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क्यों चर्चा में है 375 साल पुरानी ये मस्जिद, जिसे शहजादी ने अपने जेबखर्च से बनवाया था

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Published : May 29, 2023, 1:51 PM IST

Updated : May 29, 2023, 2:47 PM IST

375 साल पहले आगरा के जामा मस्जिद का निर्माण कराया गया था. इसे बनाने में 5 साल लगे थे. इसकी कुल निर्माण लागत तब 5 लाख रुपये थी. इसे उस वक्त दुनिया की सबसे अमीर शहजादी ने अपनी जेबखर्च से दिया था. जाम

आगरा शाही जामा मस्जिद मामले में सुनवाई
आगरा शाही जामा मस्जिद मामले में सुनवाई

आगरा शाही जामा मस्जिद के बारे में बताते वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे

आगराः आगरा की जामा मस्जिद में मथुरा के केशवदेव मंदिर के श्रीविग्रह दबाए जाने का मामला फिर चर्चा में है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट के न्यायालय सिविल जज (प्रवर खंड) 31 मई को इस पर सुनवाई होनी है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट का दावा है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थित ठाकुर केशवदेव मंदिर के श्रीविग्रह दबे हैं. इन्हें वहां से निकाला जाए. लेकिन इस विवाद और चर्चा के बीच आगरा के जामा मस्जिद के बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. ईटीवी भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में जानिए आगरा के जामा मस्जिद से जुड़े कुछ अनछुए पहलु.

आगरा का जामा मस्जिद आज से 375 साल पहले मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे चहेती बेटी जहांआरा ने बनावाया था. इसके लिए उन्होंने अपने वजीफे की रकम का इस्तेमाल किया था. तब इसे बनवाने में पांच लाख रुपये खर्च हुए थे. उस समय जहांआरा की दुनिया की सबसे अमीर शहजादी थीं. बता दें कि मथुरा कोर्ट में पहले ही आगरा की जामा मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है. 11 मई 2023 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट ने न्यायालय सिविल जज (प्रवर खंड), आगरा में वाद दायर किया था. इसमें न्यायालय से जामा मस्जिद की सीढ़ियों में दबी भगवान केशवदेव के विग्रहों को वापस दिलवाने की मांग की गई है.

आगरा शाही जामा मस्जिद
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दुनिया की सबसे अमीर शहजादी थीं जहांआराः वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की 14 संतानें थीं. इसमें मेहरून्निसा बेगम, जहांआरा, दारा शिकोह, शाह शूजा, रोशनआरा, औरंगजेब, उमेदबक्श, सुरैया बानो बेगम, मुराद लुतफुल्ला, दौलत आफजा और गौहरा बेगम शामिल थीं. इनमें शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा थीं. उनका जन्म 2 अप्रैल 1614 को हुआ था. जिस समय मुमताज की मौत हुई थी, उस समय जहांआरा 17 साल की थी. मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने उसकी संपत्ति की आधी संपत्ति जहांआरा को दी. बाकी की संपत्ति अन्य बच्चों में बांटी थी. जहांआरा उस समय दुनिया की सबसे अमीर शहजादी थी. उसे तब करीब 2 करोड़ रुपए का सालाना वजीफा (जेब खर्च) मिलता था.


जहांआरा ने कराया जामा मस्जिद का निर्माणः वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल बादशाह शाहजहां की रजामंदी पर जहांआगरा ने अपने वजीफा (जेब खर्च) की रकम से आगरा में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. यह 1643 से 1648 के बीच बनकर तैयार हुआ. इसमें लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया. इसका मुख्य द्वार पूर्वी दिशा में है. उत्तर और दक्षिण दिशा में भी जामा मस्जिद के दरवाजे हैं. अभी दक्षिणी दरवाजे का उपयोग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कर्मचारी करते हैं.


मस्जिद में तीन गुंबदः जामा मस्जिद में तीन गुंबद हैं. पूर्वी द्वार से ऊपर मस्जिद तक जाने को सीढ़ियां हैं. जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है. इसकी दीवार में ज्यामितीय आकृति की टाइल्स लगी हैं. जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोग नमाज पढ़ने की व्यवस्था है. हर साल 20वें रमजान को जहांआरा का उर्स जामा मस्जिद में मनाया जाता है. यह भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संरक्षित स्मारक में शामिल है.



औरंगजेब ने दबावाईं थी मूर्तियांः वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराया था. केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष आगरा में लाए गए. इन सभी मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया गया था. औरंगजेब ने यह इसलिए किया था, ताकि मस्जिद में आने वाले नमाजियों के पैरों के नीचे ये मूर्तियां और विग्रह रहे. औरंगजेब का यह बहुत ही निंदनीय कार्य था. लेकिन इन मूर्तियों को अब वहां से बाहर निकाला जाना चाहिए.


पुस्तकों में विस्तार से मिलता है जिक्रः वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर के अनुसार, आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के साथ अन्य विग्रहों के बारे में तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है. सन 1940 में एसआर शर्मा ने 'भारत में मुगल साम्राज्य' नाम से किताब लिखी थी. इसमें मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के दबाए जाने का जिक्र है.

औरंगजेब के सहायक ने भी किया जिक्रः औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, इतिहासकार यदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब', 'तवारीख़-ए-आगरा' और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक 'मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया गया है. इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे से निकालने से यह पता चल जाएगा कि मथुरा के केशवदेव मंदिर में भगवान श्री कृष्ण समेत अन्य तमाम देवी देवताओं की मूर्तियां और विग्रह किस तरह के थे.

ब्रिटिश काल में इसे तोड़ दिया थाः राजकिशोर 'राजे' ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत ने जामा मस्जिद में आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन बनाते समय तोड़ की थी. जामा मस्जिद का एक गेट साल 1857 के गदर को देखकर अंग्रेजों ने तोड़ा था. उन्हें डर था कि इस गेट से आगरा किला पर तोप दागी जा सकती है. जामा मस्जिद और आगरा किला के दिल्ली दरवाजे के मध्य अष्टकोणीय त्रिपोलिया चौक था. इसे अंग्रेजों ने तोड़ दिया था.

एक नजर में औरंगजेब के कृत्यः

  • सन 1670 में मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब ने मथुरा समेत देश के तमाम मंदिरों को ध्वस्त किया था. इसमें भगवान श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बना प्राचीन ठाकुर केशवदेव मंदिर भी शामिल था. औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनवाई थी.
  • औरंगजेब ने मथुरा में मंदिर ध्वस्त करने से पहले ही उसका नाम बदलकर इस्लामाबाद कर दिया था. औरंगजेब इसी तरह के शाही फरमान जारी करता था.
  • आलमगीर औरंगजेब के समय के मआसिर-ए-आलमगीरी और विदेशी लेखक फ्रेंकोस गौटियर की पुस्तक औरंगजेब आइकोनोलिज्म समेत कई भारतीय इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में प्राचीन ठाकुर केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके विग्रह आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाने का उल्लेख है.

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Last Updated :May 29, 2023, 2:47 PM IST
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