां ब्रिटिश काल में स्थायी अफसर रहते थे. वे चर्च और स्कूलों में काम किया करते थे. उन्होंने अपना जीवन अलीगढ़ में बिता दिया और जब मृत्यु हुई तो इसी तस्वीर महल स्थित ब्रिटिश कालीन कब्रिस्तान में उन्हें दफना दिया गया. सबसे पुरानी कब्र यहां सन् 1802 की है. 200 साल बाद इस कब्रिस्तान में अब जगह की कमी होने लगी है.
कब्रिस्तान उपलब्ध कराने की मांग कर रहे लोग.
कब्रिस्तान उपलब्ध कराने की मांग कर रहे लोग.
खंडहर हो रही हैं कब्रेंतस्वीर महल स्थित कब्रिस्तान में ईसाइयों की पक्की कब्र देखी जा सकती हैं. इनमें खूबसूरत पत्थरों को लगाया गया था. पत्थरों और ईटों से बेहद करीने से कब्र को सजाया गया था. बहुत पुरानी ये कब्रें अब खंडहर हो रही हैं. मीनारनुमा और गुम्मदनुमा कब्र बेहद खूबसूरती से बनाई गई थी. कई पत्थर और ईंटों से बनी यह कब्र अब टूट गई है. मजबूरी में मृतकों के शवों को दफन करने के लिए पुरानी कब्रों को खोदा जा रहा है.
पुरानी कब्रों  को खोदकर दफनाया जा रहा शव.
पुरानी कब्रों को खोदकर दफनाया जा रहा शव.
अब नहीं बनती पक्की कब्रअलीगढ़ में ईसाई समाज के दो कब्रिस्तान हैं. एक तस्वीर महल और दूसरा बन्नादेवी क्षेत्र में हैं. अभी बन्नादेवी कब्रिस्तान में नई कब्रों के लिए कुछ जगह है, लेकिन तस्वीर महल में जगह नहीं बची है. ईसाई समाज मृतकों का संस्कार यही करता है. अब इसमें जगह की कमी होने लगी है. नये शवों के लिए जगह नहीं बची है. मसीह समाज में कब्र का बहुत अहम स्थान है. लोग पक्की कब्र बनवाते हैं और कोशिश यह रहती है कि यह हमेशा मौजूद रहे. कब्र को खत्म न किया जा सकें, इसलिए कब्र के ऊपर क्रॉस का प्रतीक भी लगाया जाता है.
कब्रिस्तान में नहीं है पर्याप्त जगह.
कब्रिस्तान में नहीं है पर्याप्त जगह.
शहर के बाहर जमीन खरीद कर बनाएंगे ईसाई कब्रिस्तानईसाई समाज के फादर हैराल्ड अमिताभ के अनुसार कब्रों का मामला बहुत संवेदनशील होता है. उन्होंने बताया कि अलीगढ़ में ईसाई समाज के लिए नए कब्रिस्तान की जरूरत है. इसके लिए सरकार से भी मांग की है. उन्होंने बताया कि अपने स्तर से भी शहर के बाहर ईसाई समाज के लिए जमीन खरीद कर कब्रिस्तान बनाने की सोच रहे हैं. उन्होंने कहा कि कब्रिस्तान के लिए हम सरकार से जगह की मांग करेंगे या अपने स्तर पर जमीन खरीद कर कब्रिस्तान बनाएंगे. उन्होंने बताया कि तस्वीर महल का कब्रिस्तान 200 साल पुराना है. इसे रोमन कैथोलिक और सीएनआई चर्च दोनों यूज करते है.
कब्रिस्तान में जगह की कमी.
कब्रिस्तान में जगह की कमी.
महापौर ने कहा समाधान होगाफादर जोनाथन लाल ने बताया कि ईसाई समाज की आबादी बढ़ रही है और कब्रिस्तान में जगह नहीं बची है. उन्होंने कहा कि कब्रिस्तान हमारे लिए बहुत जरूरी जगह है और सरकार से हमारी अपील है कि नए कब्रिस्तान का इंतजाम कराए. उन्होंने कहा कि जिले के नगला किला में कब्रिस्तान के लिए जमीन दी गई थी. लेकिन, वहां पर भू-माफिया का कब्जा है. नगर निगम के महापौर मोहम्मद फुरकान ने बताया कि ईसाई समाज के लोग आकर मिलें. उनकी समस्या का समाधान किया जाएगा.10 साल से नहीं बनीं पत्थर की कब्रतस्वीर महल कब्रिस्तान की देखरेख करने वाले खूबीलाल बताते हैं कि पुरानी कब्रें खत्म की जा रही हैं. पहले पत्थर की खूबसूरत कब्रें बनती थी, लेकिन पिछले 10 साल से पत्थर लगाने का काम बंद कर दिया गया है. खूबी लाल पिछले 4 पुश्तों से कब्रों की देख-रेख कर रहे हैं. 80 साल से अधिक समय से ये परिवार कब्रिस्तान में ही मकान बनाकर रहता है. पहले देखरेख के लिए तीस रुपये महीना मिलता था और आज महज तीन हजार रुपये में कब्रिस्तान की देख रेख कर रहे हैं.
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