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अलीगढ़: यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा ने कहा- रोमानिया बार्डर पर खतरनाक स्थिति, कई बार टूटी हिम्मत

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Published : Mar 1, 2022, 9:36 AM IST

यूक्रेन से लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने बताया कि दो देशों की लड़ाई के बीच इंडिया के छात्र स्ट्रगल कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले एडवाइजरी आई थी. लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था. वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले तो हमारे पास इंडिया लौटने का कोई ऑप्शन ही नहीं था.

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अलीगढ़: यूक्रेन से लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने बताया कि दो देशों की लड़ाई के बीच इंडिया के छात्र स्ट्रगल कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले एडवाइजरी आई थी. लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था. वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले तो हमारे पास इंडिया लौटने का कोई ऑप्शन ही नहीं था. भारतीय दूतावास ने उस समय तीन फ्लाइट अरेंज की थी, जो पूरी तरह से फुल थी. वहीं फाल्गुनी ने इसे एक बुरा सपना करार देते हुए कहा कि अभी भी जो छात्र यूक्रेन में रह गए हैं उनके लिए बहुत मुश्किल भरा समय है.

अलीगढ़ की रहने वाली फाल्गुनी यूक्रेन में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा है. फाल्गुनी ने बताया कि करीब मेरे साथ ढाई हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे हैं. फाल्गुनी ने बताया कि यूक्रेन से रोमानिया आने तक पैसे खर्च हुए. लेकिन रोमानिया से इंडिया आने में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ. भारत सरकार ने फूड और ट्रांसपोर्ट का पूरा प्रबंध कराया. फाल्गुनी ने बताया कि भारत सरकार जितना कर सकती थी. कर रही है. लेकिन यूक्रेन की सरकार अगर पहले ही भारतीयों को खतरे का आगाह कर देती तो ऐसी स्थिति नहीं होती. फाल्गुनी ने बताया कि अब परिस्थितियां बहुत कठिन है. इसलिए भारत सरकार ने अपने मिनिस्टर को रोमानिया और पौलेंड भेजा है.

यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा

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फाल्गुनी ने बताया कि हमारी क्लासेस ऑफलाइन चल रही थी और ऐसी परिस्थितियों में छात्रों द्वारा क्लास में उपस्थित नहीं होने पर भारी फाइन देना पड़ता है. यूक्रेन की सरकार रशिया के हमले को हल्के में लिया. अगर यूक्रेन की सरकार ने समय पर यूक्रेन से निकलने का नोटिस दे दिया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती. फाल्गुनी ने यूक्रेन में फंसे होने का एक-एक पल बयां किया. उन्होंने बताया कि एक अलार्म बजने पर ही हम लोग को बंकरों में भागना पड़ता था. उन्होंने बताया कि बंकर्स में यूक्रेन के लोगों को पहले वरीयता दी जाती थी. इंडियंस के लिए अलग से सेंटर नहीं बनाये गए थे.

फाल्गुनी बताती है कि रोमानिया बॉर्डर पर भी पहुंचना आसान नहीं था. बहुत खतरनाक स्थिति थी. फाल्गुनी ने बताया कि हमें एमबीबीएस की किताब नहीं लाने दिया गया. हमें सिर्फ अपने दो जोड़ी कपड़े, थोड़ा खाना और पानी की बोतल ही अपने साथ ले जाना था. वहां का तापमान माइनस 5 डिग्री था. उन्होंने बताया कि भारतीय लोगों के लिए शेल्टर की कोई व्यवस्था नहीं की गई. हम लोगों ने गत्ते को फाड़कर और उसे बिछाकर छह से सात घंटे भीषण ठंड में बिताए.

फाल्गुनी ने बताया कि भारतीय दूतावास की तरफ से मैसेज आया था कि रशियन आर्मी इंडियन को कुछ नहीं कहेंगे..अगर बसों पर भारतीय झंडे लगाए. फाल्गुनी ने बताया कि अगर आप झंडा नहीं लगाएंगे तो हो सकता है हमला हो सकता है. हमारा तिरंगा झंडा ही पासपोर्ट था और किसी ने कुछ नहीं कहा. वहीं, फाल्गुनी के पिता पंकज ने बताया कि यूक्रेन की हालत से अभिभावक परेशान हैं. अलीगढ़ के अभी भी 23 बच्चे यूक्रेन में फंसे हुए हैं.

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