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आगरा में बंदरों का आतंक, समाधान के लिए हाईकोर्ट पहुंचे ताजवासी

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Published : Jul 29, 2022, 10:15 PM IST

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आगरा में बंदरों का आतंक

आगरा में बंदरों का आतंक दिनों-दिन बढ़ रहा है. ऐसे में आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव और अधिवक्ता ने बंदरों की समस्या को दूर करने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिला की.

आगरा: ताजनगरी में हर दिन बंदरों का आतंक बढ़ रहा है. बंदरों से शहर से लेकर देहात तक जनता परेशान हैं. हालात ऐसे हैं कि, बंदरों से जान और माल सुरक्षा के लिए लोग अपने घरों को पिंजरा बनाने को मजबूर हैं. उत्पाती और हमलावर बंदरों से मंदिर, मस्जिद, अस्पताल, ताजमहल और अन्य पर्यटन स्थल तक दहशत का माहौल है. लेकिन, जिम्मेदार वन विभाग, नगर निगम समेत अन्य विभाग बंदरों के बंदोबस्त को लेकर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, जिससे खूंगार बंदर आए दिन हमला करके बच्चे, युवा, महिला, पुरुष और बुजुर्ग को घायल और चोटिल कर रहे हैं. इतना ही नहीं बंदरों की वजह से आने वाले देशी और विदेशी पर्यटक भी सहमे सहमे रहते हैं, जिससे आगरा की छवि खराब हो रही है. मगर, अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका से लोगों को बंदरों से निजात मिलने की उम्मीद बंधी है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर लिया संज्ञान
दरअसल, आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने बंदरों के आतंक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार, नगर निगम समेत नौ विभाग को विपक्षी बनाया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ के न्यायमूर्ति प्रतींकर दिवाकर और आशुतोष श्रीवास्तव ने गत 19 जुलाई को जनहित याचिका पर संज्ञान लिया और सभी नौ विभाग को नोटिस दिया है, जिनसे 17 अगस्त तक जवाब तलब किया है.

आगरा में बंदरों का आतंक

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जनहित याचिका में यह मांग
आगरा की जनता को बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने को मंकी रेस्क्यू सेंटर की स्थापना कराई जाए. बंदरों के लिए वन क्षेत्र में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था की जाए, जिससे वे आबादी क्षेत्र में नहीं आए. ऐसा वन क्षेत्र विकसित किया जाए, जहां पर बंदरों के भोजन के लिए फलदार वृक्ष लगाए जाएं. रेस्क्यू करते समय बंदरों पर अत्याचार न हो. उन्हें सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीक से रेस्क्यू सेंटर ले जाया जाए.

वहीं, आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन का कहना है कि, आगरा शहर में 30 हजार से अधिक बंदर हैं. शहर में तेजी से बंदरों की संख्या बढ़ रही है. यहीं वजह है कि, शहर में बंदरों के बड़े-बड़े झुंड हैं. आगरा जिला अस्पताल, एसएन मेडिकल कॉलेज, नूरी गेट, लेडी लॉयल अस्पताल, कलेक्ट्रेट, मंटोला, दरेसी, किनारी बाजार, कोतवाली, जामा मस्जिद, आगरा किला, सिकंदरा, बेलनगंज, गोकुलपुरा, लोहामंडी, राजामंडी, रावतपाड़ा, सुभाष बाजार, घटिया आजम खां, माईथान, फुलटटी, पीपल मंडी, गोविंद नगर समेत अन्य क्षेत्र में बंदरों का आतंक है. बंदर आए दिन आक्रमण कर रहे हैं.

झपट्टा मार बंदर बने बड़ी मुसीबत
माईथान के निवासी राघवेंद्र ने बताया कि, क्षेत्र में झपट्टा मार बंदरों का आतंक है. घर से कुछ भी सामान लेकर बाहर नहीं निकल सकते हैं. परिवार और बच्चों की सुरक्षा के लिए घरों में चारों तरफ जालिया लगवानी पड़ रही है. दुकान से यदि कोई सामान लेकर आते हैं तो बंदर झपट्टा मारकर उसे छीन ले जाते हैं. दुकानदार सुनील कुमार का कहना है कि, उसने भी बंदरों से बचने के लिए दुकान में चारों तरफ जाली लगवाई है, जिससे बंद कोई भी सामान नहीं ले जा पाते हैं.

आगरा डीएफओ ने बताया कि, हमें हाईकोर्ट से नोटिस मिल गया है. हम अपने स्तर से बेहतर जबाव बनाकर हाईकोर्ट में भेज रहे हैं. हम हर स्तर से कार्रवाई करने की प्लानिंग कर रहे हैं, जिससे मानव और वन्य जीव को भी कोई परेशानी न हो. आगरा नगर निगम के नगरायुक्त निखिल टी फुंडे ने बताया कि, नगर निगम की ओर से पहले ही बंदरों से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए वन विभाग के साथ योजना बनाने पर काम चल रहा है. अब हाईकोर्ट के आदेश पर आगे की रणनीति बनाएंगे.

जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. अशोक कुमार अग्रवाल का कहना है कि, अस्पताल में भी बंदरों का आतंक है. उत्पाती बंदर मरीज और तीमारदारों पर हमला कर रहे हैं तो कार्यालय में घुसकर नुकसान कर रहे हैं. इसके साथ ही हर दिन जिला अस्पताल में बंदर काटे का इंजेक्शन लगवाने के लिए भी लोग पहुंच रहे हैं. शहर के हर क्षेत्र से लोग लगातार एआरवी लगवाने आ रहे हैं.

चार साल में यह हुईं घटनाएं
नवंबर 2018 में गांव रुनकता में अबोध बच्चे की जान बंदर ने ली थी.
जुलाई 2019 में माईथान केे हरी शंकर गोयल की जान बंदरों ने ली थी.
मार्च 2020 में बंदरों के कारण छत से गिरकर उस्मान की मौत हुई थी.
अक्टूबर 2020 में भी दो व्यक्तियों की भी बंदरों की वजह से मौत हो गई

संरक्षित जीव हैं बंदर
बंदर संरक्षित वन्य जीव है. आगरा, मथुरा, लखनऊ, वृंदावन समेत अन्य शहरों में भी बंदरों की समस्या को लेकर राज्य सभा में 7 अप्रैल 2022 को प्रश्न उठा था. तब इस पर चर्चा हुई थी और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से मथुरा और हल्द्वानी में मंकी रेस्क्यू सेंटर बनाने की अनुमति मिलने की जानकारी दी थी.

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